अखबारों और चैनलों की तीन विषयों पर रिपोर्टिंग का पोस्टमार्टम
1- सागर में भूपेंद्र सिंह और जबलपुर में गोपाल भार्गव ध्वजा रोहण करेंगे।
*मीडियाकर्मियों का वश चले तो राष्ट्रीय ध्वज की जगह सागर और जबलपुर के दो अलग—अलग ध्वज बनवा कर फहरवा दें मंत्रियों से। उन से ज्यादा मीडिया को रूचि है उनके टकराव में...!भैया भैय्यम् ठेलिया दोनों कूप पड़ंत...! भैया लोग मौन हैं लेकिन प्यादे हथियार पैने करके टोंच टोंच कर उनका परीक्षण कर रहे हैं। दोनों तरफ की मीडियाटिक पिद्दलों में से एक का भी साहस नहीं कि नीति, कार्यक्रमों और आचरण पर एक दूसरे के भैय्या जी पर सीधी और खड़ी चोट कर सके। बस ये बताने में जुटे हैं...मैं दूल्हा की मौसी ,मैं दूल्हा की मौसी... कभी दूल्हे को भी तो बताने दो कि ये हमारी प्यारी मौसी जी हैं । लेकिन दूल्हे चुप हैं मौसियाँ लड़ रही हैं।
2- पार्क में बेगमगंज से आये प्रेमी को सागर की प्रेमिका से इश्क फरमाते पकड़ा, पुलिस और राहगीरों ने वीडियो बनाऐ ,उठक बैठक लगवाई फिर थाने भी ले गये।
* एकाध को छोड़कर सबकी सोच सड़क छाप निकली।...उन बच्चों से ज्यादा पुलिसकर्मी और तमाशबीन मौके पर रस ले रहे थे...,गोया कि यह कहना चाहते हों...सालो अकेले अकेले फरमा रहे थे...हमें तरसता छोड़ कर। ज्यादातर ने संविधान प्रदत्त अधिकारों , संकीर्णता और गरिमापूर्ण ढंग से सिर्फ मना करके उन लोगों को हटा दिऐ जाने जैसे आसान विकल्पों की बात ही नहीं की।...स्टोरी का लपलपाता आनंद जो खतम हो जाता...या कि सोचने का कैनवास और विज़न ही नहीं है, यानि अयोग्य और गलत लोग मीडिया में घुसे हैं क्या!?...हैं तो उन्हें कमजोर या बाहर करने की शुरूआत कब होगी?
इसी संदर्भ में एक बात और ...सड़क छाप मजनूं की पिटाई वाले घटिया शीर्षक को लिखना कब बंद करेंगे। छेड़खानी करने वाले बदमाशों को मजनूं बताने से पहले जानते भी हो कि मजनूं कौन था ? डीपली नहीं तो गूगल पर ही सर्च मार लो मजनूं के बारे में। हैरत में रह जाओगे उसके व्यक्तित्व की ऊँचाई पर और फिर कभी लड़कियाँ छेड़ने वालों को इतनी सम्मानीय संज्ञा नहीं दोगे हेडलाइनों में।
3-एसपी गौरव तिवारी के टीआईयों की जिम्मेवारी फिक्स करने वाली खबर
* कितनों ने नियम कायदों और नैतिकता के मानदंडों पर गौरव के आदेश को कसने की कोशिश की।कुछ मीडियाकर्मियों को गौरव के आदेश का अंध समर्थन करने की रौ में बहकर सर्वज्ञात तथ्यों को छिपाकर खबर डालते पाया गया। क्यों...इसलिऐ कि बहुत दिनों से कोई हीरो नहीं मिल रहा जिसके इर्दगिर्द पत्रकारिता की आड़ में अपने स्वार्थों की बुनावट की जा सके। तो चलो हम खुद ही एक हीरो की रचना करते हैं। पहले एक अनुभवहीन के छपासप्रेम को और उभार कर ,सलाहें देकर उससे त्रुटियाँ कराते हैं।...फिर जब तक की उसे सही गलत का भान हो अपने खेल खेलकर हम किनारा करे लेते हैं। ...तो अब कोई नया बखेड़ा कराओ उससे, यहाँ वहाँ पुरानी फाइलों के मुर्दा और तुगलकी आदेशों की याद दिलाकर अब छिंदवाड़ा को रालेगणसिद्धि बनाने का सपना दिखाओ,...फिर अपन केजरीवाल की तरह हाथ बना कर सटक लो।
लेखक सागर के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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