मोबाइल इंटरनेट और ब्रॉडबैंड में पिछड़ा भारत,रैंकिंग 131
मीडिया
Sep 25, 2015
मल्हार मीडिया डेस्क
मोबाइल इंटरनेट और ब्रॉडबैंड की पहुँच बढ़ाने की दौड़ में भारत का प्रदर्शन पिछले साल तक काफ़ी ख़राब रहा है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने 189 देशों को शामिल करते हुए ‘द स्टेट ऑफ़ ब्रॉडबैंड 2015’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, ब्रॉडबैंड पहुंच के मामले में भारत की रैंकिंग 2013 के मुक़ाबले 2014 में छह अंक गिरकर 131 पर पहुंच गई।
मोबाइल इंटरनेट के मामेल में भारत 2013 में 113वें पायदान पर था, वहीं 2014 में वह 155वें पायदान पर खिसक गया। भारत की स्थिति श्रीलंका और नेपाल से भी नीचे रही, जिनकी रैंकिंग क्रमशः 126 और 115 है। रिपोर्ट के अनुसार, घरों में इंटरनेट कनेक्शन में बढ़ोतरी के बावजूद 133 विकासशील देशों में भारत पांच पायदान खिसक कर 80 पर आ गया है।
रिपोर्ट के ये नतीजे उन चुनौतियों की ओर इशारा कर रहे हैं, जिसका सामना मोदी सरकार की 'डिजिटल इंडिया' परियोजना कर रही है। मोदी सरकार की परियोजना का मक़सद है कि 2019 तक पूरे देश में तेज़ रफ़्तार इंटरनेट मुहैया कराकर डिज़िटल विभाजन को कम किया जाए।
टिकाऊ विकास लक्ष्य पर 26 सितंबर को होने जा रहे संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन से ठीक पहले इस रिपोर्ट का जारी किया जाना ‘डिजिटल इंडिया’ पहल की क़ामयाबी को लेकर विशेषज्ञों की चिंताओं को बढ़ा देता है। इस परियोजना में भारत की उस 68 प्रतिशत आबादी के बारे में बात की गई है जो गांवों में रहती है।
हालांकि विशेषज्ञों ने इन लक्ष्यों की व्यावहारिकता पर संदेह जताया है। उनका तर्क है कि यह सपना तब तक पूरा नहीं किया जा सकता जब तक बुनियादी ढांचे में कमियों पर ध्यान नहीं दिया जाए।
डिजिटल इंडिया परियोजना का लक्ष्य है क़रीब ढाई लाख सरकारी स्कूलों और ढाई लाख ग्राम पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ कर ई-शिक्षा और ई-प्रशासन को बढ़ावा देना। इसके लिए शहरों, क़स्बों और डेढ़ लाख पोस्ट ऑफ़िसों को जोड़ने के लिए दिसंबर 2016 तक 6000 किलोमीटर लंबा नेशनल ऑप्टिकल फ़ाइबर नेटवर्क (एनओएफ़एन) बिछाने का लक्ष्य बनाया गया है, जिस पर 18 अरब डॉलर का ख़र्च आएग।
डिजिटल एम्पॉवरमेंट फ़ाउंडेशन के संस्थापक निदेशक ओसामा मंज़र कहते हैं कि टेलीकम्युनिकेशन कंपनियों ने नेटवर्क बनाने के लिए जितने निवेश का वादा किया था उसमें कमी दिखती है।
वो कहते हैं, “दूरसंचार विभाग के कई बार कहने के बाद भी, एक भी टेलीकॉम ऑपरेटर या उद्योग घराने ने एनओएफ़एन परियोजना को लेकर किसी साझीदार के साथ कोई डील नहीं की है। एनओएफ़एन परियोजना अपनी डेडलाइन से काफ़ी पीछे चल रही है।
इसमें सबसे बड़ी बाधा है हिंसाग्रस्त प्रदेशों में अंडरग्राउंड नेटवर्क बिछाना, जैसे- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, भारत प्रशासित कश्मीर, छत्तीसगढ़ और झारखंड।
इसके अलावा केंद्र और राज्यों के बीच सहमति का अभाव भी बाधा पैदा कर रहा है और इस पर निरक्षरता, ग़रीबी और कुशल श्रमशक्ति का अभाव भी भारी पड़ रहा है। साथ ही गांवों और क़स्बों के अधिकांश स्कूल भी कंप्यूटर और कंप्यूटर में दक्ष शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, देश के ग्रामीण इलाक़ों में रह रहे 88.4 करोड़ लोगों में 36 प्रतिशत लोग अशिक्षित हैं और जो 64 प्रतिशत शिक्षित हैं उनमें भी 5.4 प्रतिशत लोगों ने ही हाई स्कूल तक की शिक्षा ग्रहण की है।
इसके अलावा गांवों में बिजली पहुंचाने का काम भी बड़ी चिंता का विषय है। मोबाइल फ़ोन के मामले में भारत एक बड़ा बाज़ार है लेकिन मोबाइल उपकरणों के मार्फ़त अच्छी इंटरनेट स्पीड हासिल करना अभी दूर की कौड़ी है।
हाल ही में आई अंतरराष्ट्रीय कंसलटेंसी कंपनी डेलोइट की रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्तूबर 2014 में देश में कुल इंटरनेट यूज़र्स की संख्या 25.9 करोड़ थी और इसमें 24.1 करोड़ यूज़र्स मोबाइल उपकरणों से इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे।
जून 2015 को डेलोइट की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे देश में केवल 700 टॉवर ही ऐसे हैं जो 3जी या 4जी स्पीड को सपोर्ट करते हैं। आंकड़े दिखाते हैं कि दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली तीसरी सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद भारत इंटरनेट स्पीड के मामले में 52वें स्थान पर है।
यहां औसत स्पीड 1.5 से लेकर 2 एमबीपीएस है, जबकि दक्षिण कोरिया और जापान जैसे अन्य विकसित एशियाई देशो में इंटरनेट स्पीड क्रमशः 14.2 और 11.7 एमबीपीएस है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट उन चुनौतियों को बताता है जिसका सामना डिजिटल इंडिया कार्यक्रम पहले से ही कर रहा है।
अखिल रंजन बीबीसी मॉनिटरिंग
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