हर्षवर्द्धन प्रकाश।
मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत प्रदेश सरकार किसी भी कुलपति को क़ानूनन बर्खास्त नहीं कर सकती। लेकिन कई मीडिया संस्थानों ने लिखा/कहा कि प्रदेश सरकार ने इंदौर के देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय के कुलपति नरेंद्र धाकड़ को पद से "बर्खास्त" कर दिया।
फिर धाकड़ के मामले में हुआ क्या?
प्रदेश सरकार किसी विश्वविद्यालय में कुप्रबंधन/अनियमितताओं का भरोसा होने पर मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम के आपातकालीन प्रावधान धारा 52 का इस्तेमाल कर सकती है। इस धारा के लागू होते ही तत्काल प्रभाव से कुलपति अपने आप पद से हट जाता है और कार्यपरिषद भंग हो जाती है।
कुलपति को "नौकरी" कौन देता है?
मध्यप्रदेश सरकार आधिकारिक तौर पर कुलपति की नियुक्ति नहीं करती। यह नियुक्ति कुलाधिपति की हैसियत से राज्यपाल करता है। यानी आम आदमी के शब्दों में कहा जाए, तो कुलपति को प्रदेश सरकार "नौकरी" नहीं देती। अब जो नौकरी दे नहीं सकता, वह भला "बर्खास्त" कैसे कर सकता है? यह मामला विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता से भी जुड़ा है।
मीडिया के एक मित्र से इस बारे में बातचीत हुई, तो उसने दलील दी कि पाठकों/दर्शकों को समझाने के लिए लिखा/कहा गया कि कुलपति को "बर्खास्त" कर दिया गया या "हटा दिया गया"।
अब इसमें तो कोई संदेह ही नहीं कि धारा 52 का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? लेकिन बिरादर, पाठकों को समझाने के और भी तरीके हैं।
फेर बस शब्दों का है।
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