डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
मीडिया में सच्ची मुखरता की कीमत मुखर होने वाले को चुकानी पड़ती है चाहे वह पत्रकार हो या कार्टूनिस्ट या और कोई। अगर यह मुखरता आपको एक—दो सम्मान भी दिलवा दे तो आपके रास्ते आसान नहीं रहे जाते। ऐसी ही हस्ती हैं सुधीर तैलंग जिनकी कूची का हर कोई कायल है। श्री तैलंग एक खतरनाक बीमारी से जूझ रहे हैं इसकी जानकारी वरिष्ठ पत्रकार डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी के एक आर्टिकल और उनसे हुई बातचीत में मिली। ऐसे ही कुछ और दोस्त हैं जो ऐसी बीमारी झेल रहे हैं और अदम्य साहस का परिचय दे रहे हैं। डॉ.हिंदुस्तानी लिखते हैं। खतरनाक बीमारी से जूझ रहे सुधीर के इलाज का खर्च कोई सरकार, कोई मीडिया हाउस, घराना नहीं उठा रहा। परिवार पर हर तरफ दबाव है। इतने महान कार्टूनिस्ट के लिए उन्हें आगे आना ही चाहिए। ये आर्टीकल प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ इतना कि अगर कहीं सही इंसान तक यह बात पहुंचे और वो हाथ आगे बढ़ाये तो मल्हार मीडिया और डॉ.हिंदुस्तानी का प्रयास सार्थक होगा
जो मित्र हमेशा प्रेरणा देते रहे हैं उनमें सुधीर तैलंग भी हैं। गज़ब की हिम्मत, अपनापन, सादगीपूर्ण स्टाइल और संघर्ष का जज़्बा। उन्होंने बताया कि बचपन में मैं सिनेमाघर का गेटकीपर बनने का सपना देखता था, मुक़द्दर ने कार्टूनिस्ट बना दिया। इलस्ट्रेटेड वीकली, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान टाइम्स, इन्डियन एक्सप्रेस, एशियन एज आदि में बरसों बरस रोजाना कार्टून बनाते रहे हैं। नवभारत टाइम्स में मेरे साप्ताहिक कॉलम 'जिनकी चर्चा है' में आठ साल लगातार वे कैरीकेचर बनाते रहे। वे दिल्ली नभाटा में ट्रांसफर के बाद भी बरसों यह जुगलबंदी करते रहे।
सुधीर तैलंग भारत के नंबर वन पॉलिटिकल कार्टूनिस्ट हैं। राजनीति और समसामयिक विषयों की उनकी पढाई, समझ और संपर्क उन्हें और उनके कार्टूनों को जीवंत बनाता है। 2004 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। कई मशहूर राजनेताओं के ड्राइंग रूम में उनके कार्टून सम्मान के साथ टंगे हैं। सुधीर तैलंग के पास बड़े नेताओं, मीडिया टायकून और मशहूर शख्सियतों की महानता (और नीचता) दोनों के सैकड़ों किस्से हैं। महान माने जाने वाले कई संपादकों को उन्होंने दिगम्बरावस्था में देखा है। कैसे उन्हें पद्मश्री मिलने पर महान संपादक को मिर्ची लगी और वह संपादक ईर्ष्यावश नीचता पर उतर आए, कैसे एडिटोरियल मीटिंग में वे सरताज बन गए, कैसे महान कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण ने टाइम्स के प्रकाशनों में उनके कार्टून छपने पर 'नौटंकी' की और उन्हें छापने से रोका। ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के वक़्त उन्होंने डॉक्टरों से कहा था - आप मेरे ब्रेन से ट्यूमर निकाल सकते हो, ह्यूमर नहीं। पिछले साल उनके कार्टूनों की नुमाइश इण्डिया हेबिटेट सेंटर में लगी, जिसमें आडवाणी भी थे और येचुरी भी, स्पीकर मैडम भी थीं और केजरीवाल भी। खतरनाक बीमारी से जूझ रहे सुधीर के इलाज का खर्च कोई सरकार, कोई मीडिया हाउस, घराना नहीं उठा रहा। परिवार पर हर तरफ दबाव है। इतने महान कार्टूनिस्ट के लिए उन्हें आगे आना ही चाहिए।
Comments