कार्यकर्ता को वास्तव में अब खुद के बारे में लगता क्या है

खरी-खरी            Aug 12, 2023


कीर्ति राणा।

चुनाव जीतने में जुटी भाजपा के कार्यकर्ताओं को जाने क्यों लग रहा है कि उनकी उपयोगिता सम्मेलनों में भीड़ बढ़ाने और ज्ञान बांटने वाले भाईसाबों के बौद्धिक भाषण सुनने जितनी ही रह गई है।

सम्मेलन चाहे भोपाल में हो या किसी खास अवसर पर पीएम का या गृहमंत्री का आगमन हो, हर बार मंच पर खास चेहरों के लिए ही कुर्सियां आरक्षित रहती हैं।

सम्मेलनों में जीत का मंत्र देने आए सारे नेता अपनी बात कह कर कार्यकर्ताओं में जान फूंकने के बाद टाटा-बाय बाय करते हुए अगले सम्मेलन के लिए रवाना हो जाते हैं।

भाजपा के हर बड़े नेता ने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी के घुंघरू बांध लिए हैं। वजह यह कि नेता आश्वस्त हैं कि फिर से सरकार बन रही है।

भले ही मध्य प्रदेश में चुनाव की कमान अमित शाह के हाथों में हो लेकिन उनके जिन विश्वस्तों नरेंद्र सिंह तोमर, भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव द्वारा रणनीति को अंजाम दिया जा रहा है तो इन्हीं से अपनी निकटता के चलते दावेदारों को टिकट की मंजिल आसान लग रही है।

गुजरात की तर्ज पर भले ही अमित शाह ने मप्र में नए चेहरों को उतारने के संकेत दे दिए हैं ऐसे में इंदौर में पुरानों में से कितनों को टिकट मिलेगा तय नहीं है। अभी जो पार्टी पदाधिकारी या लाभ के अन्य पदों पर हैं उन्हें चुनाव लड़ने का भी मौका मिल ही जाएगा।

इन तमाम दावेदारों को भी आभास नहीं है किंतु जिस तरह से ये सब वरिष्ठ नेताओं से निकटता के कारण यकायक सक्रिय हुए हैं तो पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को एक बार फिर लगने लगा है कि उनकी उपयोगिता पार्टी में नेताओं की सभा में भीड़ बढ़ाने या भंडारे में साग-पूरी परोसने से अधिक नहीं है।

जिन कई नेताओं को पार्टी पहले ही विभिन्न पदों पर स्थापित कर चुकी है उन सभी को लग रहा है विधानसभा चुनाव में उनसे उपयुक्त कोई और नहीं।  

महापौर, सांसद, नगर अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष, निगम अध्यक्ष, प्राधिकरण अध्यक्ष, युवा आयोग अध्यक्ष सभी ने चुनाव लड़ने के घुंघरू बांध लिए हैं। विकास प्राधिकरण अध्यक्ष जयपाल सिंह चांवड़ा भी आशान्वित हैं कि देपालपुर से टिकट मिलेगा और जीत भी जाएंगे। गोलू शुक्ला को इंदौर विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष का दायित्व देकर मुख्यमंत्री ने एक नंबर से उनकी दावेदारी पर विराम लगा दिया हो किंतु गोलू को लग रहा है कि उपाध्यक्ष के साथ इस सीट से चुनाव क्यों नहीं लड़ सकते।

डॉ खरे को इंदौर महापौर की दौड़ में पराजित होने पर हताश डॉ निशांत खरे को सीएम युवा आयोग अध्यक्ष बना कर प्रोत्साहित कर चुके हैं।आदिवासी क्षेत्र में सक्रिय डॉ खरे को भी जाने कब से लग रहा है कि उनकी योग्यता का बेहतर उपयोग विधायक के रूप में हो सकता है।वे भी राऊ, महू या अन्य किसी भी सामान्य क्षेत्र से जीतने का विश्वास रख रहे हैं।

भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे के समर्थकों को जाने क्यों लग रहा है जैसे (स्व) उमेश शर्मा की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए अचानक उन्हें अध्यक्ष पद मिल गया था वैसे ही पांच नंबर से टिकट भी मिल जाएगा। मुख्यमंत्री ने अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम का अध्यक्ष बना कर सावन सोनकर को भले ही उपकृत कर दिया हो लेकिन ग्रामीण जिला अध्यक्ष डॉ राजेश सोनकर की ही तरह  उनकी भी इच्छा इस बार सांवेर से चुनाव लड़ने की है।

पार्टी ने इंदौर में भी विधायक मालिनी गौड़ को महापौर का चुनाव लड़वाया था इसलिए अब महापौर पुष्यमित्र भार्गव भी चार नंबर से विधायक का चुनाव लड़ने का सपना देख रहे हैं तो गलत क्या है।

अपने ‘एक साल बेमिसाल’ कार्यकाल को लेकर मीडिया से चर्चा में वो विधायक टिकट की दावेदारी जैसे प्रश्नों को तो टाल गए लेकिन मजबूती से यह दावा जरूर किया कि मप्र में फिर से भाजपा की ही सरकार बनेगी। उनके अपने तर्क भी थे कि इस बार शासकीय कर्मचारियों, अधिकारियों में नाराजी नहीं है।सरकार ने लाड़ली बहनों के खातों में हर माह जो राशि डालना शुरु की है तो बड़े पैमाने पर यह वोटर भाजपा के साथ हो गया है।

पिछले चुनाव में किसानों की नाराजी के चाहे जो कारण रहे हों लेकिन केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं के साथ किसानों के हित में राज्य सरकार ने जितने निर्णय लिए है उनसे किसानों का पार्टी के प्रति विश्वास और मजबूत हो गया है।

सांसद शंकर लालवानी क्यों चार नंबर से विधायक का चुनाव लड़ना चाहते हैं इसका ठोस कारण तो उनके खास लोग भी नहीं बता सकते लेकिन तय माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी इंदौर संसदीय क्षेत्र से किसी अन्य को मौका देगी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े इससे पहले वे चार नंबर से विधायक का चुनाव लड़ने का मायाजाल बुन रहे हैं।

इस क्षेत्र में सिंधी वोटर्स की अधिकता और वर्तमान विधायक परिवार और महापौर के बीच चलने वाली स्पर्धा में उन्हें निर्णय अपने पक्ष में होने की उम्मीद बनी हुई है।

इस बार मालिनी गौड़ को टिकट नहीं मिला तो किसी अन्य को भी नहीं मिले इसलिए गौड़ परिवार एकलव्य का नाम आगे बढ़ा रहा है लेकिन उनके विरुद्ध जिस तरह प्रकरण होते जा रहे हैं वह बाधा बन सकते हैं।

 



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