मल्हार मीडिया भोपाल।
देशभर में 1 जुलाई से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS),क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) लागू हो चुका है।
इन सभी कानूनों के नवीन प्रावधानों व विवेचना के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के संबंध में भोपाल स्थित पुलिस परिवहन शोध संस्थान में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। 12 जुलाई को महिला सुरक्षा शाखा, पुलिस मुख्यालय द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्यअतिथि एडीजी महिला सुरक्षा शाखा प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने सर्वप्रथम मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित विधि अधिकारी अजाक विजय बंसल का पौधा भेंटकर स्वागत किया। इस अवसर पर आईजी हिमानी खन्ना और एआईजी किरणलता केरकेट्टा उपस्थित रहींं।
यह प्रशिक्षण नए कानूनों की जानकारी प्रदान करने में सहायक
श्रीमती श्रीवास्तव ने कार्यक्रम में उपस्थित पुलिसकर्मियों से कहा कि हम जब भी कोई प्रकरण दर्ज करें या नोटशीट तैयार करें तो हमें पता होना कि नए कानूनों के अनुसार किस तरह की प्रक्रिया अपनाई जाएं और किन बदली हुई धाराओं और कार्यप्रणाली का प्रयोग किया जाए। हमें यह पता होना चाहिए कि नए कानूनों में क्या परिवर्तन हुए हैं। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम पुलिसकर्मियों को नए कानूनों के बारे में जानकारी प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगा।
तीनों कानूनों में किए गए बदलाव
कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता और विधि अधिकारी अजाक विजय बंसल ने बताया कि आईपीसी में 511 धाराएं थी, जिन्हें भारतीय न्याय संहिता में घटाकर 358 कर दिया गया है साथ ही सभी परिभाषाएं एक ही जगह लिखी गई हैं। बीएनएस में 21 नए अपराध जोड़े गए हैं और 41 अपराधों में सज़ा की सीमा बढ़ाई गई है। बीएनएस में 62 मुख्य बदलाव किए गए हैं। वहीं इसमें महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले सभी अपराधों को अध्याय-5 में स्थान दिया गया है। उन्होंने बताया कि पूर्व में सीआरपीसी में 484 सेक्शन थे, जिन्हें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में बढ़ाकर 531 कर दिया गया है। BNSS में कुल 177 प्रावधान बदले गए हैं । इसमें 9 नई धाराओं के साथ-साथ 39 नई उपधाराएं भी जोड़ी गई हैं साथ ही कुल 14 धाराएं निरस्त और हटा दी गई हैं। इसी प्रकार पहले एविडेंस एक्ट में 167 सेक्शन थे, जिन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम में बढ़ाकर 170 कर दिया गया है। साथ ही 24 सेक्शन में बदलाव किया गया है।
राजद्रोह की जगह देशद्रोह
मॉब लिंचिंग को परिभाषित करते हुए इसके लिए भी कड़े कानून बनाए गए हैं। अब इसके लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास तक की सजा तय की गई है। अंग्रेजों द्वारा अपने शासन की रक्षा के लिए बनाए राजद्रोह के कानून को पूर्णत: समाप्त करते हुए ‘भारत सरकार’ की जगह ‘भारत’ की एकता, अखंडता व संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने वाले अपराध को देशद्रोह घोषित किया गया है। देश के बाहर भी भारत की किसी भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और बम विस्फोट करने को आतंकवादी कृत्य माना जाएगा। नए कानून में आतंकवाद को विधिवत परिभाषित करते हुए गंभीर अपराध घोषित कर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। वहीं दस्तावेज के रूप में डिजिटल व इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को भी शामिल किया गया है। तलाशी व जब्ती की प्रक्रिया की वीडियो-ऑडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य की गई है। उन्होंने बताया कि 7 साल से अधिक सज़ा के मामलों में फोरेंसिक साक्ष्य एकत्रीकरण के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञ का अपराध स्थल पर दौरा अनिवार्य है।
दंड के बजाय न्याय पर जोर
उन्होंने बताया कि नई परिभाषा के अनुसार धारा 2(10) के अंतर्गत "लिंग" में अब महिला व पुरुष के साथ ही ट्रांसजेंडर को स्थान दिया गया है वही धारा 2(3) के अंतर्गत 18 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को "अवयस्क" की श्रेणी में आएंगे। नए कानून में पहली बार झपटमारी (छिनैती) को शामिल करते हुए गंभीर अपराध की श्रेणी में रखकर 7 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। उन्होंने बताया कि नए कानूनों में दंडात्मक उपायों का विकल्प प्रदान करके पुनर्वास पर भी जोर दिया गया है।
जहां पहली बार अपराध करने पर कई धाराओं के माध्यम से सामुदायिक सेवा और परामर्श जैसी सजा का प्रावधान करके दंड के बदले न्याय पर जोर दिया गया है, वहीं 3 वर्ष तक की सजा वाले अपराधों में विकलांग और 60 वर्ष तक की आयु वाले आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की पूर्व अनुमति आवश्यक कर दी गई है। नए कानूनों में एफआईआर से 90 दिन तक पीड़ित द्वारा मांगे जाने पर उसे अन्वेषण की प्रगति की सूचना देना होगा वहीं नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति का भी अधिकार नए कानून के अंतर्गत दिया गया है।
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