कैग की रिपोर्ट कह रही, मप्र सरकार को 1400 करोड़ का हुआ नुकसान

खास खबर            Feb 11, 2024


मल्हार मीडिया भोपाल।

मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत कैग की रिपोर्ट में प्रदेश के कई विभागों में कई बड़े घोटालों का खुलासा हुआ है। कई विभागों में हुई अनियमितताओं के चलते करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है। सीएजी की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण, पीडब्ल्यूडी, ऊर्जा और उद्योग विभाग सहित अन्य विभागों में हुई अनियमितताओं के चलते शासन को 1400 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि गलत डिसीजन, कोयले के कम उत्पादन और रॉयल्टी वसूली में कमी के चलते सरकार को ये खामियाजा उठाना पड़ा। वहीं, सडृकों की गुणवत्ता और ठेकेदारों को समय पर भुगतान नहीं करने के चलते भी सरकार पर देनदारी बढ़ी है। रिपोर्ट की मानें तो पीडब्ल्यूडी में इंजीनियरों ने सडक़ की गुणवत्ता की गलत रिपोर्ट पेश की।

जंगलों के सुधार के लिए कैंपा फंड में भी बड़े स्तर पर घोटाला हुआ। वन विभाग ने अनियमित रूप से अपात्र गतिविधियों में 50 करोड़ से अधिक खर्च किया गया। पीएचई विभाग में फर्जी सिक्योरिटी डिपॉजिट से ठेकेदारों को फायदा पहुंचाया गया है। वन विभाग के अधिकारियों ने खरीदी में भी जमकर घोटाले किए हैं।

रायल्टी वसूली में कमी

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक गलत निर्णय, कोयले के उत्पादन में कमी और रॉयल्टी वसूलने पर ध्यान नहीं दिया गया। जिससे सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है। इसके अलावा जंगलों के सुधार के लिए कैंपा फंड का सही इस्तेमाल नहीं किया गया। कैग की रिपोर्ट के अनुसार, सड़कों के निर्माण में गुणवत्ताहीन काम ठेकेदार करते रहे। इसके बाद भी सरकार ने काम की जांच बेहतर नहीं की।

हालांकि उस दौरान ठेकेदारों का पेमेंट रोका गया। इसके बाद ठेकेदारों ने बकाया राशि को लेकर सरकार से ब्याज के तौर पर रकम ली। इसमें सरकार को ध्यान देना चाहिए था कि निर्माण बेहतर तरीके से हो सके और सही समय पर ठेकेदार का भुगतान हो।

मध्य प्रदेश में ऊर्जा उत्पादन को लेकर भी कैग ने कहा कि कोयले की कमी के चलते अतिरिक्त भार उत्पादन में आया है। जिसकी वजह से सरकार को करीब 90 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कैंपा के फंड से वाहन खरीदी और भवन का निर्माण नहीं किया जा सकता है। विभाग ने अनियमित रूप से अपात्र गतिविधियों पर 53 करोड़ रुपए खर्च कर दिए।

 ठेकेदारों से नहीं वसूली रायल्टी

सीएजी की रिपोर्ट में प्रदेश में पुलों के निर्माण में कई तरह की गड़बडिय़ां सामने आई हैं। इसमें योजना और क्रियान्वयन के काम मुख्य रूप से शामिल हैं।  प्रदेश सरकार ने वर्ष 2013 में नियम बनाया था कि सरकारी काम में निकलने वाले गौण खनिज की रायल्टी ठेकेदार से ली जाएगी। जब तक वह रायल्टी चुकाने के संबंध में अदेयता प्रमाण पत्र नहीं देता, उसका भुगतान नहीं किया जाना चाहिए।

इसके बाद भी अक्टूबर 2020 से सितंबर 2021 के बीच भोपाल और उज्जैन संभाग के छह पुलों के निर्माण में ठेकेदारों से एक करोड़ 20 हजार रुपये की जगह 37 करोड़ 72 लाख रुपये की ही वसूली हो पाई।

सीएजी की ओर से अक्टूबर 2020 से सितंबर 2021 के बीच भोपाल, इंदौर, जबलपुर, रीवा और उज्जैन संभागों के 72 पुलों की आडिट की गई, जिसमें 63 पुल समय सीमा में तैयार नहीं होना पाया गया। इनके निर्माण में एक माह से 68 माह तक का विलंब हुआ। ठेकेदारों पर कार्रवाई भी नहीं की गई। शासन ने तर्क दिया कि विभिन्न तरह की अनुमतियां प्राप्त करने के कारण विलंब हुआ।

कोयला लोडिंग और बिजली उत्पादन में गड़बड़ी

रिपोर्ट में बताया गया है कि कोयले की बिलिंग चरण से लेकर उत्पादन तक (कोयला खदान से लेकर उत्पादन क्षेत्र तक पहुंचाने) में गड़बड़ी पाई गई है। 71 करोड़ रुपए की गिरावट दर्ज की गई है। कंपनी कोयले की पर्याप्त आपूर्ति की व्यवस्था करने में विफल रही, जिसके कारण बिजली उत्पादन में भार आया और दिसंबर 2018 अप्रैल 2019 और जून 2019 तक उत्पादन में नुकसान हुआ। इससे 90 करोड़ रुपए से अधिक की हानि हुई है। इसके अलावा निगरानी के लिए आवश्यक पर्याप्त सुविधाओं के बिना टरबाइन की सफलता और लंबी अवधि के लिए बंद रहने की वजह से 1044 करोड़ रुपए की हानि हुई है।

लोक निर्माण विभाग में 3 करोड़ 31 लाख रुपए की वित्तीय देयता की स्थिति उत्पन्न हुई। सडक़ों के निर्माण में कांक्रीटीकरण में लापरवाही पाई गई और काम भी गुणवत्ताहीन हुआ। जिसकी वजह से 54 करोड रुपए का गुणवत्ताहीन काम किया गया। साथी रॉयल्टी को लेकर 31 करोड़ रुपए की रॉयल्टी वसूली जानी थी,  लेकिन 15 करोड़ रुपए ही वसूल किए गए। करीब 16 करोड़ रुपए की रॉयल्टी में कमी आई।

वहीं ग्रामीण इलाकों में पानी पहुंचाने की योजनाओं में देरी हुई है। कैग ने पाया है कि संबंधित जल स्रोत में 171 दिनों तक कोई भी पानी उपलब्ध नहीं था। रिपोर्ट में बताया है कि आदेश जारी होने के बाद 18 से 24 महीने के भीतर काम पूरा किया जाना था, लेकिन लेखा परीक्षा में देखा कि 146 कार्यों में से 8 कार्य समय पर पूरे हुए थे, जबकि काम 256 दोनों का था। करीब 18 योजनाओं में से 12 योजनाओं को 580 दिनों में से अधिक समय में पूरा किया और चालू 6 योजनाओं को पूरा करने में 756 दिन लगा दिए।

 

 


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