राम मोहन चौकसे।
बुरा जो देखन मैं चला
जाने कहाँ गए वो लोग
सुख और दुःख जीवन के दो पहलू हैं। सुख में बुलाने पर शामिल होना उचित माना जाता है। दुःख में बिना बुलाए जाने को न्याय एवं तर्कसंगत माना जाता है। किसी व्यक्ति के निधन को दुःख की पराकाष्ठा मानी जाती है। हिन्दू धर्म मे मृत व्यक्ति की शवयात्रा में शामिल होकर अर्थी को कंधा देना बहुत पुण्य का कार्य माना जाता है। राजधानी भोपाल में ऐसा पुण्य कमाने वाले कुछ लोग हैं,जो सैंकडों शवयात्रा के भागीदार बन चुके हैं।
किसी परिवार में मृत्यु होने पर शोकाकुल परिवार को ढांढ़स बंधाने वालों में सगे सम्बन्धियों के अतिरिक्त कुछ ऐसे लोग भी होते है ,जो रिश्तेदार अथवा पड़ोसी भी नहीं होते है। यह लोग मृतक की अंतिम यात्रा की तैयारी परिवार के सदस्य से बढ़कर करते हैं।
भोपाल में ऐसे लोग अभी भी ऐसे कार्य मे लगे है। कुछ लोग यह सेवा कार्य करते हुए दुनिया को अलविदा कह चुके हैं।
भोपाल में ऐसे लोगों में शुमार है स्व.बलभद्र तिवारी। हाथीखाना में रहने वाले एक साप्ताहिक अखबार के सम्पादक तिवारी जी पत्रकार जगत में किसी परिजन की मृत्यु होने पर सबसे पहले पहुंचने वाले व्यक्ति होते थेA
शोकाकुल परिवार से पूछकर अंतिम यात्रा की पूरी तैयारी करते थे। बाजार से अर्थी की सामग्री, बांस, कलावा, घी, राल, गुलाल,फूलमाला मंगाने से लेकर श्मशान घाट में चिता की तैयारी उनकी चिता का विषय थी।
तिवारी जी जब तक जीवित रहे।उनका यह नेक काम चलता रहा। तिवारी जी के निधन के बाद यह कार्य बड़े भैया के नाम से चर्चित डॉ सुरेश नारायन शर्मा ने संभाल लिया।
हाथीखाना में ही रहने वाले डॉ शर्मा नवभारत समाचार पत्र के खेल सम्पादक तथा भोपाल की कई खेल संस्थाओं के पदाधिकारी थे। डॉ सुरेश शर्मा 'बड़े भैया' बेहद हंसमुख,लोकप्रिय एवं मिलनसार थे।पूरी जिंदगी बड़े भैया ने इस काम को बखूबी निभाया।
भाजपा के पूर्व विधायक शैलेन्द्र प्रधान,रमेश शर्मा गुट्टू ने भी शवयात्रा में शामिल होने का रिकार्ड बनाया। विधायक बनने के बाद उनका यह क्रम थम गया।
इसी सिलसिले में कर्मचारी नेता अजय श्रीवास्तव नीलू का नाम आता है। तलैया निवासी नीलू ने बरसो इस परिपाटी को निभाया।अब यदा कदा ही शवयात्रा में दिखाई देते है।वर्तमान में ललित जैन इस परिपाटी का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं।
काजीपुरा निवासी ललित जैन सुप्रसिध्द साहित्यकार स्व.अक्षय जैन के सुपुत्र एवं चेम्बर आफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष हैं।
दवा व्यवसायी ललित जैन प्रति दिन किसी न किसी शवयात्रा में शामिल होते हैं। समाचार पत्र में छपे शोक संदेश उनकी सूचना के आधार होते हैं।
ललित जैन के लिए जरूरी नहीं कि मृतक उनका परिचित था। कभी- कभी एक दिन में दो शवयात्रा में भी शामिल होना पड़ता है। जीवन मे जीने और मरने का क्रम प्रकृति का नियम है।
अंतिम यात्रा में शामिल होने का मौका हर किसी को नहीं मिलता है।जो शामिल होते हैं,वे बिरले होते हैं।
लेखक समरस के प्रधान संपादक हैं।
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