मल्हार मीडिया भोपाल।
सप्रे संग्रहालय में गांधी की पत्रकारिता और पत्रकारिता में गांधी' विषय पर व्याख्यान
महात्मा गांधी की पत्रकारिता सत्य, संयम, मानवता और विचार की पक्षधर थी। गांधी की पत्रकारिता यह सिखलाती है कि किस तरह कौम की सहायता से अखबार निकाला जा सकता है। गांधी ने अपने साथ हुए अन्याय को एक चुनौती के रूप में लिया और अपनी कलम से उसका प्रतिकार किया। इस तरह के विचार शनिवार, 20 अप्रैल को सप्रे संग्रहालय में महात्मा गांधी की पत्रकारिता पर आयोजित विशेष व्याख्यान में वक्ताओं ने व्यक्त किए।
महात्मा गांधी के 150वें जन्मवर्ष के संदर्भ में आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में इस व्याख्यान का आयोजन किया गया था। इन कार्यक्रमों का आयोजन माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय, हिन्दी भवन तथा मानस भवन द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।
आयोजन की यह दूसरी कड़ी थी। पहला कार्यक्रम हिन्दी भवन में 'महात्मा गांधी की दृष्टि में स्त्री’ विषय पर विगत माह सम्पन्न हुआ है। आज के आयोजन में 'गांधी की पत्रकारिता और पत्रकारिता में गांधी’ विषय पर मुख्य वक्तव्य महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा में जनसंचार के प्राध्यापक अरुण कुमार त्रिपाठी ने दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने की। पूर्व आईएएस मुक्तेश्वर सिंह विशेष रूप से उपस्थित थे।
गांधी की पत्रकारिता पर विचार रखते हुए मुख्य वक्ता अरुण त्रिपाठी ने कहा कि आज जब पत्रकारिता में झूठ फैलाने का सुनियोजित षड्यंत्र चल रहा है तब गांधी का याद आना स्वाभाविक है। पत्रकारिता का काम ही संचार और संप्रेषण है, यह सत्य पर आधारित होना चाहिए। गांधी ने यह काम किया। इसलिए कहा जा सकता है कि गांधी 20वीं सदी के सबसे बड़े पत्रकार थे। उन्होंने गांधी के समाचार पत्र इंडियन ओपिनियन को केन्द्र में रखकर ही अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने इंडियन ओपिनियन में 'अवर सेल्फ’ शीर्षक से जो संपादकीय लिखा था वह संयम की सीख देता है।
इसी तरह वे अपने से असहमति रखने वालों के विचारों को भी महत्व देते थे। यह भी संयम का ही प्रमाण है। त्रिपाठी जी ने कहा कि गांधी ने विज्ञापनों की बजाए कौम की सहायता से समाचार पत्र निकालने का प्रयास किया, इसमें वे सफल भी रहे। उन्होंने इंडियन ओपिनियन में छपने वाले विज्ञापनों को बंद कर पाठकों की मदद से ही पत्र चलाया था।
इस समाचार पत्र में गांधी विचारपूर्ण लेखकों का प्रकाशन कर वैचारिक पत्रकारिता की मिसाल रखते रहे हैं। अपने विस्तृत उद्बोधन में त्रिपाठी जी ने गांधी के यंग इंडिया और हरिजन पत्रों के जरिए भी उनकी पत्रकारिता की विशेषताओं का उल्लेख किया। उन्होंने गांधी के 150वें जन्मवर्ष में हो रहे इस तरह के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इनके माध्यम से हम गांधी की पत्रकारिता को पुनर्जीवित करने की दिशा में सार्थक प्रयास कर सकते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने कहा कि गांधी जी ने अपने साथ हुए हर अन्याय को एक चुनौती के रूप में लिया। इसका प्रतिकार उन्होंने अपनी लेखनी से किया। फिर चाहे उन्हें रेल में अपमानित होना पड़ा हो या कठियावाड़ी पगड़ी वाली घटना हो। उन्होंने गांधी को सिर्फ एक दिन या अवसर विशेष पर याद करने की प्रवृत्ति पर दु:ख जताते हुए कहा कि हर हिन्दुस्तानी के दिल में कहीं न कहीं गांधी का अंश है इसे पूरे 365 दिन जिंदा रखना जरूरी है। जिस गांधी ने देश को एक किया उसके प्रति कृतज्ञता भाव कम हो रहा है। हमें सोचना होगा कि हमारे भीतर धड़कने वाले गांधी को क्या हम नई पीढ़ी को सौंप पाये हैं।
कार्यक्रम के विशेष अतिथि पूर्व आईएएस मुक्तेश्वर सिंह ने कहा कि गांधी ने विज्ञापन रहित समाचार पत्र निकालकर विचार को महत्व दिया। उन्होंने कहा कि गांधी एक पत्रकार के रूप में पाठक तक समय पर सामग्री पहुंचे इसका विशेष ख्याल रखते थे। श्री सिंह ने भी कहा कि गांधी असहमतियों को भी अपने समाचार पत्र में प्रमुखता से स्थान देते थे। उन्होंने गांधी की पत्रकारिता समझने के लिए इंडियन ओपिनियन को पढऩे की सलाह दी।
'विश्ववंद्य गांधी’ का विमोचन
इस अवसर पर अतिथियों ने 'विश्ववंद्य गांधी’ शीर्षक पुस्तक का विमोचन भी किया। यह पुस्तक गांधीजी के बहुआयामी व्यक्तित्व और कालजयी कृतित्व से विशेष रूप से युवा पीढ़ी को परिचित कराने के उद्येश्य से ही प्रकाशित की गई है।
कृष्ण बिहारी मिश्र की धरोहर प्राप्त हुई
सप्रे संग्रहालय के खजाने में आज एक और नया आयाम तब जुड़ा जब हिन्दी के अग्रणी विद्वान डा. कृष्ण बिहारी मिश्र का साहित्य प्राप्त हुआ। संग्रहालय के संस्थापक-संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने बताया कि मिश्र जी ने देश भर के सभी स्थानों को तलाशने के बाद हमें यह सामग्री सौंपी है। यह इस बात को साबित करता है कि संग्रहालय के प्रति लोगों के मन में विश्वास है कि यह सामग्री सुरक्षित रहेगी। उन्होंने इसके लिए मिश्र जी का आभार माना। सप्रे संग्रहालय के डा. शिवकुमार अवस्थी एवं प्रोफे. रत्नेश ने यह सामग्री प्राप्त की।
आरंभ में सप्रे संग्रहालय की ओर से अध्यक्ष राजेन्द्र हरदेनिया, डा. मंगला अनुजा, राकेश दीक्षित तथा विवेक श्रीधर ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के प्रबुद्धजन तथा पत्रकारिता के विद्यार्थी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन डा. अल्पना त्रिवेदी ने किया।
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