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पत्रकारों के लिए भारत दूसरा सबसे खतरनाक देश

मीडिया            Apr 24, 2019


पुष्पेंद्र दीक्षित।
दुनिया में मीडिया और पत्रकारों की सुरक्षा पर नजर रखने वाली ब्रिटेन की संस्था आई.एन.एस.आई. यानि इंटरनेशनल न्यूज सैफ्टी इंस्टीट्यूट की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक सबसे खराब पांच देशों की सूची में हिन्दुस्तान पत्रकारों के लिए 'दूसरा सबसे खतरनाक' देश है।

खींचो न कमान से तलवार निकालो, जब तोप मुक़ाबिल हो अखबार निकालो।
जी हा दरसल ये शेर आज मुझे इसलिए याद आया कि इस शेर क़ा मतलब होता है तीर व तोप से भी ज्यादा मारक और असरदार अखबार होता है। तीर व तोप का मुकाबला भी अखबार कर सकता है।

रिपोर्टर यानी पत्रकार भी खासा प्रभाव शाली होना चाहिये। उसे अपने पेशे से कोई शिकायत नही होनी चाहिये, उसे इस पेशे में पूरी ख़ुशी और सन्तुष्ट होना चाहिये। लेकिन लगता है कि इक्कीसवी सदी में ऐसी स्थिति नही है।

क्योंकि शोध बताता है कि आज के जमाने में रिपोर्टर की नौकरी सबसे खराब मानी जाती है।हालांकि यह शोध हिन्दुस्थान में नहीं हुआ है। यह सर्वेक्षण अमेरिका में हुआ है, पर जहां तक रिपोर्टर के हालात और रिपोर्टिंग के रास्ते में आने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों का सवाल है तो वह पूरी दुनिया में तकरीबन एक समान ही मानी जाएगी।

अमेरिका में पिछले दिनों हुए एक ख़ास शोध में अखबार के रिपोर्टर की नौकरी को दुनिया के सबसे खराब जॉब में रखा गया है। पत्रकारों की दुनिया को चौंकाने वाला यह सर्वे एक निजी फर्म करियरकास्ट ने किया है। इस सर्वे में अखबार के रिपोर्टर की नौकरी को दुनिया की सबसे खराब नौकरी बताया गया है।

यह सर्वे रिपोर्ट रिपोर्टर को मिलने वाली सैलरी, इस प्रोफेशन में उसके फ्यूचर, आउटलुक और काम के माहौल के हिसाब से तैयार की गई है।

शोध में तकरीबन 200 पेशों को दुनिया के बेहतरीन और बुरे कामों की लिस्ट में रखा गया। इसमें क्राइटेरिया का आधार इनकम, दबाव, काम का माहौल और नियुक्ति के स्थायित्व के आधार पर था।

सचमुच में दुनिया के कुछ हिस्सों में तो रिपोर्टिंग यानी जान का खतरा ही मानी जाती है। गत 10 सालों में 700 से ज्यादा पत्रकारों की हत्याएं की गई। पर एक ही मामले में गुनहगारों को सजा हो पाई है।

पिछले दिनों फिलीपींस के निर्वाचित राष्ट्रपति रोड्रिगो डूटार्ट ने देश में काम के दौरान पत्रकारों की हत्या को यह कहते हुए सही ठहराया कि वे अक्सर भ्रष्ट होते हैं। उनके इस बयान की एन यू जे पी ने आलोचना भी की। पत्रकारों के लिये सबसे खतरनाक देशों में फिलीपींस भी एक है।

यहां 1992 से अब तक तकरीबन 85 पत्रकार मारे गए हैं।अफगानिस्तान में तालिबानों द्वारा फोटो पत्रकार डेविड गिलकी का कत्ल कोई भूलता नहीं। एक इंटरनेशनल एन जी ओ कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट-सी पी जे के अनुसार अफगानिस्तान में 1992 से अब तक 30 नामचीन पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है।

सीपीजे की 2017 में बनाई गई एक लिस्ट के मुताबिक पत्रकारिता में जोखिम के मामले में हिन्दुस्तान का विश्व में 10वां स्थान है।

एक पत्रकार का जीवन कर्तव्य, कठिनाइयों तथा संवेदनाओं से भरा होता है। उसे सही तथ्यों की रिपोर्टिंग समय पर करनी होती है। इस मार्ग में उसके सामने कांटे भी होते हैं। पर वह रास्ते पर भटकता नहीं। वह हर पल, ज्यादातर हालातों में अपनी जान पर खेल कर एक्सक्लूसिव न्यूज के रूप में सच्चाई को सामने लाने का प्रयास करता है। शोध यह भी बताता है कि बीते पांच सालों में रिपोर्टर बनने का क्रेज तेजी से घटा है।

साल 2022 तक इसमें और गिरावट आने का अंदेशा है, यानी तब ज्यादा लोगों की इसमें रूचि नही रहेगी क्योंकि तमाम मिडिया कंपनियां और पब्लिशिंग हाउस पत्रिकाएं और अखबार बंद कर रही हैं। दस सबसे खराब जॉब की लिस्ट में जो जॉब है उनमें टैक्सी ड्राइवर, रिटेल सेल्स पर्सन, एड्वर्टाइजिंग सेल्स मैन , मेन शेफ, दमकल विभाग और कचरा विभाग में काम करने वाले कर्मचारी भी शामिल है।

कैरियरकास्ट की रिपोर्ट के दूरगामी परिणाम भी हमे देखने होंगे क्योकि अगर पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है तो रिपोर्टर यानी पत्रकार इसका एक सजग प्रहरी है। देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली पत्रकारिता आज़ादी के बाद भी अलग-अलग परिदृश्यों में अपनी सार्थक जिम्मदारियों को निभा रही है।

लेकिन मौजूदा दौर में पत्रकारिता दिनोंदिन मुश्किल बनती जा रही! है। जैसे-जैसे समाज में अत्याचार, भ्रष्टाचार, दुराचार और अपराध बढ़ रहा है, पत्रकारों पर हमले की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद इस पर लगाम नही लग पाई है।

मीडिया और पत्रकारों पर हमला वही करते हैं या करवाते हैं जो इन बुराइयों में डूबे हुए हैं। ऐसे लोग दोहरा चरित्र जीते हैं। ऊपर से सफेदपोश और भीतर से काले-कलुषित। इनके धन-बल, सत्ता-बल और कथित सफल जीवन से आम जनता चकित रहती है पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में हिन्दुस्थान विश्व के देशों में निरंतर पिछड़ता जा रहा है।

 



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