डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
वेबदुनिया के शुरू होने से पहले ही मैं सुवि इन्फो से जुड़ चुका था, तब हिन्दी में एक पोर्टल शुरू होने की योजना बन रही थी। वेबदुनिया नाम भी तब फाइनल नहीं हुआ था और पहला प्रस्तावित नाम था हिन्दीदुनिया। बाद में इस पर काफी मंथन हुआ और यह बात सामने आई कि हिन्दीदुनिया नाम से कुछ ऐसा महसूस होता है, मानो यह कोई भारत सरकार की योजना या उपक्रम है। दूसरी बात, हिन्दीदुनिया नाम होने से यह भारत वर्ष की समग्र भाषाओं का पोर्टल शायद नहीं बन सकता और उस जमाने में इंटरनेट नया-नया आया था। इसलिए वेब शब्द जुड़ने से थोड़ा कौतूहल जागता था।
अब वेबदुनिया 17 वर्ष पूरे कर चुका है और गूगल 18। एक प्रमुख अंतर यह था कि गूगल सिलिकॉन वैली में था और वेबदुनिया भारत में मध्यप्रदेश के एक शहर इंदौर में। उन दिनों नेट कनेक्टीविटी एक बहुत बड़ी समस्या थी। दूसरी समस्या थी बिजली की कटौती की। सौभाग्य से अब ये दोनों समस्याएं नहीं है, लेकिन इन समस्याओं के बावजूद वेबदुनिया में अपने लिए जमीन तैयार की और फला-फूला।
17 साल पहले 23 सितंबर 1999 को जब पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्रकुमार गुजराल ने वेबदुनिया का औपचारिक शुभारंभ किया था, तब अनेक लोगों को इस बात का एहसास नहीं था कि वेबदुनिया भारतीय भाषाओं के लिए इतना महत्वपूर्ण पोर्टल साबित होगा। 17 साल बाद भी वेबदुनिया दुनियाभर में भारतीय लोगों को भारत की संस्कृति, भाषा और परंपरा से जोड़े हुए है। यह एक ऐसा पोर्टल है, जो बाजार के दबावों से भी प्रभावित नहीं हुआ। जीवन के हर पहलू को अपने आप में समेटे वेबदुनिया के बाद अनेक बड़े-बड़े समूह के पोर्टल भी आए, लेकिन वे बाजार में टिक नहीं पाए। इसका एक कारण शायद यह था कि प्रबंधन के लिए वेबदुनिया केवल व्यावसायिक उपक्रम नहीं था।
हिन्दी में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने और ज्यादा आईबॉल्स लपकने के लिए जब अधिकांश पोर्टल सेमीपोर्नो कंटेंट परोसने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। ऐसे में वेबदुनिया समसामयिक मुद्दों के साथ ही भारतीय संस्कृति, धर्म, साहित्य, कारोबार, बॉलीवुड, पर्यटन, खेल, शेयर मार्केट, राजनीति आदि पर अपनी पकड़ बनाए हुए है। अब वेबदुनिया में समाचारों की वीडियो प्रस्तुति भी लोकप्रिय हो रही है। सिंहस्थ के कवरेज से लेकर अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन तक हर जगह वेबदुनिया की धूम है। रामशलाका की प्रश्नावली से लेकर कुण्डली मिलान तक और टेलोकार्ड से लेकर वास्तुशास्त्र तक की जानकारी वेबदुनिया पर उपलब्ध है। अब वेबदुनिया हिन्दी के अलावा मराठी और गुजराती में तो है ही। दक्षिण भारत की चार प्रमुख भाषाओं में भी उपलब्ध है, जिनमें मलयालम, कन्नड़, तमिल और तेलुगु शामिल है।
आप कह सकते हैं कि आज गूगल कहां है और वेबदुनिया कहां? हां, गूगल ने दुनिया में अपनी धाक मचा दी है पर गूगल के सामने उस तरह की चुनौतियां कभी थी ही नहीं, जैसी वेबदुनिया के सामने थीं। सबसे बड़ी दिक्कत तो हिन्दी भाषा के फोन्ट को लेकर ही थी। पूरा कम्प्यूटर जगत जब हिन्दी में फोन्ट की समस्या से जूझ रहा था, तब वेबदुनिया ने अपने लिए नए रास्ते बनाए और वे रास्ते विश्व की कंपनियों के लिए उपलब्ध कराए। वेबदुनिया ने पूरी दुनिया में बसे भारतीयों को एक सूत्र में जोड़ा। उन्हें उनकी कला, संस्कृति, वृत त्यौहार, धर्म और परंपराओं से जोड़कर रखा।
आज के दौर में भले ही हम ई-कॉमर्स की चर्चा करें, लेकिन ई-कॉमर्स की शुरूआत का असली श्रेय भारत में अगर किसी को है, तो वह वेबदुनिया को ही है। वेबदुनिया ने अपनी शुरूआत में ही राखी के त्यौहार पर विश्वभर में राखी और मिठाइयां भेजने के लिए व्यावसायिक पहल की थी। वक्त से पहले शुरू किए गए इस उपक्रम के लिए उस दौर में पर्याप्त आधारभूत संरचना नहीं थी, न अच्छी कोरियल कंपनियां थी, न डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम अच्छा था। बगैर दुकान में गए सामान खरीदने की उन दिनों कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। बरसों तक लोग यहीं मानते रहे कि कोई भी सामान खरीदना हो, तो भौतिक रूप से उस सामान की पड़ताल कर लेनी चाहिए। हजारों लोगों ने हजारों तरह के धोखे खाए थे और वे ई-कॉमर्स को एकदम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन वह अभियान एक पथ प्रदर्शन अभियान जरूर कहा जा सकता है। आज भारत में ई-कॉमर्स फल-फूल रहा है। इसका थोड़ा श्रेय तो वेबदुनिया को भी दिया ही जाना चाहिए।
वेबदुनिया ने शुरू होने के दो साल के भीतर ही अपना सर्च इंजन बना लिया था। यह सर्च इंजन रोबोट जनरेट नहीं था, बल्कि विशेषज्ञों की एक पूरी टीम द्वारा तैयार था। अशोक चतुर्वेदी, डॉ. बबीता अग्रवाल, पुर्णेदु शुक्ला, भूपेश गुप्ता, राजन मिश्रा आदि अनेक लोग इस सर्च इंजन को बनाने के लिए बरसों बरस दिन-रात खपते रहे। रोबोट जनरेट नहीं होने से वेबदुनिया के वेब खोज में जो भी नतीजे आते थे, वे नतीजे ज्यादा सही और परिपूर्ण होते थे। वेबदुनिया का सर्च इंजन अपने यूजर्स को जानकारियों के जंगल में उठाकर नहीं फेंक देता था।
वेबदुनिया खोज नाम का यह सर्च इंजन मुंबई के ताज होटल में उद्घाटित हुआ था और उसका समाचार सभी भाषाओं के प्रमुख अखबारों में जोर-शोर से छपा था। फिल्म जगत की भी अनेक सेलिब्रिटीज उस प्रेस कांफ्रेंस में शामिल हुई थी। हिन्दी की इंटरनेट की दुनिया में यह किसी जलजले से कम नहीं था। भारत की शायद ही कोई हस्ती हो, जो वेबदुनिया से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़ी हो। हिन्दी में इंटरनेट का पर्याय बन चुका था वेबदुनिया। वेबदुनिया के लाइव चैट में देश के जाने-माने लेखक, फिल्मी कलाकार और राजनीतिज्ञ शामिल होते रहे है। ऐसे दौर में जब लोग इंटरनेट के प्रति अविश्वास रखते हो, वेबदुनिया का किसी नेट मीडिया के रूप में उभरना चमत्कार जैसा ही था। वेबदुनिया के पत्रकारों का सम्मान और ओहदा भी समाज में बढ़ने लगा। प्रिंट और टीवी के अलावा एक नया माध्यम भारत के क्षितिज पर उभर रहा था।
17 साल पहले जब इंटरनेट भारत में लोगों से पूरी तरह परिचित भी नहीं हुआ था, तभी वेबदुनिया के सीईओ विनय छजलानी ने इस बात की कल्पना कर ली थी कि एक दिन भारत में भी इंटरनेट हमारे जीवन का अंग बन जाएगा। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को इंटरनेट क्षण-प्रतिक्षण प्रभावित करेगा और हमें अपनी सूचनाओं से आसान जीवन जीने में मदद करेगा। उनका मानना था कि भाषा को लेकर भी, कई लोगों को यह गलतफहमी है कि इंटरनेट का माध्यम केवल अंग्रेजी या रोमन लिपि ही हो सकती है। उनका अनुमान सही निकला और आज इंटरनेट जनसंचार का अत्यंत आसान माध्यम बन गया।
वेबदुनिया ने इंटरनेट की दुनिया में तो क्रांति की ही, भाषा को लेकर भी अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। वेबदुनिया का एक और उल्लेखनीय काम भाषा के अनुकूलन को लेकर किया गया। मोबाइल क्रांति के बाद ऐसी अनेक सेवाएं आज भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है, जिनका श्रेय वेबदुनिया या उनकी मूल अथवा सहायक कंपनियों को दिया जा सकता है। वेबदुनिया ने हिन्दी में ई-पत्र की शुरूआत की, जो एक क्रांतिकारी कदम था, इसके पहले लोगों को रोमन लिपि में ही अपने संदेश भेजने होते थे। कस्टम प्रयोग और एसएमएस सुविधा को वेबदुनिया ने नए रूप में प्रस्तुत किया।
इस सदी में इलाहाबाद में होने वाला पहला महाकुंभ वेबदुनिया के लिए महत्वपूर्ण रहा है। इलाहाबाद महाकुंभ में वेबदुनिया ने आध्यात्म और सूचना क्रांति का अद्भुत संगम देखने को मिला। प्रयाग में गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम क्षेत्र में यह एक अनूठा संगम था। तब से लेकर आज तक वेबदुनिया और सुवि इन्फो की यात्रा महत्वपूर्ण मुकाम हासिल कर चुकी है। भारतीय भाषाओं के साथ ही दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की भाषाएं भी वेबदुनिया के माध्यम से परिश्रकृत और इंटरनेट फ्रेंडली हुई है। ऐसी भाषाओं की संख्या 50 के आसपास है।
वेबदुनिया हिन्दी के दूसरे पोर्टल्स की तरह केवल एक पोर्टल नहीं है। यह इंटरनेट के माध्यम से जन-जन को शक्तिशाली बनाने का एक प्रयास है। चाहे वह इंटरनेशनल इंटरनेट समिट हो या फिर लोकलाइजेशन वल्र्ड कांफ्रेंस, अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन हो या ऑनलाइन पत्रकारिता की दुनिया में एक पहल। आज वेबदुनिया की उपस्थिति विश्वभर में सम्मानपूर्वक दर्ज की जा चुकी है। सोशल मीडिया के किसी भी मंच पर वेबदुनिया गैरहाजिर नहीं है। वेबदुनिया के खाते में पहला हिन्दी पोर्टल होने के साथ ही पहला हिन्दी सर्च इंजन, ई-कॉमर्स, ई-वार्ता, फोनेटिक की-बोर्ड आदि कई उपलब्धियां दर्ज है। वेबदुनिया समूह से ऐपल, फेसबुक और ट्विटर जैसे कई बड़े-बड़े घराने जुड़े हुए है। अगर वेबदुनिया नहीं होता, तो हो सकता है कि हम 1990 के दशक में ही होते और अपनी मेल शायद भारतीय भाषाओं में नहीं लिख पाते। वर्तमान में लगभग सभी प्रमुख सोशल मीडिया में हिन्दी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। वॉट्सएप पर तो हर सेकंड ढाई लाख संदेश भेजे जाते है, जिसमें से हिन्दी दूसरे स्थान पर है। जैसे-जैसे इंटरनेट का साम्राज्य विस्तारित होगा, वैसे-वैसे हिन्दी का साम्राज्य भी बढ़ेगा। इसके लिए वेबदुनिया हमेशा याद किया जाता रहेगा।
( डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी वेबदुनिया के संस्थापक संपादक रहे हैं। उन्होंने हिन्दी इंटरनेट पत्रकारिता विषय पर ही पीएच-डी भी की है और वे हिन्दी में सोशल मीडिया के प्रमुख विश्लेषक और ब्लॉगर हैं। prakashhindustani.com उनकी वेबसाइट है। )
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