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रूस-यूक्रेन का चरम संकट और विश्व मीडिया

मीडिया            Feb 18, 2022


मल्हार मीडिया डेस्क।
रूस-यूक्रेन संकट इन दिनों अपने चरम पर है। ऐसे माहौल में यूक्रेन के लोग दो धुरियों के बीच फंस गए लगते हैं। एक ओर नेटो के देश हैं, जो रूस को हमले ने करने को लेकर चेतावनी दे रहे हैं। वहीं दूसरी ओर रूस है, जो कह रहा है कि यूक्रेन पर हमले की उसकी कोई योजना नहीं है।

यूक्रेन के अपने नेता सतर्कता से अपनी बात रख रहे हैं, जबकि उनकी सीमा पर रूस ने भारी सैन्य जमावड़ा किया हुआ है। रूस का कहना है कि सेना की उसकी कुछ इकाईयों ने सैन्य अभ्यास किया है और वो बेलारूस और यूक्रेन सीमा से अपने सैनिकों को वापस बुला लेगा।
रूसी मीडिया में क्या चल रहा है?

अमेरिका और नेटो ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यूक्रेन की सीमा पर रूस ने जो जमावड़ा किया है, वो कई दशकों में सबसे ज़्यादा है और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन जल्द ही यूक्रेन पर हमले की इजाज़त देंगे।

रूस में पश्चिमी देशों के बयानबाज़ी को ''रूस विरोधी उन्माद'' क़रार दिया जा रहा है। सोशल मीडिया पर रूस के लोग पश्चिमी दावों का मज़ाक बना रहे हैं।

वहीं रूस का मीडिया ख़ासकर टीवी चैनल इस मामले को दूसरी तरह से पेश कर रहे हैं। सरकार समर्थक चैनल कह रहे हैं कि नेटो के विस्तार से रूस को ख़तरा पैदा हो गया है और यूक्रेन की 'नव नाज़ीवादी' और 'फ़ासीवादी' सरकार रूस पर हमला करने की योजना बना रही है।


लोकप्रिय 'वेस्टी नेडेली' न्यूज़ शो ने कहा है कि यूक्रेन को घातक सहायता मिली है, इससे उसका दिमाग़ ख़राब हो गया है।

रूस के शायद सबसे बड़बोले मीडिया कमेंटेटर और शो होस्ट दिमित्री किसल्योव ने कहा है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की लड़ाई के लिए तैयार हो रहे हैं।

दो महीने पहले उन्होंने कहा था, ''यदि यूक्रेन पर नेटो का क़ब्ज़ा होता है या सैन्य तौर यूक्रेन नेटो से जुड़ता है, तो हम अपनी बंदूक अमेरिका के सिर पर रख देंगे।''

2014 में, उन्होंने अपने दर्शकों को कहा था कि रूस ''दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जो अमेरिका को रेडियोएक्टिव राख में बदल सकता है।'' पिछले हफ़्ते यूरोप के संदर्भ में उन्होंने फिर से वही बात दोहराई।

रूस के नेताओं को वहां के मीडिया में अक्सर बोलते हुए दिखाया जाता है, पर शायद ही कभी उनसे सवाल पूछे जाते हैं।

रूस के नेताओं से वहां का मीडिया शायद ही कभी सवाल पूछता है।

रूस अपने यहां के विपक्षी नेताओं के साथ आज़ाद मीडिया और पत्रकारों पर कठोर कार्रवाई कर चुका है। सरकार एक ख़ास क़ानून के तहत कई लोगों और संस्थाओं को ''विदेशी एजेंट'' क़रार दे चुकी है।

इससे उनके लिए खुलकर काम करना बहुत मुश्किल है। इससे अभिव्यक्ति की आज़ादी काफ़ी कम हो गई है। इसलिए वहां के मीडिया में सरकार से सवाल पूछने वाले न के बराबर दिखते हैं, ज़्यादातर राय जो दिखती है वो विकृत होती है।

उदाहरण के लिए, कोम्मेरसैंट नामक अख़बार में प्रकाशित एक रिपोर्ट में ''पश्चिम पर रूस के सैनिक और कूटनीतिक दबाव'' के नकारात्मक नतीज़े बताए गए हैं। इसमें लिखा गया, ''कीव को हथियारों की आपूर्ति बढ़ गई, इलाक़े में नेटो की सेना का जमावड़ा हुआ और यूक्रेन में रूस विरोधी भावना में वृद्धि हुई।''

हालांकि बहुत से मीडिया संस्थानों ने यूक्रेन पर रूस के जल्द ही हमला करने की अमेरिका की चेतावनी का जमकर मज़ाक उड़ाया है।

विदेशी मामलों पर लिखने वाले एक समीक्षक ने कहा, ''व्हाइट हाउस की शानदार रणनीति: यदि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो दुनिया को चेतावनी दी जाएगी। यदि नहीं तो बाइडन ऐसे नेता बनकर उभरेंगे जो पुतिन को टक्कर देंगे।''

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर की ओर से हर साल जारी होने वाले वर्ल्ड फ़्रीडम इंडेक्स की 2021 की सूची में रूस 180 देशों में 150वें नंबर पर रहा है, जबकि यूक्रेन की रैंकिंग 97 रही है। यह इंडेक्स पत्रकारों को मिलने वाली आज़ादी का आकलन करती है।
   
फ़ेसबुक पर एक यूज़र ने लिखा कि बोरिस जॉनसन जब रूस को चेता रहे थे, तो ऐसा लगा कि वे ही यूक्रेन के राष्ट्रपति हैं।

रूस की तुलना में यूक्रेन में मीडिया ज़्यादा आज़ाद है, लेकिन प्रेस की आज़ादी के लिए काम करने वाली संस्था का कहना है, ''रूस के साथ सूचना के युद्ध के कई नकारात्मक नतीज़े सामने आए हैं. इनमें एक यह कि रूस के मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।''

रूस की सैन्य हरक़त पर पश्चिमी देशों की सक्रियता को शुरू में यूक्रेन में ज़्यादा तवज़्ज़ो नहीं मिली. पश्चिमी देश भले ही रूस के सैनिकों के जुटान और इंतज़ाम को लेकर चिंतित हो रहे थे, लेकिन यूक्रेन इस पर ख़ामोश-सा था।

अमेरिका ने जब चेतावनी दी कि रूस एक झूठे 'फ़्लैग अटैक' की योजना बना रहा है ताकि यूक्रेन पर हमले को उचित ठहरा सके, तो यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमत्रो कुलेबा ने इसे भाव न देते हुए ''सर्वनाशी भविष्यवाणी'' क़रार दिया।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने जब यूक्रेन पर आक्रमण के ख़िलाफ रूस को ज़ोरदार चेतावनी दी तो यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ही इससे सहमत होते नहीं दिखे। जॉनसन की प्रतिक्रिया को एक लोकप्रिय न्यूज़ पोर्टल ने ''दमदार संदेश'' क़रार दिया। वहीं कई आलोचकों ने कहा कि वे राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के जवाब से 'शर्मिंदा' हैं।

क्रेमलिन समर्थक मीडिया के लिए रूस की अमेरिका और ब्रिटेन से जारी तनातनी में यूक्रेन सिर्फ़ मोहरा भर है

पश्चिमी देशों ने जब यूक्रेन में अपनी कूटनीतिक मौजूदगी घटाने का फ़ैसला लिया और अपने नागरिकों को वहां से निकलने की हिदायतें जारी कीं, तो लोगों ने इसके लिए पश्चिमी देशों की आलोचना की.

फ़ेसबुक पर कीव में पढ़ाने वाले एक शिक्षक ने लिखा कि उनका प्लान 'ए' और प्लान 'बी' दोनों कीव में रहने का ही है, क्योंकि ये शहर उन्हें पूरी दुनिया में सबसे प्यारा है और यहां के लोग भी सबसे प्यारे हैं।

वहीं एक पत्रकार ने लिखा कि पश्चिमी देशों को कायर और गद्दार बनने की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने पश्चिमी ताक़तों से अनुरोध किया कि वे यूक्रेन में अपनी मौजूदगी बढ़ाएं न कि घटाएं, क्योंकि जब वे अपनी संस्थाएं और लोगों को हटाएंगे तो इससे रूस को यूक्रेन पर हमला करने का प्रोत्साहन मिलेगा।

वहीं यूक्रेन के प्रधानमंत्री डेनिस श्मीएल ने फ़ेसबुक पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में अपील की कि लोग हमले को लेकर न घबराएं।

उन्होंने कहा कि हमारे ख़िलाफ़ होने वाली यह लड़ाई केवल सैनिकों और हथियारों की नहीं है। यूरोप में गैस का संकट, साइबर अटैक, बड़े पैमाने पर अहम जगहों पर बम रखे जाने की झूठी ख़बरें, पैसे देकर की जाने वाली रैली और छद्म रैली।''

उन्होंने कहा, ''ये सभी हाइब्रिड वार के तत्व हैं। और इनमें से सबसे ख़तरनाक ग़लत प्रचार और घबराहट को बढ़ावा देना है।''


 



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