शशिकांत त्रिवेदी।
पत्रकारों के लिए एक सूचना: प्रवासी भारतीय दिवस में प्रवेश पास 10000 रुपया है। दो दिन के लिए 7500 रुपये और एक दिन के लिए 5000 रुपये। फोकट कुछ नहीं मिलेगा।
पत्रकारों को सरकारी कार, बस और होटलों में मुफ्त रुकवाने और सेवा आदि की परम्परा शायद अब एकदम बन्द हो जाये। रेल में आधा किराया और टोल नाके पर छूट भी लगभग बन्द हो चुकी है।
सरकारी मकान छीनने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू होने की खबरें आ रही हैं।
मेरा आग्रह है, बाइट लेने की फीस भी प्रति पत्रकार प्रति बाइट कम से कम 5000 रुपया की जाए, जो लिखने और टी वी पर खबर दिखाने वाले पत्रकार होंगे वे ही फीस भरेंगे।
फोन पर कमेंट लेने की फीस 2500 रुपये और इंटरव्यू लेने की फीस कम से कम एक लाख रुपये।
हमारी विकासवादी सरकारें अब जान चुकी हैं कि पत्रकार ऐसा क्या लिख देंगे या दिखा देंगे जो नेता जी, अफसर या उनके हाई कमान को नहीं मालूम।
आप चेहरा छिपाकर वीडियो दिखाओगे उनके पास पहले ही मास्टर कॉपी पहुँच चुकी होती है।
मेरी पत्रकारिता के कॅरियर में जो सबसे बड़ी मुश्किल पेश आई है वो लड़की के घरवालों को समझाना कि बिजनेस स्टैंडर्ड क्या है।
एक बार तो उद्योग आयुक्त (अब रिटायर्ड) ने मेरा विजिटिंग कार्ड देखकर पूछ ही लिया कि आपकी कम्पनी क्या बनाती है? "सिर्फ 'चू…' !" कहने से मैं अपने आप को बमुश्किल रोक पाया।
पर मैंने हिम्मत कर उनसे कह डाला जैसे सरकार आप जैसे आई ए एस बनाती है।
वे कुछ समझ पाते इससे पहले मैंने बात बदल दी, वे जनसम्पर्क विभाग के कमिश्नर भी रह चुके थे।
लेकिन भारत के गिने चुने तीन फायनांस डेली में से एक को वे नहीं जानते थे।
लड़की का बाप कैसे जानता कि ऐसा भी कोई अखबार है।
कितनी बार मैंने रेलवे स्टेशन पर ए एच व्हीलर (अब यह नाम इस्तेमाल नहीं होता) के स्टाल पर अखबारों के बंडल में सबसे नीचे दबे होने पर खींचकर ऊपर रखा है कि कोई तो पढ़ेगा।
मैं आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हूं। अखबार जो कुछ भी छापते हैं वह लोगों को पहले से मालूम होता है। ज़्यादातर खबरों को पढ़कर वे सर पकड़ लेते हैं, यक़ीन नहीं करते या पैसे देकर छपवाई खबर मानते हैं।
आम आदमी रेप की खबर सबसे पहले पढ़ता है, फिर बीवी की नज़र बचाकर ये खोजता है कि वो भाग्यशाली पुरुष कौन है जिसके साथ आज कोई भागी है, फिर खबर पढ़ने के बाद अपनी किस्मत को कोसता है।
आजकल उसके इस आनन्द में कानूनी मदद ने इजाफा किया है।
वह रोमांच से भर जाता है जब कोई चार कॉलम खबर कि -- लिव इन में सात साल रहने के बाद शादी से इनकार करने पर लड़की ने थाने में रिपोर्ट लिखवाई।
वह इस खबर पर अपना गुस्सा भी जाहिर करता है कि जब कानूनन लिव इन का मतलब है, सांसारिक आनन्द जब तक मर्जी हो फ्री में लें और जब मन भर जाए भगा दें।
वह यह जानना चाहता है कि आखिर ये पुलिस किस कानून के तहत ये रिपोर्ट लिखती है? लेकिन बीवी के डर से वह किसी से पूछ नहीं पाता बस मन मसोस कर रह जाता है।
उसका गुस्सा इस बात पर भी होता है कि ये लिव इन को वैध करार देने वाले उसकी शादी से पहले कहाँ थे। इसके बाद वह राशिफल, वगैरा पढ़ता है।
उसे प्रवासी भारतीय दिवस के बारे में जानकर क्या करना है, और वह क्यों जानना चाहेगा? वह निवेश के बारे में जानकर क्या करेगा जबकि वह जानता है कि भारत में निजी निवेश मतलब दुकान।
वह खुद या अपने लड़के/लड़की को दुकान पर काम क्यों करने देगा?
वह जानता है कि सरकारी नौकरी भले चपरासी की हो वह राष्ट्रीय अखबार/चैनल के सम्पादक के ओहदे से लाख गुना अच्छी है।
रवीश कुमार को भी किसी न किसी ने जरूर समझाया होगा।
खैर.. उम्मीद है, आने वाले समय में पत्रकारों पर कुछ शुल्क प्रस्तावित हों तो खालिस पत्रकार ही समाज में दिखाई देंगे।
नेता जी के साथ सेल्फी शुल्क 25000रुपये, नेता जी से साक्षात्कार 100000 रुपये, नेता जी के साथ लंच 200000 रुपये, परिवार सहित लंच 500000 रुपये, प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाग लेना न्यूनतम 2000 रुपये प्रति कॉन्फ्रेंस, सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस एकमुश्त 50000 रुपये, मुख्यमंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस 50000 रुपये या 10000 रुपये प्रति कॉन्फ्रेंस, प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहला सवाल पूछने का शुल्क 100000 रुपया, पूरक सवाल 5000 प्रति सवाल (एक से ज़्यादा नहीं), मुख्यमंत्री से प्रति सवाल 25000 रुपये,प्रधानमंत्री से सवाल 500000 रुपये प्रति सवाल, पार्टी अध्यक्ष से सवाल 10000 प्रति सवाल, यहॉं तक कि छुटभैया को भी कम से कम 500 रुपये प्रति सवाल जमा करने पर ही उत्तर मिले। सारी पत्रकारिता धरी रह जायेगी।
तो प्रवासी भारतीय दिवस में भाग लेने लिए पत्रकार बाकायदा शुल्क जेब से जमा करें।
एक सवाल अभी जब तक निशुल्क है पूछ लेना चाहता हूँ कि प्रवासी भारतीय दिवस अभी भी गाँधी जी के अफ्रीका से भारत लौटने की तिथि की याद में मनाया जाता है, यदि हॉं तो क्यों?
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