Breaking News

पारिवारिक अदालतें नहीं मान रहीं सुप्रीम आदेश, कैसे बचेगी न्याय व्यवस्था

खास खबर            May 26, 2025


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तारीख पर तारीख में उलझी भरण-पोषण की कानूनी लड़ाई पर चिंता जताई है। कहा कि पारिवारिक अदालतों की सुस्ती सुप्रीम आदेशों की अवहेलना है। अगर संविधान की शपथ लेकर बैठे न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मानेंगे तो न्याय व्यवस्था कैसे बचेगी? इससे पीड़ित महिलाओं का गरिमामयी जीवन प्रभावित हो रहा है।

इस तल्ख टिप्पणी संग न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की अदालत ने औरैया के याची पति की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी। साथ ही मुख्य न्यायाधीश से पारिवारिक अदालतों की लेटलतीफी का संज्ञान लेने का अनुरोध किया है। कोर्ट ने कहा, ‘यह समझ से परे है कि प्रशिक्षित न्यायिक अधिकारी सुप्रीम कोर्ट जैसे सांविधानिक न्यायालय के आदेशों का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं। न्यायिक निर्देश कोई सलाह नहीं, बल्कि बाध्यकारी आदेश होते हैं।’

एक जज पर 1,500 से 2,000 मुकदमों का बोझ

इससे पहले कोर्ट ने प्रदेश के सभी परिवार न्यायालयों में लंबित मुकदमों की जानकारी तलब की थी। कोर्ट ने पाया कि प्रयागराज, आगरा और महराजगंज जैसे जिलों में 1,500 से 2,000 तक मुकदमे एक-एक जज के पास लंबित हैं। 23 मई 2024 तक 74 में से केवल 48 अदालतों ने अनुपालन रिपोर्ट सौंपी, जिसमें से कई ने सिर्फ औपचारिक हलफनामे पेश किए। सुनवाई को बार-बार टालना ‘प्रक्रियात्मक कुप्रबंधन’ ही नहीं, बल्कि न्याय देने से इन्कार करने के बराबर है।

 अदालतें नहीं मान रहीं सुप्रीम आदेश

 कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से रजनीश बनाम नेहा के फैसलों का जिक्र कर कहा कि भरण-पोषण के मामले में पति-पत्नी की आय, संपत्ति और दायित्व का हलफनामा लेकर ही गुजारा-भत्ता तय किया जाना चाहिए। लेकिन, प्रदेश की अदालतें न इस प्रक्रिया का पालन कर रही हैं और न ही जिम्मेदारी निभा रही हैं।

 अदालत की टिप्पणियां

1.यह समझ से परे है कि प्रशिक्षित जज सुप्रीम कोर्ट जैसे सांविधानिक न्यायालय के आदेशों की अनदेखी क्यों कर रहे हैं।

  1. न्यायिक आदेश कोई सलाह नहीं, उनका पालन बाध्यकारी होता है।
  2. यह केवल वैधानिक संकट नहीं, बल्कि नैतिक विफलता भी है।

 


Tags:

allahabad-highcourt malhaar-media strict-order-of-supreme-court familya-court-

इस खबर को शेयर करें


Comments