फ़िरदौस ख़ान!
ऑल इंडिया रेडियो से हमारा दिल का या यूं कहें कि रूह का रिश्ता है। ये हमारी ज़िन्दगी का एक अटूट हिस्सा है। रेडियो सुनते हुए हम बड़े हुये। बाद में रेडियो से जुड़ना हुआ। यह हमारी ख़ुशनसीबी थी।
ऑल इंडिया रेडियो पर हमारा पहला कार्यक्रम 21 दिसम्बर 1996 को प्रसारित हुआ था। इसकी रिकॉर्डिंग 15 दिसम्बर को हुई थी। कार्यक्रम का नाम था उर्दू कविता पाठ। इसमें हमने अपनी ग़ज़लें पेश की थीं। उस दिन घर में सब कितने ख़ुश थे। पापा की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था।
रेडियो से हमारी न जाने कितनी ख़ूबसूरत यादें वाबस्ता हैं। दिन और रात के न जाने कितने पहर रेडियो पर दिलकश नग़में सुनते हुए ही बीते। ऑल इंडिया रोडियो की उर्दू सर्विस का तो जवाब ही नहीं। मख़मली उर्दू ज़बान सीधे दिल की गहराई में उतर जाती थी।
घर से दूर रहने पर, अपनों से दूर रहने पर यही आवाज़ घर की याद दिलाती थी, क्योंकि हमारी मादरी ज़बान भी तो उर्दू ही है। हमें आज भी रेडियो से उतना ही लगाव है, जितना पहले हुआ करता था।
रेडियो हमारे दादा जान और पापा को भी बहुत पसंद था। शायद रेडियो से यह लगाव हमें विरासत में मिला है।
हम ही नहीं, लाखों-करोड़ों लोगों की पसंद रहा है रेडियो। ये उस वक़्त शुरू हुआ था, जब मनोरंजन के कोई ख़ास साधन नहीं थे। रेडियो का इतिहास सौ साल से भी ज़्यादा पुराना है।
दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत भी बहुत ही दिलचस्प है। वह 24 दिसम्बर 1906 की एक ख़ूबसूरत शाम थी, जब कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फ़ेसेंडेन ने वॉयलिन बजाया था।
उस वक़्त अटलांटिक महासागर के जहाज़ों के रेडियो ऑपरेटरों ने वॉयलिन के उस दिलकश संगीत को सुना। इसके बाद उसी शाम फ़ेसेंडेन ने एक गाना भी गाया और पवित्र बाइबल की कुछ आयतें भी पढ़ी थीं। इससे पहले मारकोनी ने साल 1900 में लन्दन से अमेरिका बेतार संदेश भेजा था।
इस तरह व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत हुई थी। पहले रेडियो का इस्तेमाल सिर्फ़ नौसेना ही किया करती थी, बाक़ी लोगों के लिए इसका इस्तेमाल करने पर सख़्त पाबंदी थी। साल 1918 में ली द फ़ोरेस्ट ने न्यूयॉर्क के हाईब्रिज में रेडियो स्टेशन शुरू किया।
यह दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन था, लेकिन इसे ग़ैर क़ानूनी क़रार देकर बंद करवा दिया गया। फिर उन्होंने 1919 में सैन फ़्रांसिस्को में एक और रेडियो स्टेशन शुरू किया, लेकिन यह भी ग़ैर क़ानूनी ही था। दुनिया में क़ानूनी तौर पर रेडियो स्टेशन शुरू करने का श्रेय फ़्रैंक कॉनार्ड को जाता है।
हमारे देश में रेडियो भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन संचालित सार्वजनिक क्षेत्र की आकाशवाणी प्रसारण सेवा है। देश में रेडियो प्रसारण की शुरुआत 1920 की दहाई में हुई थी।
प्राइवेट इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी लिमिटेड को दो रेडियो स्टेशन संचालित करने के लिए अधिकृत किया गया था। इस तरह 23 जुलाई 1927 को बॉम्बे स्टेशन शुरू हुआ। फिर उसी साल 26 अगस्त 1927 को कलकत्ता स्टेशन शुरू किया गया।
इसके बाद 1 मार्च 1930 को सरकार ने इन्हें अपने नियंत्रण में लेकर इनका राष्ट्रीयकरण किया और दो साल के लिए प्रायोगिक आधार पर भारतीय प्रसारण सेवा की शुरुआत हुई। कुछ वक़्त बाद मई 1936 में स्थायी रूप से ऑल इंडिया रेडियो क़ायम हुआ। फिर साल 1957 में इसे आकाशवाणी का नाम दिया गया।
क़ाबिले-ग़ौर यह भी है कि सरकार ने साल 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में भारत में भी रेडियो के लाइसेंस रद्द करके सभी ट्रांसमीटर्स को सरकार के पास जमा करने का आदेश दे दिया।
बॉम्बे टेक्निकल इंस्टीट्यूट बायकुला के प्राचार्य नरीमन प्रिंटर ने जब यह ख़बर सुनी, तो उन्होंने अपने रेडियो ट्रांसमीटर को बचाने का फ़ैसला किया। उन्होंने ट्रांसमीटर को खोलकर उसके पुर्ज़े अलग-अलग कर दिए।
फिर उन्होंने उन पुर्ज़ों को अलग-अलग महफ़ूज़ जगह पर छुपा दिया। उस वक़्त देश में स्वतंत्रता आन्दोलन चल रहा था। महात्मा गांधी ने ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ का नारा दिया था।
ब्रिटिश हुकूमत ने 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी और उनके साथियों को गिरफ़्तार कर लिया और प्रेस पर पाबंदी लगा दी। ऐसे में कांग्रेस नेताओं को रेडियो की ज़रूरत महसूस हुई। उन्होंने नरीमन प्रिंटर से रेडियो स्टेशन शुरू करने का अनुरोध किया।
इस पर उन्होंने अपने ट्रांसमीटर के पुर्ज़ों को इकट्ठा किया। उन्होंने माइक और अन्य ज़रूरत का सामान ख़रीदा। फिर 27 अगस्त 1942 को मुम्बई में नेशनल कांग्रेस रेडियो का प्रसारण शुरू हुआ।
अपने पहले प्रसारण में उद्घोषक उषा मेहता ने कहा था- “41 दशमलव 78 मीटर पर एक अनजान जगह से यह नेशनल कांग्रेस रेडियो है।”
ब्रिटिश सिपाहियों से बचने के लिए ट्रांसमीटर को सात अलग-अलग जगहों पर ले जाया गया, लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ। आख़िरकार 12 नवम्बर 1942 को नरीमन प्रिंटर और उषा मेहता को गिरफ़्तार कर लिया गया। इस तरह नेशनल कांग्रेस रेडियो बंद हो गया।
आकाशवाणी द्वारा अपनी स्थापना के वक़्त से ही कुछ परम्पराओं का पालन किया जा रहा है। मसलन आकाशवाणी के हर केन्द्र पर प्रसारण शुरू होने से पहले इसकी संकेत धुन बजाई जाती है।
फिर वन्दे मातरम् का गायन होता है। इसके बाद उद्घोषक स्टेशन का नाम बताता है। केन्द्र की फ़्रीक्वेंसी बताई जाती है। देसी महीने की तारीख़ और साल बताया जाता है। इसके साथ ही अंग्रेज़ी तारीख़ भी बताई जाती है, दिन बताया जाता है। फिर वक़्त बताया जाता है। लोग इससे अपनी घड़ियां मिलाते हैं। रेडियो की यह ख़ासियत है कि इसके सभी कार्यक्रम अपने तय वक़्त पर ही शुरू होते हैं। इसके बाद मंगल ध्वनि बजाई जाती है, जो भारत रत्न बिस्मिल्लाह ख़ान ने बनाई थी।
आकाशवाणी बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का पालन करती है। यह सबके हित की बात करती है, सबके सुख की बात करती है। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन इसके सिद्धांत हैं। आकाशवाणी का विज़न भी यही है- राष्ट्रीय लोक प्रसारक के रूप में, आकाशवाणी अद्यतन तकनीक के इस्तेमाल से मज़बूत इलेक्ट्रॉनिक रेडियो प्रसारण मीडिया द्वारा सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के कार्यक्रम प्रसारित कर सभी वर्गों के लोगों को सशक्त बनाने के लिए वचनबद्ध है।
इसके मिशन के तहत सूचना, शिक्षा और मनोरंजन द्वारा एकता, राष्ट्रीय अखंडता, प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और साम्प्रदायिक सद्भावना को मज़बूत करना, देश और विदेश के सभी लोगों तक एकरूपता से संदेश और सूचना पहुंचाने के लिए सशक्त इलेक्ट्रॉनिक वायरलेस संचार माध्यम का विकास करना, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की जीवन शैली और सामाजिक आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण घटनाओं और परिवर्तनों को शामिल करते हुए पक्षपात रहित अद्यतन, वस्तुनिष्ठ, व्यापक और संतुलित समाचार प्रसारित करना, प्रसारण कार्यक्रम की विषय-वस्तु और सिग्नल गुणवत्ता में अंतर्राष्ट्रीय मानकों को हासिल करना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक सद्भावना को प्रोत्साहन देना है।
आकाशवाणी समाचारों के लिए जानी जाती है। यहां से सिर्फ़ और सिर्फ़ सच्चे समाचार ही प्रसारित होते हैं। यहां झूठ का कोई काम नहीं है। आकाशवाणी और सच एक दूसरे के पर्याय हैं। देश के हर क्षेत्र में आकाशवाणी केन्द्र हैं।
आकाशवाणी ने लेह जैसे दुर्गम क्षेत्रों में भी अपने केन्द्र स्थापित किए हुए हैं, जहां रौशनी तक नहीं पहुंचती।
आकाशवाणी ने देश को दिग्गज कलाकार दिए हैं। अमीन सयानी, कब्बन मिर्ज़ा, सुनील दत्त और स्मिता पाटिल को भला कौन नहीं जानता। समाचार वाचक देवकीनन्दन पांडे और विनोद कश्यप भी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। देश के सुप्रसिद्ध कलाकार और साहित्यकार इससे जुड़े रहे हैं। आकाशवाणी ने एक कीर्तिमान स्थापित किया है। आकाशवाणी ने न कभी आवाज़ से समझौता किया और न ही उच्चारण से। क़ाबिले- ग़ौर है कि इन्हीं सख़्त नियमों की वजह से अमिताभ बच्चन का आकाशवाणी में चयन नहीं हो पाया था।
आकाशवाणी की कई सेवाएं हैं, जिनमें समाचार के अलावा विविध भारती भी है, जो आकाशवाणी की एक प्रमुख प्रसारण सेवा है। श्रोताओं में यह बहुत लोकप्रिय है। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि यह सबसे ज़्यादा सुनी जाने वाली सेवा है। इस पर हिन्दी फ़िल्मों के गाने बजाये जाते हैं।
इसकी शुरुआत 3 अक्टूबर 1957 को हुई थी। विविध भारती की शुरुआत की कहानी भी बहुत ही दिलचस्प है। पचास की दहाई में श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की विदेश सेवा यानी रेडियो सीलोन हिन्दी फ़िल्मों के गाने बजाती थी। लोग इसके दीवाने थी।
उस वक़्त आकाशवाणी के तत्कालीन महानिदेशक गिरिजाकुमार माथुर ने भी आकाशवाणी पर ऐसे ही कार्यक्रम की परिकल्पना की। उन्होंने पंडित नरेंद्र शर्मा, गोपालदास और केशव पंडित व अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर विविध भारती सेवा शुरू की।
इस पर बजाया गया पहला गीत पंडित नरेंद्र शर्मा ने लिखा था और इसके संगीतकार थे अनिल विश्वास। इसे प्रसार गीत कहा गया और इसके बोल थे- नाच मयूरा नाच। इसे सुप्रसिद्ध गायक मन्ना डे ने अपनी आवाज़ से सजाया था। विविध भारती की पहली उद्घोषणा शील कुमार ने की थी।
बाद में अमीन सयानी इससे जुड़ गए और उनके वक़्त में इसने कामयाबी के परचम फहराये और इसका जलवा तो आज भी बरक़रार है। शुरुआत में इसका प्रसारण सिर्फ़ दो केन्द्रों बम्बई और मद्रास से होता था।
बाद में आकाशवाणी के दूसरे केन्द्रों ने भी इसका प्रसारण शुरू कर दिया। अब तो देश के सभी केन्दों पर कम से कम एक घंटा विविध भारती का प्रसारण अनिवार्य कर दिया गया है। यह आकाशवाणी की विज्ञापन प्रसारण सेवा भी है। एफ़एम पर तो दिनभर विविध भारती का ही प्रसारण होता है।
विविध भारती के अलावा ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस भी बहुत लोकप्रिय है। यह विदेश प्रसारण सेवा प्रभाग के तहत आती है। यह प्रभाग 1 अक्टूबर 1939 से कार्यरत है। हिन्दुस्तान के अलावा पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में भी इसे ख़ूब सुना और पसंद किया जाता है।
विदेश प्रसारण सेवा प्रभाग अनेक विदेशी भाषा सेवाओं में दुनियाभर में फैले विदेशी श्रोताओं के लिए समाचार और अन्य कार्यक्रम तैयार करता है। इसकी पहुंच तक़रीबन 108 देशों तक है।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय की दिसम्बर 2011 को जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक़ आकाशवाणी नेटवर्क में 406 ट्रांसमीटर और 261 प्रसारण केन्द्र हैं। इन ट्रांसमीटर्स में 146 मीडियम वेव, 54 शॉर्ट वेव और 203 एफ़एम हैं।
आकाशवाणी देश में 99.14 फ़ीसद आबादी और 91.80 फ़ीसद इलाक़े को कवर करती है। आकाशवाणी घरेलू सेवाओं में 146 बोलियों और 24 भाषाओं में काम करती है। इसकी चार स्तरीय सेवाएं हैं- राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, स्थानीय और विदेश सेवा। विदेश सेवा में आकाशवाणी 27 भाषाएं कवर करती है, जिनमें 11 भारतीय और 16 विदेशी भाषाएं शामिल हैं। आकाशवाणी द्वारा 27 भाषाओं में 58 बुलेटिन प्रसारित किए जाते हैं।
आकाशवाणी की 44 क्षेत्रीय समाचार इकाई, 32 अपलिंक भूकेंद्र, 40 विज्ञापन प्रसारण सेवा केन्द्र और केन्द्रीय स्तर पर एक आकाशवाणी संसाधन केन्द्र है। आकाशवाणी के पास डीटीएच रेडियो सेवाएं हैं, जिनमें 21 चैनल हैं। आकाशवाणी प्रसारण में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मानकों का पालन करती है।
रेडियो ने अपनी शुरुआत से कई अच्छे और बुरे दौर देखे हैं। 23 मार्च 2020 को प्रसार भारती ने एक कार्यालयीन ज्ञापन जारी करके विदेश प्रसारण सेवा प्रभाग को ग़ैर ज़रूरी सेवा बताया और इसकी तमाम सेवाएं और सभी ट्रांसमीटर्स रद्द कर दिए, जिनसे विदेशी भाषा सेवाएं प्रसारित की जातीं थीं।
हालांकि उसी साल जून में कुछ भाषा सेवाएं दोबारा शुरू कर दी गईं, लेकिन इसकी वजह से कई सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।
रेडियो मनोरंजन का बहुत ही सस्ता और सुगम साधन है। आज भी खेत-खलिहानों, गांव-देहात में, क़स्बों में दुकानों और कारख़ानों में रेडियो को सुना जा सकता है।
अपने घर-परिवार से दूर फ़ौजी भाइयों के लिए तो यह बहुत ज़रूरी साधन है। देश की सरहदों पर जहां दूर-दूर तक चिड़िया का बच्चा भी नज़र नहीं आता, ऐसी वीरान जगहों पर रेडियो उनका साथ निभाता है। रेडियो के ज़रिये जहां उन्हें देश-विदेश की ख़बरें मिल जाती हैं, वहीं गीत-संगीत उनका मनोरंजन करता है।
फ़ौजी भाइयों की पसंद के फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम जयमाला और नाटिकाओं व झलकियों का कार्यक्रम हवामहल भी ख़ूब पसंद किया जाता है। पिटारा में रोज़ अलग-अलग कार्यक्रम पेश किए जाते हैं जैसे चिकित्सकों से बातचीत पर आधारित कार्यक्रम सेहतनामा, हैलो फ़रमाइश, फ़िल्मी सितारों से मुलाक़ात का कार्यक्रम’ सेल्युलाइड के सितारे’, संगीत की दुनिया की हस्तियों से जुड़ा कार्यक्रम ‘सरगम के सितारे’ आदि। पिटारा में लोकप्रिय कार्यक्रम ‘बाईस्कोप की बातें’ भी प्रसारित होती रही हैं।
विविध भारती के कार्यक्रम ‘उजाले उनकी यादों के’ में फ़िल्मी हस्तियों से बातचीत की जाती है, उनकी ज़िन्दगी के कुछ अनछुये पहलुओं पर गुफ़्तगू की जाती है। श्रोता छायागीत, गीत गाता चल, गाता रहे मेरा दिल, गीत गुंजन, कुछ बातें कुछ गीत, रंगोली, रंग तरंग, संगीत सरिता, आज के मेहमान और आज के फ़नकार आदि कार्यक्रमों का भी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। इसके अलावा महिलाओं के लिए चूल्हा-चौका और सोलह श्रृंगार जैसे कार्यक्रम भी लोकप्रिय रहे हैं। रेडियो पर क्रिकेट कमेंट्री भी ख़ूब सुनी जाती है।
ग़ौरतलब है कि हर साल 13 फ़रवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया जाता है। साल 2010 में स्पेन रेडियो अकादमी ने 13 फ़रवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने के लिए प्रस्ताव रखा था, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र रेडियो की शुरुआत 13 फ़रवरी 1946 को हुई थी।
साल 2011 में यूनेस्को के सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और 13 फ़रवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने का ऐलान किया गया। फिर साल 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी इसे स्वीकार कर लिया।
फिर उसी साल 13 फ़रवरी को पहली बार यूनेस्को ने विश्व रेडियो दिवस मनाया। इस दिन को मनाने का मक़सद दुनिया भर के लोगों को रेडियो की आवश्यकता और महत्व के प्रति जागरूक करना है।
आज भले ही टेलीविज़न और सोशल मीडिया का ज़माना है। इसके बावजूद रेडियो ने अपना वजूद क़ायम रखा है। अब डीटीएच के ज़रिये टीवी पर भी रेडियो को सुना जा सकता है। इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर भी रेडियो को सुना जा सकता है।
ख़ास बात तो यह भी है कि रेडियो के कार्यक्रम जब चाहे सोशल मीडिया पर सुने जा सकते हैं। अब तो निजी एफ़एम चैनलों की भी बाढ़ आई हुई है। बहरहाल, रेडियो का जलवा आज भी बरक़रार है।
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)
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