ऋतुपर्ण दवे
गूगल का सीईओ बनना दुनिया की बड़ी घटनाओं में एक है। सच भी है गूगल अगर जेब में है दुनिया मुट्ठी में। सुन्दर पिचाई की इस कामियाबी पर सबको गर्व है। हो भी क्यों न गूगल ही तो वो क्रान्ति है जिसने दुनिया को हर चीज का ज्ञान दिया है बल्कि पूरी समूचा ज्ञान एक अदने से ब्रॉउजर में समेट दिया है। रास्ता से लेकर डॉक्टर और दवा से लेकर दुआ हर चीज उस गूगल पर मौजूद है जो 1972 में भारत में जन्में पिचाई सुन्दर राजन यानी ‘सुन्दर पिचाई’ की सुन्दर सोच के सहारे और भी स्लिम बनकर पंख देने को बेताब है।
यकीनन सुन्दर की यह कामियाबी भारतीयों के लिए बड़ी खुशी का क्षण है बल्कि कहें कि साल 2015 का बड़ा तोहफा तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। चेन्नई में जन्मे सुन्दर के पिता इलेक्ट्रिकल इंजीनियर तो माँ आशुलिपिक थी। दो कमरे के घर में जगह की कमीं के चलते सुन्दर लिविंग रूम को ही रात में बेडरूम बना लेते थे। लगन, समर्पण और मेहनत से सफलता का शीर्ष मुकाम चुनने वाले सुन्दर के घर पर टीवी तक नहीं था। सुन्दर को प्रभावित किया था इसी टेलीविजन ने जो 12 वर्ष के थे तब घर आया था। यहीं से उनकी रुचि तकनीक में बढ़ी फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी मेहनत और लगन के दम पर सुन्दर ने आईआईटी खड़गपुर में विशेष सीट के साथ दाखिला लिया। यहां उन्होंने स्नातक किया फिर स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग में एमएस किया और उसके बाद जाने-माने वॉर्टन स्कूल से एमबीए। कम लोगों को ही पता होगा कि गूगल में हम जिस क्रोम से बहुत ही तेज ब्रॉउजिंग कर पाते हैं उसके बनाने वाली टीम के सुन्दर ही लीडर थे। इसी क्रोम ने सुन्दर की छवि निखारी और उनकी काबिलियत का लोहा गूगल में माने जाने लगा। सुन्दर ने उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नही देखा। यह उनकी योग्यता ही थी जो उन्हें फोन ऑपरेटिंग सिस्टम के अलावा, एंड्रॉयड, जीमेल, मैप्स, सर्च जैसी तकनीकी को ईजाद करने का काम मिला जिसे बखूबी उन्होंने अंजाम दिया।
सुन्दर की अगुवाई में गूगल जहां और भी सुन्दर, स्लिम बनेगा वहीं गूगल एक्स, साइडवॉक, नेस्ट, वेंचर्स कैपिटल की जिम्मेदारी सुन्दर पर होगी। चालक रहित कार, गूगल ग्लॉस, गूगल कैलिको, प्रदूषण घटाने, उर्जा की खपत कम करने घरों के लिए 1000 एमबी स्पीड की इण्टरनेट सेवा पर काम के साथ ही महत्वकांक्षी योजना गूगल ड्रोन डिलिवरी प्रोजेक्ट भी तरक्की करेगा। 2005 में सुन्दर ने गूगल में अपनी प्रतिभा के दम बतौर वाइस प्रेसीडेण्ट काम किया था और बाद में जब उनके कंपनी बदलने की बात आई तो गूगल ने ही उन्हें 300 करोड़ से ज्यादा का ऑफर देकर रोक लिया। आज वो उसी गूगल के सीईओ हैं।
यकीनन भारत में प्रतिभाओं की कोई कमीं नहीं है, कमीं है तो उनको तराशने और संभालने वालों की। यदि भारत में प्रतिभाओं को पहचान कर उनके पलायन को रोक लिया जाए तो यह सच है कि दुनिया में भारत से बड़ा सिरमौर कोई हो ही नहीं सकता। यह भारत के लिए बेहद गर्व की बात है कि दुनिया की नामी कंपनियों के सीईओ में भारतीय छाए हुए हैं जिनमें माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला, पेप्सिकों की इन्दिरा नुई, नोकिया के राजेश सूरी, अडोबी के शान्तनु नारायण, डियाजियो के इवान मेनेजेस, मास्टर कार्ड के अजय बांगा हैं। अब इसी फेहरिस्त में सुन्दर पिचाई भी शामिल हो गए हैं। यह सच है कि कामियाबी का रास्ता निकलता तो घर से है पर कामियाबी को अपने देश में ही इस्तेमाल करने का हुनर भारत को और विकसित करना होगा।
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