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रिपोर्टर डायरी विशेष:मुहूर्त के मारे लक्ष्मीकांत

मीडिया            Dec 28, 2015


brajesh rajpootब्रजेश राजपूत अभी पिछले रविवार की ही तो बात है जब हम मीडिया के लोग अपनी इतवार की छुटटी भुलाकर आठ बजे से भोपाल की सेन्ट्रल जेल के दरवाजे पर खड़े धक्के खा रहे थे। मौका था व्यापम के मुख्य आरोपी कहे जा रहे लक्ष्मीकांत की जमानत के बाद जेल से रिहाई का। लक्ष्मीकांत पिछले 18 महीने से जेल में थे और सात मामलों में हाईकोर्ट से जमानत होने के बाद उनकी जेल से रिहाई होने वाली थी। उनके सैकडों समर्थक और परिवार के लोग जेल परिसर में आगवानी को आये थे। समर्थकों का हुजूम लगातार बढता जा रहा था। हर कोई जेल से निकलते ही लक्ष्मीकांत को मुंह दिखाने की होड में जेल के गेट की ओर बढ रहा था इस धक्का मुक्की का शिकार हो रहे थे हमारे चैनल के कैमरामेन और अखबारों के फोटोग्राफर भाई लोग। नौ बजे का वक्त तय था मगर बाद में पता चला दस बज कर सात मिनिट का मुहूर्त है तभी निकलेगे शर्मा जी। लक्ष्मीकांत के इस मुहूर्त प्रेम पर मुझे 2013 विधानसभा चुनाव का वो दिन याद आ गया जब उम्मीदवारों के पर्चे भरे जा रहे थे। विदिशा कलेक्टेट पर हम तैनात थे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह दो जगह से चुनाव लड रहे थे अपनी परंपरागत सीट बुधनी और विदिशा से। विदिशा कलेक्टेट में वो पर्चा भरने आ रहे थे। हम मुख्यमंत्री का इंतजार कर ही रहे थे तभी हमारी नजर वहीं एक कमरे के बाहर चटक पीले कुर्ते पर लाल टीका लगाये और दायें हाथ में ढेर सारा कलावा बांधे नारियल थामे खडे लक्ष्मीकांत जी पर पडी। इसी कलेक्टेट में सिंरोज विधानसभा का पर्चा भी भरा जा रहा था। उनको इस अंदाज में खड़ा देख मैं तुरंत उनकी ओर लपका। लक्ष्मीकांत पर्चा भरने आये थे और तय मुहूर्त का इंतजार कर रहे थे। हमने पूछा आपने सीएम को यहां क्यों बुला लिया? अच्छा नहीं लगता दो बार का सीएम दो जगह से चुनाव लड़े क्या इतना डर गये? लक्ष्मीकांत का जवाब आया आप समझे नहीं विदिशा जिले में इस बार माहौल अच्छा नहीं है। हमारी सीट तो हम निकाल रहे हैं मगर दूसरी सीटों पर हालात बहुत खराब हैं। अब सीएम के आने से असर पड़ेगा और हम जिले की सारी सीटें जीतेंगे। बात खत्म होने से पहले ही करीब खड़े सहयोगी ने उनको घड़ी का इशारा किया और लक्ष्मीकांत अचानक अंदर चल पड़े। मैं समझ गया कि शुभ मुहूर्त की घडी आ गयी। कहते हैं वक्त खराब आता है तो कोई मुहूर्त काम नहीं करता। लक्ष्मीकांत सिरोंज सीट पर कांग्रेस के गोवर्धन लाल से 1584 वोटों के अंतर से हार गये। विदिशा से भारी भरकम जीत की उम्मीद कर रहे सीएम शिवराज सिंह भी 16 हजार वोटों से ही जीत पाये। मगर लक्ष्मीकांत का तो जैसे बुरा मुहूर्त ही अब शुरू हुआ था। व्यापम घोटाले में एसटीएफ ने दो दिन की पूछताछ के बाद उनको उसी बंगले से उठा लिया जहां लक्ष्मीकांत को सलाम बजाने ढेरों पुलिस आफीसर आते थे। वो 15 जून 2014 की तारीख थी। तब भी रविवार का दिन था। खबर मिलते ही हम एसटीएफ के भदभदा के थाने के सामने थे। लक्ष्मीकांत की गिरफतारी के बाद तो जैसे व्यापम घोटाला नेशनल मीडिया की नजरों में आ गया। एबीपी न्यूज आगे हुआ इस घोटाले में खुलासे करने का। घोटाले से जुडी खबरें खोज खोजकर लायीं गयीं। आसान शब्दों में समझाया गया कि व्यापम क्या है, कैसे घोटाला हुआ, कौन लोग शामिल थे और कौन प्रभावशाली लोग जुडे हो सकते हैं वगैरह वगैरह। जब एक नेशनल न्यूज पर खबर चली तो धीरे धीरे बाकी के चैनल भी खबर में उतरे और देखते ही देखते व्यापम घोटाला शिवराज सरकार के लिये राप्टीय शर्म का कारण बन गया। इस दौरान सरकार से कैसे दबाव, धमकियां और प्रतिरोध आये इस पर फिर कभी मगर अभी तो लक्ष्मीकांत के ही किस्से को ही आगे बढाते हैं। गिरफतारी के बाद भोपाल कोर्ट में पेशी पर आने वाले लक्ष्मींकांत से हम मिलते थे, बैठ कर बातें भी करते थे। शुरूआत में तो लक्ष्मीकांत एक मामले में पेश होने आते थे और दूसरा मामले में आरोपी बनकर लौटते थे। एक एक कर वो सात मामलों में आरोपी बना दिये गये। हम मीडिया वाले भी लक्ष्मीकांत की पेशी पर ये सोचकर जाते थे कि हो सकता है इस बार वो कोई खुलासा कर दें। मगर ऐसा कभी नहीं हुआ और हमने भी जाना छोड दिया। लक्ष्मीकांत के समर्थकों की सुनवाई पर आने वाली भीड भी कम होती चली गयी। मगर कैसे एक समय का ताकतवर मंत्री किस तरह गलत काम करने के बाद कानून के हाथों में पडकर निरीह हो जाता है ये देखना भी अनुभव था। मगर एक बडा अनुभव तो देखना अभी और बाकी था। व्यापम जब खबरों में था तो हमारी सारी बातचीत व्यापम और उससे जुडे पहलुओं पर ही होती थी केसे व्यापम पर नयी खबर निकाली जाये ये चुनौती हर वक्त रहती थी। ऐसी ही चर्चा के दौरान हमारे एक पत्रकार मित्र ने हमें उलाहना दिया। कहा व्यापमं पर कुछ नया करना हो तो लक्ष्मीकांत से मिलो। हमने कहा वो तो जेल में है तो जबाव आया जेल में चलकर मिलो। बस फिर क्या था भिड़ गये जेल चलो अभियान में। किसी एक तारीख को हम और हमारे दो मित्र जेल में लक्ष्मीकांत के रूबरू थे मगर बिना कागज, कलम और केमरे के। वो हमसे सारी बातें संभलकर कर रहे थे। जेल की परेशानियां गिना रहे थे। जेल के अधिकारी हमारे इर्द गिर्द मंडरा रहे थे। मगर बातों बातों में वो हुआ जिसकी उम्मीद नहीं थी। सरकार और संगठन में बैठे साथियों की बेरूखी की चर्चा करते हुये लक्ष्मीकांत सुुबकने लगे और थोडी देर बाद ही फूट फूट कर रोने भी लगे। बातों का निचोड़ यही था कि सबको खुश करने के लिये सारे काम किये और अब सब हाथ झाड़कर अलग हो गये। निकलने से पहले मैंने उनको अपनी विधानसभा चुनाव पर लिखी किताब दी। पूर्व जनसंपर्क मंत्री हम से कह रहा था भाई यहाँ जेल में दो अखबार और एक दूरदर्शन ही देखने मिलता है। आपके चैनल नही देख पाते। अब ये किताब तो कई बार पढ लूंगा। इस रविवार को लक्ष्मीकांत जेल से निकलने के बाद मिले तो छूटते ही कहा अच्छी किताब लिखी है आपने। जेल से बाहर आने के बाद लक्ष्मीकांत क्या गुल खिलायेंगें इस पर फिर सबकी नजर है। लेखक एबीपी न्यूज चैनल के एमपी स्टेटहैड हैं


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