महासमुंद से किशोरकर।
तकदीर उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते।
बस शर्त है खुद में हिम्मत हो और हौसला हो।
ऐसी ही कुछ मिसाल कायम की है छत्तीसगढ़ के महासमुंद की शांति ठाकुर ने। जिनके जन्म से ही दोनों हाथ नहीं हैं।
जन्म से ही दोनों हाथों से 30 वर्षीय शांति बाई ठाकुर महासमुंद सहित पूरे छत्तीसगढ़ में पैर से लिखकर प्रौढ़ शिक्षार्थी के रूप में महापरीक्षा में कामयाबी हासिल इतिहास रच दिया है।
प्रौढ़ शिक्षार्थी के रूप में मशहूर शांति की कहानी एक मिसाल बन गई है जो लाखों लोगों को जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
शांति का जन्म महासमुंद ज़िले के बागबाहरा के दैहानीभाठा में हुआ। जन्म से ही इनके दोनों हाथ नहीं थे।
एक समय था जब शांति के मन में अपनी शारीरिक विवशता के कारण आत्महत्या तक के विचार आने लगे थे। मगर परिवार के साथ और इच्छाशक्ति ने शांति को अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
शांति कहती हैं कि विकलांग लोगों को व्हील चेयर देने या उनके लिए कोई इमारत बनाने से बदलाव नहीं आएगा, उन्हें भरोसा देने की जरूरत है कि आप भी कुछ कर सकते हैं। आज शांति सफलता के शिखर पर पहुँचने को आतुर दिखाई दे रही है।
शांति के दोनोे हाथ नहीं होने के बावजूद अपने परिवार के लिए अपने दोनों पैरो से खाना बनाना, खाना खाना, सब्जी, पूड़ी, जीवन की दैनिक कार्य के साथ साथ मोबाइल भी चला लेती है। पति श्री इन्दल ठाकुर मजदूरी का काम कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर कलेक्टर निलेशकुमार क्षीरसागर प्रौढ़ शिक्षार्थी शांति बाई ठाकुर से मिलकर जज़्बे की सराहना की और फूलों का गुलदस्ता भेंट किया। पढ़ने की किताब सौंपी। उन्होंने उनके रहन सहन दैनिक जीवनचर्या के बारे में जानकारी ली।
श्रीमती ठाकुर ने बताया कि उन्हें निराश्रित पेंशन मिलती और शासन की योजना के तहत उन्हें राशन उपलब्ध कराया जाता है। कलेक्टर ने छतीसगढ़ सरकार के अंत्योदय योजना के तहत राशन कार्ड के निर्देश दिए।
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