मल्हार मीडिया भोपाल।
देश के नागरिक को जितनी आजादी है उतनी पत्रकार को नहीं है। यह मान्यता वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया की है। वह योद्धा पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के बलिदान दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे।
पत्रकार-पाठक संवाद विषय पर यह समारोह माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के तत्वाधान में किया गया था।
राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार व सुधी पाठकों की मौजूदगी में श्री हरदेनिया ने प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर यहां कहा कि संविधान में इसका कोई जिक्र नहीं है। चूंकि अखबारों को उतनी ही मान्यता है, जितनी एक नागरिक को है। इस लिहाज से देश के नागरिक को जितनी आजादी है उतनी पत्रकार को नहीं है।
उनका कहना था कि देश में समृद्धता तब तक नहीं आएगी, जब तक कि अखबारों को स्वतंत्रता नहीं दी जाएगी।
स्वदेश ग्वालियर समूह के सलाहकार संपादक गिरीश उपाध्याय ने यहां द कश्मीर फाइल्स की तरह योद्धा पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी जी के जीवन पर फिल्म बनाने की जरूरत बताई। इससे इतर उनका सुझाव था कि पत्रकारिता के पुरोधाओं पर भी न केवल फिल्म निर्माण होना चाहिये, बल्कि इसे देश के शैक्षणिक संस्थाओं में प्रसारित भी किया जाना चाहिये।
इस संवाद के दौरान पत्रकार श्याम बिल्लौरे ने कहा कि अभी भी पाठक अखबार की गंध से दूर नहीं रह सकता है। जबकि
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र धनोतिया का कहना था कि जब तक अखबार मालिक चलाएंगे, तब तक पाठक की मंशानुसार अखबार नहीं छप सकते हैं। यहां मौजूद वरिष्ठ पत्रकार अलीम बजमी का मानना था कि संपादक के नाम पत्र की जगह नागरिक पत्रकारिता ने ली है। पाठकों की हिस्सेदारी भी खत्म हो गई है।
मल्हार मीडिया की संपादक ममता यादव ने प्रचलित व्यवस्था की ओर समूह का ध्यान आकृष्ट कराते हुए सवाल खड़ा किया कि आप कैसे तय करते हैं कि पाठक क्या देखना या पढ़ना चाहता है। अखबार जहां स्कीम से चलता है वहीं टीवी और आनलाईन मीडिया में व्यूअर और विजीटर तकनीक और प्रस्तुति पर निर्भर करते हैं। आज के दौर में जब संपादक के नाम पत्र का प्रचलन ही खत्म हो चुका है। टीवी में भी पाठकों से विमर्श का दौर खत्म हो चुका है। तो पाठक क्या चाहता है यह कोई भी मीडिया कैसे तय कर लेता है?
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उन्होंने कहा कि और व्यूवर खरीदे जाते हैं। अखबार जहां स्कीम से चलता है वहीं टीवी और आनलाईन मीडिया में व्यूअर और विजीटर तकनीक और प्रस्तुति पर निर्भर करते हैं।
यहां पूर्व आईएएस अधिकारी व साहित्यकार मनोज श्रीवास्तव ने तथ्य की पवित्रता पर ध्यान देने की जरूरत बताई। गणेश शंकर विद्यार्थी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने पत्रकारिता के साथ मानवधर्म भी निभाया है।
अमिताभ शुक्ला ने मीडिया की प्रभावोत्पादकता को सबसे बड़ी चुनौती बताया और कहा कि सरकार व समाज की असंवेदनशीलता के कारण मीडिया अपनी विश्वसनीयता खो रहा है।
चंद्रकांत नायडू ने कहा कि धैर्यहीनता को अब मीडिया ने अपना हथियार बना लिया है।
जबकि देवेंद्र रावत ने अखबार की उपयोगिता एवं तटस्थता पर जोर देकर कहा कि इससे इतर भले ही कोई बात कितनी अच्छी क्यों न की जाय, समाज देखेगा ही नहीं।
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच वरिष्ठ पत्रकार आलोक अवस्थी ने कहा कि समय के साथ चलना जरूरी है, लेकिन अखबार की प्रासंगिकता बनी रहेगी।
वरिष्ठ पत्रकार विजय बोंद्रिया का कहना था कि मीडियम बदलने से नहीं पत्रकारिता का महत्व समाचार पत्र से ही होता है। अखबार में सामाजिक शुद्धता बनाये रखने सबकी जिम्मेदारी मानते हुए अखबार में ऐसे खबर की जरूरत बताई जिसे पूरा परिवार साथ पढ़ सके।
राम मंगल आचार्य ने कहा कि समाचार पत्रों में हिन्दी के बजाय अंग्रेजी का उपयोग ज्यादा हो रहा है। समस्या है कि क्या छापे क्या न छापे। पत्रकार सतीश एलिया ने कहा कि सोशल मीडिया में सामाजिक जिम्मेदारी का भाव नहीं है।
इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक व पद्मश्री वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्तश्रीधर प्रमुख रूप से मौजूद थे। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह व माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि के पूर्व रेक्टर लाजपत आहूजा भी मौजूद थे। उपर्युक्त वरिष्ठ पत्रकारों के अलावा सर्वश्री विजय दास, सतीश एलिया, आलोक अवस्थी आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए।
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