
पंकल शुक्ला।
तमाम खबरों के बीच यह खबर सुकून देने वाली है कि इंदौर का सिरपुर तालाब अब रामसर साइट बन गया है। 
इंदौरवासियों के प्रयत्नों को बधाई देने के पहले यह जान लें कि रामसर साइट होती क्या है।
यह एक वेटलेंड (आर्द्रभूमि स्थल) होता है जिसे रामसर कन्वेंशन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व के लिए नामित किया जाता है। "द कन्वेंशन ऑन वेटलैंड्स" यूनेस्को द्वारा 1971 में स्थापित एक अंतर सरकारी पर्यावरण संधि, जो 1975 में लागू हुई थी।
कैस्पियन सागर के तट पर ईरान में स्थित रामसर नामक जगह पर इस संधि पर हस्ताक्षर होने के कारण इस संधि के तहत चुने गए स्थलों को रामसर साइट कहा जाता है।
भारत सरकार ने 1 फरवरी, 1982 को इस संधि पर हस्ताक्षर कर इसे अपनाया है।
भारत में रामसर स्थलों का दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा नेटवर्क है।
भारत में अब तक 54 ऐसे रामसर स्थल हैं, जिनमें से पहले दो थे- केवलादेव घाना (भरतपुर) और चिलिका झील (उड़ीसा)।
मध्यप्रदेश में भोपाल का बड़ा तालाब लंबे समय तक इकलौता रामसर स्थल बना रहा।
हाल ही में जुलाई, 2022 में शिवपुरी की सांख्य सागर झील और अब इंदौर के सिरपुर तालाब को रामसर साइट चुना गया। इस तरह मध्यप्रदेश में तीन रामसर साइट हो गई हैं।
अब सिरपुर एक विश्वस्तरीय पक्षी विहार घोषित हो चुका है तो इसके पीछे पर्यावरण समर्पित कुछ लोगों का अथक परिश्रम है।
यह सच ही साबित होता है तब सिरपुर तालाब को रामसर साइट घोषित करने की सूचना पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए पद्म श्री Bhalu Mondhe (भालू मोंढे) जी लिखते हैं - 'आख़िर हमारी साधना, हमारी चालीस वर्षों की तपस्या रंग लाई।
सन् 1980 में मैंने और कुछ वर्ष पश्चात वरिष्ठ पत्रकार Abhilash Khandekarr (अभिलाष खांडेकर) जी ने मिलकर यह सिरपुर संरक्षण अभियान शुरू किया था, जिसे रफ़्तार देने के लिए सन् 1992 में 'द नेचर वॉलंटीयर्ज़' नाम की संस्था बनाई गई, जिसे TNV के नाम से बेहतर जाना जाता है। '
पिछले 40 वर्षों से श्री मोंढे स्वयं और संस्था टीएनवी पिछले 30 वर्षों से सिरपुर पक्षी विहार को बचाने, संवारने के लिए सघन संघर्ष कर रहे हैं।
इन प्रयासों से सन् 2016 में IBA यानि इंपॉर्टेंट बर्ड एरिया घोषित करवाने में सफलता मिली थी।
हाल ही में सिरपुर पर आसपास की झुग्गियों के कारण और अन्य लोगों की लापरवाही के चलते जलकुंभी और अन्य समस्याओं का गंभीर आक्रमण-सा हो गया है जो चिंता का सबब है।
इसे बचाने के लिए एक जन-आंदोलन अत्यंत आवश्यक है।
श्री मोंढे ने सभी इंदौरवासियों से आग्रह किया है कि अब तो घरों से बाहर निकलकर तालाबों को बचाने में भाग लीजिए।
अपनी व्यस्त जीवनचर्या में से कुछ पल निकालकर सिरपुर को स्वर्ग बनाएं क्योंकि पक्षियों, मेंढकों, तितलियों, कीटकों, व मछलियों को बचाने तथा जल का संरक्षण करने से ही हमारा भविष्य संवारने में मदद होगी।
अब भोपाल के बड़े तालाब की भी बात कर लें। भोपाल के बड़ा तालाब का परिचय केवल इतना नहीं है कि इसे राजा भोज के नाम से जाना जाता है... यह मानव निर्मित एशिया का सबसे बड़ा तालाब है... इसका आकार 32 वर्ग किलोमीटर में फैला है... यह भोपाल की 40 फीसदी आबादी के लिए पेयजल स्रोत रहा है... प्रतिवर्ष अलग-अलग मौसम में 20 हजार से अधिक प्रवासी पंछी हजारों किलोमीटर का फासला तय कर यहां आते हैं।
भोपाल के बड़े तालाब का अधिक व्यापक परिचय यह है कि यह तालाब 106 प्रकार की जलीय वनस्पतियों और इतनी ही प्रजाति के जलीय प्राणियों की विविधता वाला जलस्रोत है। इसी कारण इसे बचाया जाना चाहिए।
इसे दुर्भाग्य नहीं तो क्या कहें कि न तो इस तालाब के संरक्षण के लिए वेटलेंड नियमों का पालन किया जाता है और न इसे संरक्षित करने के लिए मास्टर प्लान लागू किया गया है।
वीआईपी रोड की ओर कोहेफिजा से लेकर सईद नगर, खानूगांव तक अंदर ही अंदर अतिक्रमण जारी है।
प्रेमपुरा, भदभदा, नेहरू नगर की ओर तालाब में 4 हजार से अधिक झुग्गियां तान दी गई हैं।
बैरागढ़ की ओर डेढ़ दर्जन मैरिज गार्डन बने है तो पुराने भोपाल क्षेत्र से नालों का करीब 20 मिलियन लीटर सीवेज पानी तालाब में मिलता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने तालाब का फिर से सीमांकन कर एफटीएल से 300 मीटर तक तालाब का हिस्सा मानते हुए खाली कराने का आदेश दिया था साथ ही तालाब में मिलने वाले नालों में एसटीपी लगाने के आदेश दिए हैं लेकिन एनजीटी के आदेशों पर सरकार अमल नहीं करा सकी है।
अध्ययन बताते हैं कि फुलटेंक लेवल का 11 फीसदी क्षेत्र अतिक्रमण का शिकार और लापरवाही के कारण बड़े तालाब में 5.9 मीटर से ज्यादा तक गाद जमा हो गई है।
इतने महत्वपूर्ण तालाब की अनदेखी की राजनीतिक और प्रशासनिक चूक इस तालाब का दुर्भाग्य कहा जाना चाहिए।
यह इस तालाब का स्याह पक्ष है कि सरकार और प्रशासन, राजनेता और अफसर तय ही नहीं कर पाते कि तालाब को अपनी धरोहर माने या संपदा।
इसका संरक्षण करें या इसके किनारे पर्यटन जैसी तमाम गतिविधियों को बढ़ावा दे कर अपनी जेब भरें।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक सुबह सवेरे के स्थानीय संपादक हैं।
 
                   
                   
             
	               
	               
	               
	               
	              
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