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आलोचना को सह लेना ही बड़प्पन की निशानी है

मीडिया            Mar 07, 2022


गिरीश पंकज।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है। उदारता के साथ इसका स्वागत करना चाहिए। अपनी आलोचना को सह लेना ही बड़प्पन की निशानी है।

रायपुर के एक पत्रकार नीलेश शर्मा को एक कांग्रेसी कार्यकर्ता की रिपोर्ट पर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मैंने वो लघु लेख देखा है, जिस को आधार बनाकर उस पर कार्रवाई की गई।

उसमें न किसी व्यक्ति का नाम है, न कोई गंभीर आरोप। वह एक बहुत सामान्य किस्म का लेख ही है, जिसे पढ़कर एक कार्यकर्ता विचलित हुआ, जबकि इतना कुछ तो लिखा ही जाता है।

और यही तो लोकतंत्र की खूबी है कि लोग अपने मन की बात कहते हैं। अगर सामान्य अभिव्यक्ति का भी  दमन किया जाए तो यह ठीक नहीं है।

फिर काहे का लोकतंत्र?  वर्तमान कांग्रेस सरकार जब विपक्ष में थी, तब अभिव्यक्ति की आजादी की बात करती थी।

अब भी वह उसके महत्व को समझती है पत्रकारों की सुरक्षा भी उसकी प्राथमिकता में है, लेकिन आज उसी के शासन में एक पत्रकार पर अनावश्यक रूप से कार्रवाई कर दी गई।

मैं नहीं समझता कि यह कार्रवाई सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों के इशारे पर की गई है इसलिए मैं मुख्यमंत्री से आग्रह करता हूँ कि वे इस मामले का फौरन संज्ञान लेकर अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करें, जैसा वे करते भी रहे हैं।

जिस पत्रकार पर कार्रवाई की गई है उसके बारे में मुझे पता चला है कि वह भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में भी उस सरकार की भी व्यंग्यात्मक आलोचना करता रहा है।

इसका मतलब यह है कि वह निष्पक्ष पत्रकार है, इसलिए उसके बारे में यह राय नहीं बनानी चाहिए कि उसने कांग्रेस की छवि खराब करने की कोशिश की।

मुख्यमंत्री के दो महत्वपूर्ण सलाहकार पत्रकार भी रहे हैं। मुझे विश्वास है कि ये लोग मिलकर आगे आएंगे और पत्रकार को रिहा कराने में अपनी भूमिका अदा करेंगे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं।

 



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