अन्य पेशेवरों की तुलना में पत्रकारों को पाकिस्तान में ज्यादा खतरा
मीडिया
Nov 04, 2015
मल्हार मीडिया डेस्क
पाकिस्तान प्रेस फाउंडेशन (पीपीएफ) के मुताबिक, साल 2001 से अब तक 71 खबरनवीस (पत्रकार) व मीडियाकर्मी अपनी जिम्मेदारियां निबाहने के दौरान जिंदगी गंवा बैठे। इनमें से 47 को जान-बूझकर निशाना बनाया गया। उनका कत्ल इसलिए हुआ, क्योंकि वे ईमानदारी से अपना काम कर रहे थे। वहीं बाकी खबरनवीसों के कत्ल के पीछे यह वजह थी कि वे बड़े ही खतरनाक एसाइनमेंट पर थे। जो रिपोर्ट आई है, वह बताती है कि खबरनवीसों को आठ चीजों से खतरा है: दहशतगर्द, सियासी गठजोड़, मजहबी जमात, सांप्रदायिक समूह, कबाइली गुट, सामंती लोग, तानाशाह व कायदे-कानून लागू करने वाली एजेंसियां।
खतरों में शामिल हैं: हत्याएं, बेवजह की गिरफ्तारियां, अगवा करना व उन पर जुल्म ढाना। खबरनवीसों को खतरनाक इलाकों में भी जानकारी जुटाने के लिए जाना पड़ता है। मगर पाकिस्तान में पत्रकारों को जो खतरा है, वह अन्य पेशेवर लोगों की तुलना में ज्यादा है, और यह बड़ी समस्या है।
वैसे तो पाकिस्तान, सीरिया-इराक या अफगानिस्तान नहीं है। हुक्मरान ये भूल जाते हैं कि बोलने की आजादी का गला दबाने और जवाबदेही के नाम पर वे खबरनवीसों को कम ही जानकारी तक पहुंचने देते हैं। उन पर सरकारी व गैर-सरकारी तत्वों का खतरा बना रहता है। कोशिश यही रहती है कि कलम पर पहरा रहे और रिपोर्टिंग भेदभाव से भरी हो। आधी-अधूरी रिपोर्ट और सनसनीखेज खबरों के लिए इस इंडस्ट्री की पुरजोर मजम्मत की जाती है, मगर जब असल मसले दबाए जाएंगे और जान पर खतरा बना रहेगा, तो फिर बेकार के मसले ही खबरे बनेंगे।
जहां तक खबरनवीसों की मौत का मसला है, तो महज दो मामलों में ही जुर्म साबित हुआ है, जबकि पीपीएफ के मुताबिक, मीडियाकर्मियों के खिलाफ हिंसा-फसाद के 384 मुकदमे दर्ज हैं। यों तो मीडिया को आजाद, ताकतवार और ख्याल बनाने-परोसने वाला बताया जाता है, पर असल स्थिति यह नहीं। पीपीएफ का कहना है, ‘आजाद मीडिया जम्हूरियत के लिए जरूरी है, क्योंकि यह व्यवस्था में पारदर्शिता व जवाबदेही लाता है और इनका होना आर्थिक बेहतरी की पहली शर्त है।’
साभार लाईव हिंदुस्तान
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