शिवराज की यूएसपी जनता से जुड़ाव और 24×7 ओवर एक्टिव मोड

मध्यप्रदेश, राजनीति            Jul 01, 2022



ममता मल्हार।
जब आप एक पब्लिक फिगर हैं, जब आप एक सेलिब्रिटी नेता हैं, जब आप एक प्रदेश के चौथी बार मुखिया हैं तो ऐसे में इंसान में दो आदतें आना स्वभाविक हो जाता है।

या तो वह घमंडी होकर जनता से कट जाएगा या सदाबहार अपने पूर्व व्यक्तित्व के अनुरूप ही व्यवहार करेगा।

नेताओं के बारे में आमतौर पर कहा जाता है कि वे जनता से करीब से बावस्ता तभी होते हैं जब चुनावी माहौल होता है। यह बात सार्वभौमिक सत्य भी है कम से कम भारतीय परिदृश्य में।

मगर जब आप नाम लेते हैं शिवराज सिंह चौहान, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का तो एक एक्टिव सीएम, संवेदनशील इंसान और सतत सक्रिय जननेता वाली तस्वीरें आपके जेहन में घूम जाती हैं।

 

 

 

 

 

 

 

चाहे सड़क छाप गुंडों के हमले का शिकार हुई सीमा हों, बोरबेल में गिरा बच्चा हो, चुनावी जनसंपर्क के दौरान व्हीलचेयर पर बैठी महिला हो या जनसंपर्क के दौरान ही कोई बच्चा सामने आ जाए तो उसे खिलाना हो।

वे सबके सर पर प्यार से हाथ रखते हुए ही याद रह जाते हैं।

शिवराज के व्यक्तित्व के ये कुछ ऐसे पहलू हैं, जिन्हें कोई अनदेखा कर ही नहीं सकता, खुद भारतीय जनता पार्टी और उसका हाईकमान भी।

शायद यही कारण है कि करीब चार दशक बाद भी बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने के लिए भाजपा कोई दूसरा चेहरा खोज ही नहीं पाई है।

अच्छे—अच्छे एक्टिव लोग भी एक बार को शिवराज की सक्रियता देखकर कह उठते हैं, ये इतनी एनर्जी लाते कहां से हैं?

सुबह पेड़ लग रहे हैं फिर तुरंत ही मंत्रालय या निवास पर बैठक, फिर इस शहर से उस शहर नगर निगम प्रत्याशियों के लिए जनसभाएं और जनसंपर्क करना।

बतौर इंसान देखा जाए तो हर व्यक्ति की शारीरिक मानसिक उर्जा की एक सीमा होती है।

मगर शिवराज की सक्रियता देखकर लोग कहते हैं कि यह आम मानवीय उर्जा के व्यक्तित्व की सीमा से बाहर की बात है।

एक तरफ विपक्ष है जिसके नेता कमलनाथ यह कह रहे हैं कि वे नगरनिगम चुनावों को गंभीरता से नहीं लेते।

एक तरफ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज हैं जो निकाय चुनावों में भी ऐसे जुटे हुए हैं जैसे यह विधानसभा या लोकसभा चुनाव हों।

भाजपा चुनावी मोड में हमेशा रहती है और वह छोटे से छोटे चुनाव को प्रतीष्ठा का प्रश्न बनाकर आक्रामक मोड में लड़ती है।

यही शिवराज और भाजपा की ताकत और जीत का राज भी है।

वरना यह कोई रॉकेट सांइंस नहीं है कि एक प्रदेश के मुख्यमंत्री को निकाय चुनाव में खुद की इतनी ताकत झोंकने की जरूरत क्या है?

वह भी उस सीएम को जो कि चौथी बार इस पद को सम्हाल रहा है।

इसमें कोई शक नहीं भाजपा का संगठन मजबूत है और संघ परदे के पीछे से उसकी ताकत, मगर सूत्रों की मानें तो इस बार संघ ने हाथ खड़े कर दिए हैं।

ऐसे में ज्यादा जिम्मेदारी संगठन की बनती है कि वह पार्टी को जिताए, ज्यादा से ज्यादा लोगों को पंचायतों और निकायों में लाए।

क्योंकि यही विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की चुनावी रणनीति का रोडमैप साबित होगा।

शिवराज जिस तरह सक्रिय रहते हैं उस कारण भारतीय जनता पार्टी के कई बड़े चेहरे सामने होकर भी सामने नहीं आ पाते और जनता से उस स्तर की कनेक्टिविटी भी नहीं कर पाते।

उदाहरण् 15 महीने की कांग्रेस सरकार के दौरान मंत्री गोपाल भार्गव का नेता प्रतिपक्ष होना और सदन में सक्रियता शिवराज की दिखना।

फिर एक रोड साईड मर्डर में युवक के परिवार को न्याय दिलाने के लिए धरने पर बैठ जाना।

सरकार के लोगों से पहले शोक संतृप्त परिवार के पास मिलने जाना ढांढ़स बंधाना ये सब जैसे उनकी आदत में शामिल है। मुआवजे की घोषणाएं करने में वे एक पल नहीं लगाते।

हालांकि भाजपा की यह संस्कृति रही है कि जब भी कोई दुर्घटना घटी है भाजपा नेता पहले पहुंचते हैं।

सरकार कांग्रेस की थी लेकिन गणेश विसर्जन के दौरान नाव दुर्घटना होने के दौरान तत्कालीन सांसद आलोक संजर और अन्य भाजपाई नेता पहुंचे थे।

बाद में शिवराज ने मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने आवाज उठाई और उठाते रहे।

मार्च 2020 में चौथी बार शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बने। साल 2005 से 2018 के बीच तीन बार सीएम की कुर्सी संभाल चुके हैं।

वे सबसे लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बना चुके हैं। पांच बार संसद सदस्य रहने के साथ बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, संसदीय बोर्ड और बीजेपी के केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य भी रह चुके हैं।

यह कुछ ऐसे तथ्य हैं जिन्हें जानकर भी अनेदखा नहीं किया जा सकता। लगातार सुप्तावस्था में सोए विपक्ष पर निकाय और पंचायत चुनाव में शिवराज ऐसे हमलावर हैंं जैसे खुद विपक्ष में खड़े हों।

हर शहर में वे लगभग सारे नगर—निगम प्रत्याशियों के लिए व्यक्तिगत कैंपेन कर रहे हैं।

कमलनाथ की 15 महीने की सरकार के दौरान की गई एक—एक गलती को वे जनता के बीच इस तरह दोहराते हैं कि जनता भूल भी गई हो तो फिर याद कर ले।

जब वे चुनावी मैदान में जनता के बीच जाते हैं तो मुख्यमंत्री कम मामा शिवराज ज्यादा लगते हैं।

आप मानें न या न मानें मगर आज का सच यही है कि अगर भाजपा 24 घंटे 7 दिन चुनावी मोड में रहती है। तो मध्यप्रदेश में शिवराज के 24 घंटे 7 दिन ओवर एक्टिव मोड का भी उसके पास फिलहाल कोई विकल्प नहीं है।

यही भाजपा की यूएसपी है और यही कमजोरी भी मान सकते हैं।

शिवराज मुख्यमंत्री होकर भी जनता को उसके बीच के लगते हैं, मध्यप्रदेश में समस्याएं बहुत हैं मगर वह जब भी वे जनता के बीच एक मुस्कान के साथ जाते हैं तो उनकी सिर्फ वही तस्वीरें सामने आती हैं जिनमें वे जनता के ज्यादा करीब दिखें।

हालांकि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा को भी जमीनी हकीकत की तरफ ध्यान देना होगा। क्योंकि दशकों से समर्पित कार्यकर्ता कॉर्नर कर दिए जाने से नाराज है।

जनता जनसंपर्क में तो हंसकर मिल लेगी मगर उसका गुस्सा वोटिंग में दिख सकता है। 2018 के परिणामेां को भाजपा को भूलना नहीं चाहिए।

 

 



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