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Thu, 29 May 2025

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला: आईटी एक्ट की धारा 66 ए रद्द

मीडिया            Mar 24, 2015


सोशल मीडिया से जुड़ा 'काला कानून' खत्म मल्हार मीडिया ब्यूरो सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार सुबह इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून (आईटी एक्ट) के अनुच्छेद 66A को असंवैधानिक क़रार दिया है। अनुच्छेद 66A के तहत दूसरे को आपत्तिजनक लगने वाली कोई भी जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन से भेजना दंडनीय अपराध था। सुप्रीम कोर्ट में दायर कुछ याचिकाओं में कहा गया था कि ये प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ हैं, जो हमारे संविधान के मुताबिक़ हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट की वजह से पुलिस किसी को तुरंत गिरफ्तारी नहीं कर सकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने आईटी ऐक्ट के प्रावधानों में से एक 66 ए को निरस्त कर दिया। यह धारा वेब पर अपमानजनक सामग्री डालने पर पुलिस को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति देती थी। जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस आर एफ नरीमन की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए से लोगों की जानकारी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार साफ तौर पर प्रभावित होता है। कोर्ट ने प्रावधान को अस्पष्ट बताते हुए कहा, 'किसी एक व्यक्ति के लिए जो बात अपमानजनक हो सकती है, वह दूसरे के लिए नहीं भी हो सकती है।' इस फैसले के बाद फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर पाएगी। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र के उस आश्वासन पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि कानून का दुरुपयोग नहीं होगा। बेंच ने कहा कि सरकारें आती हैं और जाती रहती हैं, लेकिन धारा 66 ए हमेशा के लिए बनी रहेगी। कोर्ट ने हालांकि आईटी ऐक्ट के दो अन्य प्रावधानों को निरस्त करने से इनकार कर दिया, जो वेबसाइटों को ब्लॉक करने की शक्ति देता है। आईटी ऐक्ट की इस 'बदनाम धारा' के शिकार उत्तर प्रदेश में एक कार्टूनिस्ट से लकेर पश्चिम बंगाल में प्रोफेसर तक रह चुके हैं। हाल ही में आजम खान को लेकर फेसबुक पर किए गए एक कॉमेंट की वजह से उत्तर प्रदेश के एक 19 वर्षीय छात्र को भी जेल की हवा खानी पड़ी थी। छात्र के खिलाफ आईटी ऐक्ट की धारा 66ए समेत अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट में 66ए के खिलाफ दायर याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून अभिव्यक्ति की आजादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है, इसलिए यह असंवैधानिक है। याचिकाओं में यह मांग भी की गई है कि अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े किसी भी मामले में मैजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई 2013 को एक दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था कि सोशल मीडिया पर कोई भी आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले व्यक्ति को बना किसी सीनियर अधिकारी जैसे कि आईजी या डीसीपी की अनुमति के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ सरकार की दलील है कि इस कानून के दुरूपयोग को रोकने की कोशिश होनी चाहिए। इसे पूरी तरह निरस्त कर देना सही नहीं होगा। सरकार के मुताबिक इंटरनेट की दुनिया में तमाम ऐसे तत्व मौजूद हैं जो समाज के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। ऐसे में पुलिस को शरारती तत्वों की गिरफ्तारी का अधिकार होना चाहिए। इस मामले में एक याचिकाकर्ता श्रेया सिंघल हैं। उन्होंने शिवसेना नेता बाल ठाकरे के निधन के बाद मुंबई में बंद के खिलाफ टिप्पणी पोस्ट करने और उसे लाइक करने के मामले में ठाणे जिले के पालघर में दो लड़कियों- शाहीन और रीनू की गिरफ्तारी के बाद कानून की धारा 66ए में संशोधन की भी मांग उठाई थी। अनुच्छेद 66A के तहत दूसरे को आपत्तिजनक लगने वाली कोई भी जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन से भेजना दंडनीय अपराध था।


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