राकेश कायस्थ।
आज मुंबई के अखबारों में एक अजीब सी लेकिन अच्छी खबर है। कांदिविली में रहने वाला एक नौजवान गूगल पर आत्महत्या के तरीके सर्च कर रहा था। कंपनी ने इसकी इत्तला अमेरिकी अधिकारियों को दे दी।
वहां की पुलिस ने इंटरपोल से संपर्क किया और इंटरपोल ने डीटेल मुंबई पुलिस के साथ शेयर किये। नतीजा ये हुआ कि पुलिस मौके पर पहुंच गई और युवक समय रहते बचा लिया गया।
दुनिया अगर हरेक जान की कीमत इसी तरह समझने लगे तो ये धरती जन्नत हो जाये। ये कहानी टेक्नोलॉजी की ताकत और उसका सकारात्मक प्रभाव दर्शा रही है। लेकिन दूसरा पहलू ये बताता है कि हमारी जिंदगी हरेक सेकंड निगरानी के दायरे में हैं।
आप क्या खरीद रहे हैं, कहां जा रहे हैं, किससे मिल रहे हैं, ये सब तो अलग है। कई बार ऐसा लगता है कि आपके मन की बात तक किसी ना किसी रूप में पढ़ी जा रही है।
ऐसा अक्सर होता है कि आप कोई चीज़ सोचते हैं और फौरन आपका मोबाइल उसके दस विज्ञापन हाज़िर कर देता है।
मुझे पता नहीं है क्या तकनीक है, संभव है आप उससे मिलते-जुलते कोई शब्द बोल या टाइप कर रहे हों और सोशल मीडिया एलगोरिद्म उसे डीकोड करता हुआ ये समझ पा रहा हो कि आप क्या चाहते हैं।
ये साफ-साफ लग रहा है कि बहुत जल्द आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस निचले स्तर की लिखा-पढ़ी वाली अनगिनत नौकरियां गायब कर देगा।
ये सच है कि टेक्नोलॉजी सिर्फ नौकरी नहीं छीनती बल्कि उत्पादकता भी बढ़ाती है और नये रास्ते खोलती है।
लेकिन एआई की प्रगति काफी डरावनी लग रही है।
कुल मिलाकर हम एक ऐसे दौर में दाखिल हो चुके हैं, जो कुछ साल पहले सिर्फ साइंस फिक्शन में मौजूद था, असल में नहीं।
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