राम मोहन चौकसे।
उम्र के अंतिम पड़ाव पर किसी बुजुर्ग को सरकार से जायज हक के लिए गिड़गिड़ाना पड़े तो इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात कुछ और नहीं हो सकती। यह पीड़ा है 85 वर्षीय बुजुर्ग रामानंद गुप्ता की जिन्होंने उम्र के चालीस साल सक्रिय पत्रकारिता के लिए होम कर दिए हैं।
चंबल सम्भाग में डबरा के निवासी गुप्ताजी ने स्वदेश अखबार में 33 साल अपनी सेवाएं दी। 85 साल की उम्र में भी सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं।
गुप्ता जी से मेरी व्यक्तिगत मुलाकात कभी नहीं हुई। फेसबुक पर मेरी पत्रकारिता के एक संस्मरण को पढ़ने के बाद उन्होंने मोबाइल पर मुझे बधाई दी।
यह उनसे पहली वार्तालाप थी। पत्रकारिता के अनुभव सुनाने के बाद गुप्ता जी ने अपनी पीड़ा बयान कर दी।
डबरा को जिला बनाने की हिमायत करने वाले गुप्ता जी ने बताया कि साठ साल की उम्र पूरी करने वाले अधिमान्य पत्रकारों को सरकार की तरफ से प्रति माह दस हजार रुपये श्रद्धानिधि दी जाएगी।
यह घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की थी।
पांच हजार रुपये से इस श्रद्धानिधि की शुरुआत हुई थी। रामानंद गुप्ता जी ने बताया वह पांच साल से श्रद्धानिधि पाने के लिए पत्र व्यवहार और प्रयास कर रहे हैं।
गुप्ता जी ने यह भी बताया स्वास्थ भी अब साथ नहीं देता है।दो-तीन साल और जी लूं तो बड़ी बात होगी।
मुख्यमंत्री और सरकार की नीयत अच्छी है। यह तो मृत प्राय हो चुके सरकारी तंत्र की नाकामी है जो सही और अधिकृत व्यक्ति को ढूंढ नहीं पाती है।
यह बिडम्बना ही है एक उम्रदराज पत्रकार को श्रद्धानिधि के लिए गुहार लगाना पड़ रही है।
सरकार का एक महकमा पत्रकारों की सुध लेने के लिए ही बनाया गया है। इस महकमे के जिम्मेदारों की यह ड्यूटी है कि वह सरकार द्वारा घोषित योजना का लाभ उन पत्रकारों तक अवश्य पहुंचाए,जिसके वह हकदार हैं।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है-अंधेरे में जो बैठे हैं,नज़र उन पर भी कुछ डालो। अरे ओ रोशनी वालो।
लेखक समरस प्रधान संपादक हैं। यह टिप्पणी उनके फेसबुक वाफल से ली गई है।
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