चकरघिन्नी
शराब माफिया शिवहरे के परिवार में 17 अधीमान्यता प्राप्त पत्रकार! आम लोगों को खबर चौकाने वाली लग सकती है, लेकिन जो जनसम्पर्क की गतिविधियों से वाकिफ हैं (लीडिन्ग अखबारों के श्रमजीवी पत्रकार), उन्हें इस बात पर रत्तीभर भी अचरज नहीं हुआ होगा। कारण, वह जानते हैं कि मप्र जनसम्पर्क से हकीकी पत्रकारों के अलावा सभी लोगों के अधिमान्यता कार्ड आसानी से जारी हो जाते हैं। बीस बरस से अधिक की मेरी अखबारी सेवाएं, खाते में दर्जनभर लीडिन्ग न्यूज़ पेपर्स में नौकरी का सन्तोश, लेकिन साथ अधिमान्यता तमगे से खाली।
जिन सन्स्थान में काम किया, वहाँ के मालिक से लेकर परिवार तक और करीब या दूरदराज के रिश्तेदारों से लेकर घरेलू नौकर, चपरासी, ड्राइवर, माली तक पहले उस कोटे में खप जाते हैं, जो जनसम्पर्क विभाग किसी अखबार के लिए तय करता है। बची कसर 'दहकती आग, बहकती कलम, उगलते अन्गारे, चलती राहें या फूलती सान्से' आत्मा का तांडव, वांटेड टाईम्स जैसे टाइटल वाले सौदेबाज अखबारों ने पूरी कर दी है। अकेले भोपाल में ही ऐसे गैर पत्रकारों के साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्रों की तादाद पाच हज़ार पार है। जनसम्पर्क के लालचखोर बाबुओं और मतलब परस्त पत्रकारों(?) की जुगलबन्दि ने अधिमान्यता की रेवड़ियाँ भी कसरत से बान्टि हैं। हालात आज या कल के नहीं हैं, बरसों से ढर्रा चल रहा है, आगे भी जारी रहेगा।

पुछल्ला
वेबसाइटों और बन्द पड़े न्यूज़ चैनलों को जारी करोड़ों रुपए के इश्तहारों पर हो-हल्ला करने वाले यह खबर शायद नहीं रखते हैं कि मप्र जनसम्पर्क हरदिन चालीस से पचास लाख रुपए के विज्ञापन जारी करता है। छोटे, बड़े, नामवर, गुमनाम सारे अखबार इसमें शामिल। सबसे तयशुदा कमिशन हरदिन बाबू से लेकर बड़े साहब की टेबल पर पहुंच रहा। कमिशन का प्रतिशत है तीस से पैतिस फिसदि। है कोई हिम्मतवर, आगे बढ़े, रोक ले इस गोरखधंधे को!
Comments