ममता यादव।
इस फोटो को शेयर करने का मात्र इतना कारण है कि कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से आग्रह है कि वे राजनीतिक पार्टियों की तरह किसी भी मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने के लिये प्रपंच जैसा लिखने से बचें।
वरना आप में और उनमें कोई फर्क नहीं रह जायेगा। इस फोटो में जैन मुनि तखत पर बैठे हैं और प्रज्ञा कुर्सी पर। लेकिन लिखा ये जा रहा है कि प्रज्ञा जैन मुनि के सामने कुर्सी पर बैठीं और वे नीचे बैठे थे।
आग्रह बस इतना कि पत्रकार हैं तो खबर को सही खबर की तरह ही पेश करें। अगर पार्टी बन गए हैं या बन जाना चाहते हैं तो खबरों की सत्यता से खिलवाड़ बन्द करें।
फेक न्यूज से अफवाहें न फैलाएं। ये काम पार्टियां बहुत अच्छे से कर रही हैं। आईटी सेलों को ठेका दे रखा है उन्होंने।
याद आ रहा है कुछ माह पहले का वाकया। एक पत्रकार तत्कालीन जनसंपर्क मंत्री का इंटरव्यू ले रहा था वो स्टूल पर बैठा था मंत्री की कुर्सी थोड़ी ऊंची थी। पत्रकारों ने ही उस फ़ोटो को ये लिखकर वायरल किया कि देखो पत्रकार मंत्री के सामने घुटने पर बैठकर इंटरव्यू कर रहा है।
कहते हैं पत्रकारों की चार आंखें होती हैं 2 वो जो प्रत्यक्ष देख सकती हैं और दो वो जो खबर के पीछे की भी खबर देख पाती हैं। पर मध्यप्रदेश में जबसे सरकार बदली है लग रहा है प्रत्यक्ष देखने वाली आंखों पर चश्मे चढ़ गए हैं और अप्रत्यक्ष आंखें गायब हैं।
जो कभी खुद को निष्पक्ष कहते नहीं थकते थे अब उनकी निष्पक्षता उबालें मार रही है। एजेंडा सेटर बनकर राजनीतिक पार्टियों को क्यों मौका देते हैं आप खुद को खिलौना बनने का? जूनियर पत्रकार आप लोगों की तरफ उम्मीद से देखते हैं पर प्रतिमान भी जल्दी टूट जाते हैं।
थोड़ा ध्यान रखिये। कुछ तो बचा रहने दीजिए। ये आग्रह है एक पत्रकार का पत्रकारों से पत्रकारिता को बचाये रखने के लिये वरना दांव पर तो बहुत कुछ है और अगले कुछ सालों में बचेंगे भी वही जो पक्षकार बनकर भी सर उठाकर चल सकते हैं।
बाकी तो वैसे ही पीस दिए जाएंगे।सिर्फ पत्रकार बनकर ही प्रतिक्रिया दें। किसी के प्रति विरोध या सहानुभूति जताने नहीं।
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