एक तरफ पूरे देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, तिरंगा फहराने का अभियान चल रहा है वहीं दूसरी तरफ बुंदेलखंड के जालियावाला बाग गोलीकांड चरणपादुका स्मारक सिंहपुर (छतरपुर) की अस्मिता को सरकारी तंत्र और नेताओं केप्रश्रय में फलते-फूलते रेत माफियाओ के सामने गिरवी रख दिया गया है।
स्मारक की बॉउंड्री वाल के किनारे अवैध खनन कर लाई गई बालू रेत को डंप किया जा रहा है और पूरा तंत्र सबूतों के बाद भी कठपुतली बना हुआ है।
छतरपुर जिले में रेत माफिया, ताकतवर नेताओं और रेत माफियाओं के तानेबाने से उजड़ती नदियों के मामले कई मर्तबा उजागर हो चुके है।
यहीं पैकेर्जिंग का कमाल है कि बारिश के दिनों में नदियों से रेत खनन पर प्रतिबंध है और बेखौफ होकर बेधडक अवैध उतखनन जारी है।
इतिहास के पन्ने पलटते हुए 14 जनवरी 1931 मकरसंक्रति को याद करें। छतरपुर जिले के नौगांव अनुभाग के उर्मिल नदी के किनारे बसे ग्राम सिंहपुर में अंग्रेजी शासन के अनर्गल टेक्स के विरोध में सभा चल रही थी।
इसकी खबर अंग्रेजी हुकूमत को मिलते ही पॉलीटिकल एजेंट कर्नल फिसर अपने लाव लश्कर सहित सभा स्थल पर पंहुचा और ताबड़तोड़ गोलियाँ चलवाना शुरु कर दीं जिसमें चार लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए।
तभी से सिंहपुर गोलीकांड को जालियावाला बाग हत्याकांड की उपमा से पहचान मिली।
यहाँ शहीदों की याद में स्मारक बना हुआ है जो संरक्षित क्षेत्र घोषित है, इस स्मारक पर वर्ष भर कई आयोजन होते है।
आज यही संरक्षित क्षेत्र रेत माफियाओ की गिद्ध दृष्टि का शिकार है। स्मारक स्थल से चंद दूरी पर उर्मिल नदी बहती है।
इस नदी का रेत खनन के लिये कभी भी वैधानिक ठेका नहीं होता। सिंहपुर क्षेत्र को छोड़ उर्मिल नदी से अवैध उतखन्न कर कई सत्ता से जुड़े लोग करोड़ों के मालिक हो गये।
इस मर्तबा रेत माफियाओं ने सिंहपुर क्षेत्र की उर्मिल नदी को भी नहीं छोड़ा,जहाँ से अवैध उतखन्न जारी है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के अध्यक्ष शंकर सोनी बताते हैं कि उर्मिल नदी से अवैध बालू रेत निकाल कर स्मारक की बाउंड्री वाल के किनारे रेत को डंप किया जा रहा है।जिससे स्मारक क्षेत्र का निर्माण कार्य क्षतिग्रस्त हो रहा है।
इस गंभीर मामले से अधिकारियों को अवगत कराया गया, वे मौके पर पहुंचे तो लेकिन उन्हें माफिया नजर नहीं आये। डंप की गई बालू रेत मिली लेकिन उसे जप्त नहीं किया गया।
प्रशासन ने यह पता करने की भी कोशिश नहीं की कि यह रेत किन माफियाओं ने एकत्रित की है।
बालू रेत चोरी के सबूत तो अधिकारियों के सामने थे पर चोर को पकड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई।
आजादी के अमृत काल में स्वतंत्रता संग्राम के शहीद स्थल की अस्मिता के साथ खिलवाड़ और छतरपुर जिले का प्रशासन माफियाओं के सुर में ख़ुद के सुर को मिला चुका हो तो इस आजादी के अमृत काल के क्या मायने हैं।
असल में अमृत तो अधिकारियों, नेताओं और माफियाओं का संगठित गिरोह पी रहा है।
घर—घर तिरंगा फहराने का अभियान चल रहा है पर सवाल है कि जब उस तिरंगे की शान में अपने काले कारनामो से मान रखा जा रहा हो तो इस तरह के अभियान मात्र औपचारिक है।
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