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पीटीआई / भाषा में गुपचुप भर्ती:मतलब कि एक तीर से कई निशाने

मीडिया            Jan 28, 2017


 मल्हार मीडिया डेस्क।
एक समय था अखबारों और समाचार एजेंसियों में नौकरियों के लिए विज्ञापन छापा जाता था लेकिन जब से ईमानदारी, जवाबदेही और पारदर्शिता जैसे भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग होने लगा है ये बड़ी और खासकर मीडिया संस्थाओं ने इन सबकी जिम्मेादारी केवल सरकारों को पूरा करने पर छोड़ दिया है।
पापा ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) के नाम से विख्यात (कुख्यात) पीटीआई/ भाषा में मैनेजमेंट बदल गया लेकिन इसका काम करने का रवैया नहीं बदला है। पिछले एक महीने से वहां गुपचुप तरीके से पत्रकारों की भर्ती चल रही है। इसकी खबर मीडिया जगत के कुछ ही लोगों को है।वे ही अपने लोगों को लाने और फिट करने में लगे हैं। लेकिन एजेंसी की हालत और छवि का ये हाल है कि पिछले दिनों सात लोगों को नियुक्ति पत्र भेजा गया लेकिन उनमें से केवल तीन ने ही ज्वांइन किया।

पिछले समय की तुलना में इस बार पत्रकारों की भर्ती में थोड़ा बदलाव किया गया है। अब यहां प्रशिक्षु पत्रकार नहीं रखें जा रहे बल्कि अनुभवी पत्रकारों को रखा जा रहा है। इससे फायदा यह है कि ये अपने आप वेजबोर्ड की परिधि से बाहर हो जाते हैं और इस तरह प्रबंधन को आगे मजीठिया और यूनियन जैसे झंझट से मुक्ति भी मिल जाती है। मतलब कि एक तीर से कई निशाने।

मंच की मांग है कि इस दिशा में पीटीआई कर्मचारी फेडरेशन दखल देकर इस तरह की गुपचुप और ठेके पर लोगों को रखे जाने की प्रबंधन की कुटिलता भरी चाल का विरोध करे। यह प्रबंधन की यूनियन के अस्तित्व को खत्म करने की साजिश है।

इतना ही नहीं पीटीआई की हिन्दी सेवा में वर्षों से संपादक का पद रिक्त है लेकिन इस ओर प्रबंधन का कोई ध्यान नहीं है। कुछ दिन पहले इस पद को भरने के लिए सरगर्भी चली थी लेकिन लगता है कोई जुगाड़ू और गुपचुप संपादक नहीं मिलने के कारण अभी तक यह पद खाली ही छोड़ दिया गया है। पीटीआई कर्मचारी फेडरेशन को चाहिए कि वह संपादकों की भर्ती का कोई सरल और पारदर्शी मानक तरीका अपनाने का प्रबंधन पर दबाव डाले। साथ ही उसे बाहर से भाड़े पर संपादकों की भर्ती की जगह कंपनी के अंदर से ही वरिष्ठ पत्रकारों को इसके लिए अवसर मुहैया कराने की मांग करनी चाहिए।

मजीठिया मंच फेसबुक वॉल से



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