डॉ प्रकाश हिन्दुस्तानी।
यह सस्पेंस-ड्रामा फिल्म क्रिसमस नहीं, संक्रांति के मौके पर आई है। यानी आप 'तिल गुड़ ध्या आणि गोळ गोळ बोला' की जगह 'मेरी क्रिसमस' बोलें ? फिल्म की शुरुआत क्रिसमस की पूर्व संध्या से शुरू होती है। मेरी क्रिसमस की रात और साजिश।
हत्या, सस्पेंस और रोमांच से भरपूर यह फिल्म फ्रेडरिक डार्ड के फ्रेंच उपन्यास 'बर्ड इन ए केज' का रूपांतरण है।
यह मुंबई में एक लंबी रात की कहानी है जब इसे बॉम्बे कहा जाता था। कोलाबा के ईसाई बहुल इलाके में रहने वाला अल्बर्ट (विजय सेतुपति) सात साल बाद मुंबई लौटा है, अपनी माँ की मृत्यु पर शोक मना रहा है। अकेला है।
निराशा से उबरने के लिए, जब वह खुद को क्रिसमस के जश्न में डुबाने की कोशिश करता है, तभी उसकी मुलाकात एक रेस्तरां में मारिया (कैटरीना कैफ) से होती है जो अपनी बेटी और बड़े टेडी बियर के साथ है, लेकिन बच्ची का पिता की वहां नहीं है।
अल्बर्ट को लगता है कि कुछ गड़बड़ है लेकिन फिर भी वह उसकी ओर आकर्षित हो जाता है। संयोग दर संयोग बनाते हैं। अल्बर्ट को लगता है कि उसकी रात हसीनतम होनेवाली है, लेकिन खुद को एक पिंजरे में फंसा हुआ पाता है।
अगर आपको अल्फ्रेड हिचकॉक की फ़िल्में पसंद हैं तो यह फिल्म भी आपको पसंद आएगी। फिल्म की विचित्रता, रहस्य, रोमांचक क्षण, डायलॉग आपको बांधे रखते हैं और अनपेक्षित अंत तक पहुंचाते हैं।
दर्शक के रूप में आपको लगता है कि शायद हत्यारा यह है, या वह है या कोई और, कोई तीसरा है। शायद यह राज है।
यही उधेड़बुन अंधाधुन बनानेवाले, थ्रिलर्स के महारथी निर्देशक श्रीराम राघवन की फिल्म का आकर्षण है।
कई बार 'द नाइट इज डार्केस्ट बिफोर द डॉन यानी इस काली अंधेरी रात के बाद सुबह आएगी' से शुरू यह फिल्म बताती है कि कई बार बलिदान से बेहतर हिंसा होती है। जी हाँ,कई बार !
पहले सीन में टॉप एंगल से आधी-आधी स्क्रीन पर दो मिक्सर ग्राइंडर एक साथ चलते हैं। एक में मसाला पिस रहा होता है, तो दूसरी में दवाइयां। ये दोनों मिक्सर ग्राइंडर अल्बर्ट और मारिया की दो अलग-अलग दुनिया के प्रतीक हैं, जो एक साथ आते हैं।
दो दुनिया हैं, दो मसाले, दो जीवन, दो रहस्य! फिल्म के इंटरवल तक आपके धैर्य की परीक्षा होती है। फिर भी उनकी कहानी में उत्सुकता बनी रहती है। कई सवाल अनसुलझे रह जाते हैं। मसलन, मारिया अपना प्लान खराब होने पर भी अल्बर्ट के आगे नाटक जारी क्यों रखती है? उसे अपना झूठ पकड़े जाने का डर क्यों नहीं होता?
आखिरी का आधा घंटा ख़ास है। ऐसे क्लाइमैक्स का उम्मीद आप बिल्कुल नहीं करते। निर्देशक की यूनिक छाप हर फ्रेम में मौजूद है। डार्क थीम, पुरानी फिल्मों के सन्दर्भ छोटी-छोटी डीटेलिंग देखने लायक है।
डैनियल बी जॉर्ज का बैकग्राउंड स्कोर और मधु नीलकंदन का कैमरा नॉस्टैल्जिया के साथ-साथ जरूरी सस्पेंस बनाए रखता है। प्रीतम के गाने याद नहीं रहते। पठान के खलनायक रहे विजय सेतुपति और कटरीना कैफ दोनों ने गज़ब की एक्टिंग की है। संजय कपूर, विनय पाठक, अश्विनी कालसेकर, टीनू आनंद के रोल छोटे पर महत्वपूर्ण हैं।
Comments