Breaking News

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा क्या अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई से छूट सही है

राष्ट्रीय            Sep 01, 2025


मल्हार मीडिया ब्यूरो। 

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 1 सितंबर को 2014 के प्रमोटी एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट मामले के उस फैसले पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिसमें कहा गया था कि अल्पसंख्यक स्कूलों को बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने वाले कानून (आरटीई एक्ट, 2009) से छूट है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि उन्हें इस फैसले की सही होने पर संदेह है और उन्होंने यह मुद्दा मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के पास भेज दिया है।

आरटीई एक्ट के तहत छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है। कानून में प्रावधान है कि निजी स्कूलों को 25 प्रतिशत सीटें कमजोर वर्गों और वंचित तबकों के बच्चों के लिए सुरक्षित रखनी होंगी।

लेकिन 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रमाटी केस में यह कहा था कि अल्पसंख्यक स्कूलों को इस प्रावधान से छूट दी जाएगी। मौजूदा पीठ ने सवाल उठाया कि क्या यह छूट सही है और क्या इसे दोबारा विचार की जरूरत है।

पीठ ने कहा कि अगर आरटीई एक्ट अल्पसंख्यकों के अधिकारों (अनुच्छेद 30) का उल्लंघन करता है, तो प्रमाटी फैसले में यह विचार करना चाहिए था कि धारा 12(एक)(c) को उस समुदाय के कमजोर तबके के बच्चों तक सीमित कर पढ़ा जा सकता था। अदालत ने कहा कि पूरी तरह छूट देना सही नहीं था। इसलिए, यह तय करने की जरूरत है कि क्या पुराने फैसले की समीक्षा होनी चाहिए। पीठ ने चार अहम मुद्दों पर फैसला मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा है।

सीजेआई के पास भेजे गए सवाल

क्या प्रमाटी फैसले की दोबारा समीक्षा होनी चाहिए।

क्या धारा 12(एक)(c) को अल्पसंख्यक स्कूलों में उनके ही समुदाय के कमजोर बच्चों तक सीमित किया जा सकता है।

प्रमाटी केस में अनुच्छेद 29(दो) पर विचार न करने का प्रभाव।

धारा 23(दो) पर विचार न करने का प्रभाव और क्या केवल धारा 12(एक)(c) ही नहीं बल्कि पूरा आरटीई एक्ट असंवैधानिक घोषित होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को राइट टू एजुकेशन (RTE) अधिनियम के तहत समय पर प्रतिपूर्ति करने का निर्देश दिया गया था। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने केंद्र और हाईकोर्ट के याचिकाकर्ता से जवाब मांगा और मामले को चार हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि आरटीई लागू करने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकार की है और केंद्र से फंड न मिलना कोई आधार नहीं हो सकता।

अदालत ने केंद्र से भी अपने दायित्व निभाने और फंडिंग को समग्र शिक्षा योजना से अलग करने पर विचार करने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार का तर्क है कि निजी स्कूल प्रबंधनों को प्रतिपूर्ति मिलनी चाहिए और यह जिम्मेदारी केंद्र और राज्य दोनों की साझा होनी चाहिए। वहीं, केंद्र ने हाईकोर्ट में कहा था कि एनईपी 2020 के तहत समग्र शिक्षा योजना एकीकृत ढांचा है और कानून के मुताबिक राज्यों की प्रमुख जिम्मेदारी है कि वे आरटीई को लागू करें।

 


Tags:

malhaar-media right-to-education supreme-court-of-india rte-educaction minority-schools

इस खबर को शेयर करें


Comments