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नक्सलियों को कालेधन की सप्लाई की पाईपलाईन तो टूट गई थी फिर

खरी-खरी            Apr 24, 2017


जयशंकर गुप्ता।
छत्तीसगढ़ में सुकमा के पास सीआरपीएफ के जवानों पर घात लगाए माओवादियों का कायराना हमला निंदनीय है। इस हमले में अभी तक की सूचना के अनुसार 25 जवान शहीद हो गये जबकि कई गंभीर रूप से घायल मरणासन्न है।

लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है? पिछले 14 वर्षों से राज्य में रमन सिंह की भाजपा सरकार है और केंद्र में सर्व शक्तिमान मोदी जी की सरकार है। दोनों ही माओवादियों को समूल नष्ट करने के वादे और दावे करते थकते अघाते नहीं। नोटबंदी के बाद कहा गया कि नक्सलियों को कालेधन की सप्लाई लाईन टूट गयी है और अब नक्सलियों की खैर नहीं।

छत्तीसगढ़ के इन इलाकों से कभी नक्सलियों के नाम पर निरीह और निर्दोष आदिवासियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के पुलिस और अर्ध सैनिक बलों के दमन-उत्पीड़न के समाचार आते हैं तो कभी दंडकारण्य को अभयारण्य बनाने में लगे माओवादियों के घात लगाकर किए गये हमलों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों के मारे जाने के समाचार आते रहते हैं। अतीत में माओवादी राजनीति का विरोध करनेवाले कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं को भी माओवादी हिंसा का शिकार बनना पड़ा है। यह संयोग मात्र है या किसी तरह की दुरभि संधि कि सत्तारूढ़ दल के किसी भी बड़े नेता अथवा बड़े पूंजीपति को माओवादियो ने अभी तक अपना निशाना नहीं बनाया है।

हम हर तरह की हिंसा के विरुद्ध हैं। चाहे वह पुलिस और सुरक्षा बलों की बंदूकें हों चाहे बंदूक के बल पर सत्ता हथियाने का सपना देख रहे माओवादियों की बंदूकों से निकलनेवाली गोलियां सीना तो आदिवासियों, गरीब किसानों के बेटों-जवानों का ही छलनी करती हैं। गोली और बंदूक समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकते। इनका इस्तेमाल तो दोनों ही पक्ष वर्षों से करते आ रहे हैं। हासिल क्या हो रहा!

इसके साथ ही कुछ लोग इस तरह की घटनाओं को नयी दिल्ली के जंतर मंतर पर लंबे समय तक नंगे, अधनंगे होकर शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन करने वाले तमिलनाडु के किसानों के प्रति सरकार की बेरुखी और उदासीनता से भी जोड़ कर देख रहे हैं। सीधा संबंध तो नहीं हो सकता लेकिन यह शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक प्रतिरोध को दबाने, अनसुना कर उपेक्षित किए जाने का भी प्रतिफल भी हो सकता है कि किन्हीं इलाकों में कुछ लोग बंदूक से सवालों के समाधान की बातें कर आदिवासियों, दलित, शोषित, पीड़ित, और वंचित लोगों को बरगलाने में कुछ हद तक सफल हो रहे हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।



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