बदहाल ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर मप्र सरकार से हाईकोर्ट ने किया जवाब तलब

खास खबर            Jul 19, 2024


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

मध्यप्रदेश में बदहाल ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर हाईकोर्ट इंदौर ने प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है। गांधीवादी विचारक एवं लेखक चिन्मय मिश्र ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में जनहित याचिका प्रस्तुत की थी।

इसपर आज उच्‍च न्यायालय की युगल पीठ, जस्टिस एस.ए. धर्माधिकारी तथा जस्टिस दुपल्ला वेंटक रमन्ना ने नोटिस जारी कर मध्‍यप्रदेश सरकार से जवाब मांगा है।

याचिकाकर्ता चिन्‍मय मिश्र की ओर से अधिवक्ता अभिनव धनोड़कर द्वारा पैरवी की गई थी।

याचिका के पक्ष में तर्क दिया गया कि स्वास्थ्य का अधिकार तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभ तथा पूर्ण उपलब्धता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन जीने के अधिकार की श्रेणी में आता है। यह एक मौलिक अधिकार है तथा सरकार का यह दायित्व है कि ग्रामीण इलाकों में व्याप्त बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में तुरंत सुधार करे।

याचिका का आधार यह है कि मध्यप्रदेश के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मध्यप्रदेश में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की नींव माना जाने वाला एक भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर, प्राइमरी हेल्थ सेंटर या सब सेंटर भारत शासन के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड के अनुसार कार्यरत नहीं हैं। इन सेंटर्स में न तो उपयुक्त सुविधाएं हैं और न ही डॉक्टर तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मी उपलब्‍ध हैं।

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं पर तथा महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। शिशु मृत्यु दर जहां सम्पूर्ण भारत में 32 प्रति 1000 है वही मध्य प्रदेश में यह 48 है। माताओं में मृत्यु दर सम्पूर्ण देश में 113 है वही मध्यप्रदेश में 173 है। साथ ही साथ ग्रामीण इलाकों में केवल 55 फीसदी महिलाओं की ही प्रसव के दौरान 4 बार देखरेख हो पाती है।

जहां तक गर्भावस्‍था के समय में आयरन फौलिक एसिड हर गर्भवती महिला के लिए आवश्‍यक होता है लेकिन यह केवल 10 फीसदी गर्भवती महिलाओं को ही मिल पाता है। ग्रामीण प्रदेश की 70 फीसदी महिलाएं इससे वंचित रहती हैं, जिसका विपरीत प्रभाव उनपर तथा उनके होने वालों बच्चों पर पड़ता है। केवल 42 फीसदी महिलाओं द्वारा ही प्रसव के 1 घंटे के भीतर नवजात जो स्तनपान करवाया जाता है। मध्य प्रदेश में 58 फीसदी से अधिक महिलाएं खून की कमी से प्रभावित हैं।

2019-21 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मध्य प्रदेश में 309 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर है, जिसमें हर एक सेंटर में एक फिजिशियन, एक सर्जन, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ तथा एक बच्चों के चिकित्सक की नियुक्ति होना आवश्यक है, परन्तु 309 में से एक भी ऐसा कम्युनिटी हेल्थ सेंटर नहीं है, जहां इस सब की नियुक्ति हो। कुल मिलाकर 324 सर्जन की नियुक्ति की आवश्यकता है, उनमें से केवल 7 की ही नियुक्ति हुई है और 302 पद खाली हैं। 324 जनरल फिजिशियन की नियुक्ति की आवश्यकता है, उनमें से केवल 7 की ही नियुक्ति हुई है और बाकी 302 पद खाली हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ में 324 में से केवल 21 पद भरें हैं बाकी 303 पद खाली हैं।

बच्चों के विशेषज्ञों हेतु आवश्यकता 309 नियुक्तियों की है, परन्तु केवल 60 पद ही स्वीकृत हैं, जिनमें से भी केवल 11 पर ही नियुक्तियां हुई हैं। सबसे चौकाने वाले स्थिति यह है कि, मध्य प्रदेश में एक भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं है और केवल 5 ही एनेस्थेटिस्ट नियुक्त हैं।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मध्य प्रदेश में 28 फीसदी सब सेंटर्स की कमी है, 47 फीसदी प्रायमरी हेल्थ सेंटर तथा 45 फीसदी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की कमी है। रिपोर्ट के अनुसार जितने भी सेंटर हैं, उनमें से एक भी सेंटर इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार कार्यरत नहीं है।

हर सेंटर में कोई ना कोई कमी है जिसके कारण मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ बदहाल स्थिति है, और इसका विपरीत प्रभाव सबसे अधिक महिलाओं और बच्चों पर पड़ रहा है।

 


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