डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
बॉलीवुड आजकल दो हिस्सों में बंट गया है। एक तरफ वे कलाकार हैं जिन्होंने हाउसफुल 5 में काम किया है और दूसरी तरफ वे कलाकार हैं, जिन्हें इसमें मौका नहीं मिला। फिल्म शुरू होने पर हर कुछ मिनट में कोई कलाकार आ टपकता है और दर्शक के मुंह से निकलता है कि अरे, ये भी हैं इसमें! अक्षय कुमार के साथ रितेश देशमुख, अभिषेक बच्चन, संजय दत्त, फ़रदीन ख़ान, श्रेयस तलपड़े, नाना पाटेकर, जैकी श्रॉफ, डीनो मोरिया, जैकलीन फर्नांडीज, नरगिस फाखरी, चित्रांगदा सिंह, सोनम बाजवा, सौन्दर्या शर्मा, चंकी पांडे, बॉबी देओल, निकितिन धीर, रंजीत ,जॉनी लीवर आदि कलाकार हैं।
इसमें अमर अकबर, एंथोनी की तरह तीन जॉली हैं - पहला जलाबुद्दीन उर्फ जॉली (रितेश देशमुख), दूसरा जलभूषण उर्फ जॉली (अभिषेक बच्चन) और तीसरा जूलियस उर्फ जॉली (अक्षय कुमार)। और इसमें सार्क देशों की यानी श्रीलंका, नेपाल और अफगानिस्तान की हीरोइन भी। ये तीनों अपनी नकली विदेशी बीवियों के साथ बाप से मिलने आते हैं, लेकिन इन्हें दूसरा ही बाप मिल जाता है। यह सस्पेंस, एडल्ट कॉमेडी फिल्म है, दो अर्थों वाले छपरी डायलॉग इसकी खूबी है। कुछ डायलॉग तो ऐसे हैं कि दादा कोंडके अगर जीवित होते तो शर्मा जाते। फूहड़ता शब्दों में ही नहीं, एक्शन में भी दिखाई गई है।
हाउसफुल 5 की कहानी इसके चार मिनट के ट्रेलर में दिखाई जा चुकी है। फिल्म का ज्यादातर हिस्सा क्रूज़ पर फिल्माया गया है। क्रूज़ भी ऐसा जो स्विमिंग पूल, रेस्टोरेंट, बार, पब, डिस्को थेक, अस्पताल, जेल, डीएनए जाँचनेवाली लेबोरेट्री, हेलीपेड आदि की सुविधा देता है। (निर्माता साजिद नाडियाडवाला का बस चलता तो वह क्रूज़ पर ही पेट्रोल पंप, ईवी चार्जिंग स्टेशन, गोल्फ कोर्स, कब्रिस्तान और टोल नाके की महती सुविधाएँ भी दिखा देते!)
फिल्म देखते समय लगता है कि इतने सारे कलाकारों के बोझ से क्रूज़ टाइटैनिक जैसा डूब न जाए ! इस फिल्म में जीवन की नश्वरता का बोध होता है कि कब किस का मर्डर कौन कर दे, पता नहीं! यह भी पता नहीं चल पाता कि कौन इंटरपोल का ऑफिसर है और कौन लंदन पुलिस का! कौन किसकी प्रेमिका है और कौन किसकी बीवी बनकर परदे पर है, यह सब कंफ्यूजियाने वाला है।
इसकी मल्टी-स्टार कास्ट दर्शकों को आकर्षित करती है। यह पहली ऐसी हिन्दी फिल्म है जिसमें दोहरा क्लाइमेक्स है। एक ही दिन, एक ही समय सिनेमाघरों में लगी हाउसफुल 5 A और हाउसफुल 5 B का अलग-अलग क्लाइमैक्स नया और रोचक प्रयोग है। इसमें टाइटैनिक जैसी विजुअल अपील है। क्रूज की सेटिंग और भव्य प्रोडक्शन वैल्यू आंखों को भाती है, खासकर किशोर और युवा दर्शकों को। तेज गति वाला स्क्रीन पर दर्शकों को बांधे रखता है। संगीत ठीक-ठाक है। स्लैपस्टिक हास्य में दोहराव है। साजिद नाडियाडवाला फिल्म के निर्माता और लेखक हैं। लेखकों में फरहाद समजी और निर्देशक तरुण मनसुखानी का नाम भी है।
टाइमपास फिल्म !
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