राघवेंद्र सिंह।
दिग्विजयसिंह शासन काल के आखिरी दौर में जो हुआ था वैसे हालात फिर पैदा हो गए हैं। फर्क इतना है कि दिग्विजय सिंह सरकार के तब दस साल हुए थे और शिवराज सरकार दस के पार पहुंचने पर उसी गति को प्राप्त हो रही है। स्थिति समझने के लिए थोड़ा पीछे जाएंगे जब मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे और तीसरी पारी जीतने के लिए अपने हिसाब से तैयारी में लगे थे। जमीनी हकीकत से दूर, कार्यकर्ताओं के नजरिए से अलग, उनका अपना सोच था और अधिकारियों की टीम उन्हें सलाह देती थी। कमोवेश वैसे ही हालात अब बन रहे हैं।
भाजपा है इसलिए संगठन की बातें ज्यादा होती हैं, लेकिन चलती सरकार की है। इस सबके बीच सच्चाई यह है कि कलेक्टर से लेकर निचले स्तर के अधिकारी, मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक इनकी सुनते ही नहीं हैं। यह सुनने में भरोसे के लायक नहीं लगता मगर सच्चाई ऐसी ही है। हम बात करें पिछले दिनों मुख्य सचिव के इंदौर दौरे की जिसमें उन्होंने राजस्व अधिकारियों को गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार के चलते सस्पेंड कर दिया था। ऐसा पहली बार हुआ कि मुख्य सचिव ने कार्यवाही की और पूरे प्रदेश में राजस्व अधिकारी हड़ताल पर चले गए।
यह देखने में तो मुख्य सचिव के फैसले के खिलाफ हड़ताल है मगर इसका संबंध प्रशासनिक कम राजनैतिक और राजस्व रिकार्ड की त्रुटिपूर्ण कम्प्यूटीकरण से अधिक है। जिन कंपनियों को किसानों के रकबे व तहसीलों में रिकार्ड सुधारने का जिम्मा दिया है दरअसल वही तकनीकी रूप से ठीक नहीं है। इसके चलते गड़बड़ियों के रास्ते भी खुले, भ्रष्टाचार हुआ और सरकार के साथ साथ किसानों को भी नुकसान हुआ।
राजस्व अधिकारियों की हड़ताल इन तमाम चीजों में सुधार को लेकर भी थी लेकिन जनता और राजनैतिक हलकों में संदेश जा रहा है कि यह सब मुख्य सचिव द्वारा इंदौर में किए निलंबन के खिलाफ है।
अब कहानी यही से शुरू होती है।असलल में कम लोग ही जानते हैं कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के बीच वैसा समांजस्य नहीं है जैसा राकेश साहनी या एंटनी डिसा के साथ रहा है। सत्ता और प्रशासन के गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि सरकार मुख्य सचिव वी.पी. सिंह की विदाई चाहती है। 1984 बैच के आईएएस अधिकारी श्री सिंह 2018 में चुनाव पूर्व रिटायर होने वाले हैैं। इसीलिए मुख्यमंत्री का बार-बार यह कहना नौकरशाही को ठीक कर दूंगा,डंडा लेकर निकला हूं,अधिकारियों को उल्टा टांग देंगे, राजस्व के मामले नहीं निपटते हैं तो उलटा लटका दो।
इस तरह की चेतावनियां जिस तेवर और भाषा के साथ दी जा रही हैं वे कहीं न कहीं मुख्य सचिव को निशाना बनाती हैं। लगता है इससे मुख्य सचिव का भी धीरज कम होता दिखा उन्होंने भी मुख्यमंत्री की उपस्थिति में ही कलेक्टरों से कहा कि दो माह बाद वे फिर समीक्षा करेंगे और उसमें कठोर निर्णय लिए जाएंगे। आमतौर से वी.पी. सिंह इस तरह नहीं बोला करते। उनकी छवि बेहद संजीदा और ईमानदार अफसर की है।
भाजपा सरकार में कलेक्टर और एसपी की नियुक्तियां प्रशासनिक कम राजनैतिक स्तर पर ज्यादा हो रही हैं। पहले ऐसा कभी कभी होता था और अब कभी कभी प्रशासनिक स्तर पर फैसले होते हैैं। दागदार और निर्णय करने में कमजोर अधिकारियों को जिलों की कमान नहीं सौैंपी जाती थी मगर अब इसका ध्यान नहीं रखा जाता। विवादित और अनिर्णय की स्थिति वाले अधिकारी सरकार से निकटता के कारण कलेक्टर - एसपी बनने में कामयाब हो रहे हैं। भोपाल - इंदौर से लेकर रीवा आदि के प्रशासनिक मुखिया इसके उदाहरण हैं। खोजने पर यह फेहरिस्त लंबी हो सकती है। इसमें नगर निगम के कमिश्नर से लेकर थानों के दरोगा तक शामिल हैं।
भोपाल नगर निगम की कमिश्नर छवि भारद्वाज का अचानक जिस ढंग से तबादला किया यह भी चर्चाओं में है। कहा जाता है कि उन्होंने भ्रष्टाचार को हटाने की कोशिश की, बदले में उन्हें ही हटा दिया गया। ऐसे ही कटनी के एसपी गौरव तिवारी के साथ हुआ था। जब नियुक्तियां सीएस और डीजी नहीं करेंगे तो कलेक्टर एसपी उनकी कम ही सुनेंगे। एक बार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा था उनकी सरकार पर जो भी आरोप लगते हों लेकिन उनके जमाने में कलेक्टर एसपी की पोस्टिंग पैसे लेकर कभी नहीं होती थी।
अब तो चर्चा यह है कि बकायदा जिले और संभाग में वसूली के हिसाब से नियुक्तियों के पैमाने तय हो गए हैं जो जितना कमाऊ होगा उसकी गलतियां उतनी नजरअंदाज की जाएंगी। झाबुआ के पेटलावद में विस्फोट से लेकर मंदसौर किसान कांड के दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही नहीं होना इसी तरह की आशंकाओं को मजबूत करता है।
इन स्थितियों में सीएस और डीजीपी असहाय हो जाते हैं और जनता के साथ अब तो अप्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री की नाराजगी का भी शिकार हो रहे हैं। नौकरशाही को उलटा लटकाने जैसे जुमले आखिर सीएस और डीजी को निशाना बनाते हैं। देखा गया है कि जिससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पटरी नहीं बैठी है उन मुखियाओं की विदाई अच्छी नहीं हुई है। इसके विपरीत जिनसे तालमेल अच्छा रहा है उनका रिटायरमेंट के बाद भी पुनर्वास हो गया है।
मध्यप्रदेश में नौकरशाही बेलगाम है। इस पर किसी को शंका नहीं है लेकिन इसके इलाज के लिए कलेक्टर - एसपी की नियुक्तियां प्रशासनिक योग्यता को ध्यान में रखकर करनी होंगी। मगर अब यह मौका भी हाथ से निकल गया है क्योंकि अगले साल चुनाव हैं और सारी जमावट चुनाव के नजरिए से होगी। ऐसे में वे अधिकारी ज्यादा पसंद किए जाएंगे जो चुनाव जिताने में सहयोग करें।
14 वर्षों से विपक्ष में रहने वाली कांग्रेस अब थोड़ा सा संजीदा नजर आ रही है। राजनैतिक और कार्यकर्ताओं के फीडबैक के बाद पार्टी हाईकमान ने प्रदेश कांग्र्रेस के कोच यानी प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश को बदल दिया है। उन्हें कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह तक पसंद नहीं करते थे। कांग्रेस के गलियारों में तो यह भी कहा जाता है कि जहां जहां मोहन प्रकाश गए वहां रोशनी कम अंधेरा ज्यादा हुआ। अब उनकी जगह दीपक ने ली है। एक और चर्चा है कोच के बाद कप्तान को बदलने की। अगर कप्तान भी बदले गए तो यह समझा जाएगा कि कांग्रेस अगला चुनाव गंभीरता से लडऩे के मूड में है। फिलहाल दीपक बाबरिया के साथ दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा भी सियासी हलकों में चर्चा का विषय बनी है। हर कोई जानता है कि दिग्विजय कोई भी बात बिना किसी मतलब के नहीं करते। जाहिर है उनकी नर्मदा यात्रा के भी मतलब होंगे। छह माह चलने वाली यह धार्मिक यात्रा अगले चुनाव में कांग्रेस को अच्छे नतीजा देने वाली हो सकती है।
लेखक आईएनडी 24 न्यूज चैनल समूह के प्रबंध संपादक हैं और यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।
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