ओम थानवी।
नीलाभ चले गए। उनकी बीमारी की ख़बर के पीछे न रहने की ख़बर आई। अपनी तरह के मस्त-मौला शख़्स थे। कविता, गद्य से लेकर अनुवाद और सम्पादन तक हर काम बड़े परिश्रम से करते थे। हिंदी-उर्दू और अंगरेज़ी अच्छी जानते थे। उनके काव्य से उनका गद्य मुझे सरस लगता था।
ज्ञानरंजन पर संस्मरण की उनकी एक किताब इसका प्रमाण है। उन्होंने बीबीसी में प्रसारण, वर्धा विश्वविद्यालय में मौखिक साहित्य संग्रह और वाणी प्रकाशन में सम्पादन का काम किया। अभी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका 'रंगप्रसंग' का सम्पादन कर रहे थे।
उन्होंने अनेक अनुवाद किए, जिनमें अरुंधती राय के उपन्यास 'गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्ज़' का अनुवाद प्रसिद्ध है। उन्होंने पाब्लो नेरुदा की कविता 'हाइट्स ऑफ़ माचू-पिच्चू' के धर्मवीर भारती और कमलेश के अनुवादों से असंतुष्ट होने पर तीसरा अनुवाद ख़ुद कर डाला था; जब मैं पेरू गया तो उन्होंने अपनी उस किताब की फ़ोटोप्रति मुझे दी जिसे मैंने माचू-पिच्चू के शिखर पर बैठकर पढ़ा!
उनके पिता उपेन्द्रनाथ अश्क़ से भी मेरा सम्पर्क रहा। ख़ासकर चंडीगढ़ के दिनों में। नीलाभ का गद्य पिता से बिलकुल अलग और आधुनिक था। बाद के वर्षों में नीलाभ अपने नाम के साथ पिता का तख़ल्लुस लिखने लगे थे।
लोगों को पता होगा कि नीलाभ ने मेरी किताब 'मुअनजोदड़ो' का अंगरेज़ी में अनुवाद किया है। किताब को अद्यतन करने की चाह में - मेरी कहिली से - अनुवाद अब तक छप नहीं सका। इसका मुझे मलाल रहेगा। अब छपेगा, पर अफ़सोस यही कि उनके रहते नहीं, उनकी याद में।
फेसबुक वाल से
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