एम शकील।
उपकार' फिल्म में मलंग चाचा का किरदार मशहूर अभिनेता प्राण का नया अवतार था। इस नए अवतार में उन्होंने पर्दे पर एक गाना गाया था- 'कसमें वादे, प्यार, वफा सब बातें हैं, बातों का क्या?' तब धूम मची थी। आज भी लोगों की जुबान पर है, ये गाना।
कैसे संभव हुआ था ये सब, याद कर रहे हैं, महान अभिनेता और निर्देशक मनोज कुमार।
जब मैं 'उपकार' की कहानी पर कार्य करते हुए मलंग चाचा के किरदार को विकसित कर रहा था, तो अपनी कल्पना में इस भूमिका के लिए मैं प्राण साहब को ही देख रहा था। जैसे-जैसे पटकथा आगे बढ़ी, मलंग बाबा का चरित्र मेरे हाथ से फिसल कर सहज स्वमेव शक्ल अख्तियार करता चला गया। मैंने 'उपकार' में एक ऐसा प्रयोग करने का निर्णय लिया, जो ऐसी स्थिति में बहुत ही कम लोग करने का साहस करेंगे।
मुझे पूरा विश्वास था कि प्राण उनकी आशा और कल्पना के अनुरूप ही प्रदर्शन करेंगे, क्योंकि प्राण की नाटकीय क्षमताओं से मैं इतना प्रभावित था कि मैंने फिल्म का सबसे महत्वपूर्ण गीत प्राण पर फिल्माने का निर्णय ले लिया। वह प्रसिद्ध गीत था- 'कसमें वादे, प्यार, वफा सब बातें हैं, बातों का क्या?' संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी को जब पता चला कि इंदीवर द्वारा लिखित इस गीत को पर्दे पर प्राण गाने वाले हैं, तो वे घबरा गए।
लगभग रुआंसे होकर मुझसे बोले, 'वे हमारे इस गाने की रेड पीटकर रख देंगे। यह पागलपन मत कीजिए। कृपा करके यह गाना किसी और पर फिल्माइये। आप भले ही इसे बैकग्राउंड में बजा दीजिए, मगर प्राण साहब पर इसे मत फिल्माएं। 'आह' में उन्हें सकारात्मक भूमिका देकर राज कपूर फ्लॉप हो गए थे।'
मैं समझ गया था कि प्राण की खलनायक की सशक्त छवि से प्रभावित होकर ही ये ऐसा कह रहे हैं और उन्हें यह समझाना कठिन है कि राज कपूर नहीं, बल्कि वह फिल्म ही फ्लॉप हो गई थी। हालांकि, कुछ दिनों के बाद वे समझ गए कि मैं ऐसा ही करने वाला हूं।
उस समय मैं दिल्ली में था। लेकिन मुझे एक झटका तब लगा, जब मैंने इस गीत को गाने के लिए किशोर कुमार से संपर्क किया। किशोर कुमार ने वह गीत गाने से साफ इनकार कर दिया, यहां तक कि स्वयं प्राण के व्यक्तिगत आग्रह पर भी वे राजी नहीं हुए
तब मैंने कल्याणजी-आनंदजी से कहा कि, 'आप यह गीत किसी और गायक से गवा लें, क्योंकि मैं इस पुरअसर गीत को पर्दे पर प्राण को ही गाते देखना चाहता हूं।' अन्तत: मन्ना डे ने इसे बड़े भाव-विभोर होकर गाया
आज इस गीत का शुमार न सिर्फ कल्याणजी-आनंदजी की श्रेष्ठ संगीत रचनाओं में होता है, बल्कि मन्ना दा के भी भाव-भरे गीतों में भी इसे शामिल किया जाता है। प्राण साहब ने इस गाने पर सहजता से होंठ हिलाकर, इसकी सुंदरता में चार चांद लगा दिए। इस गाने के फिल्मांकन के लिए मैंने प्राण साहब को एक जगह बैठा कर कैमरा भी एक जगह स्थिर कर दिया। वे गाते रहे और हमने लगभग डेढ़ घंटे तक शूटिंग की। पैकअप होने पर प्राण साहब ने कहा-'पंडितजी, आज शूटिंग में मजा नहीं आया। आपने कैमरा एक जगह रख कर मेरे क्लोज अप ही लिए।' मैंने कहा, 'दरअसल, हमलोगों ने कैमरा बिल्कुल चालू ही नहीं किया।' उन्होंने पूछा, 'क्यों?'
मैंने कहा, 'आपकी अभिनय क्षमता पर मुझे कोई शंका नहीं है, मगर मैंने कभी आपको गाते हुए नहीं देखा और इस गाने के लिए फिल्मांकन में भी कैमरे के पीछे से नहीं देख पाऊंगा, क्योंकि अभिनेता के तौर पर मुझे इस दृश्य के परिपार्श्व में रहना होगा।
अत: मैं केवल यह देखना चाहता था कि यह काम मेरी सोच के अनुरूप हो रहा है या नहीं।' उन्होंने पूछा, 'क्या गाते समय मेरे अभिनय में कोई त्रुटि रही?' मैंने कहा, 'नहीं, केवल 'कसमें वादे' शब्द गाते समय जरा-सा गैप आ रहा था, बाकी सब बिल्कुल सही था।'
उधर प्राण साहब ने इस गाने की कैसेट को घर ले जाकर, अनेक बार सुन-सुन कर, इसे दिल में बसा लिया। चूंकि, गाने का फिल्मांकन उन्हें कठिन काम लगता था। अत: उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि शूटिंग के वक्त गाने को तेज आवाज में बजाया जाए और साथ वे खुद भी गाएं। उन्हें व्यक्तिगत रूप से यह गाना बहुत पसंद था।
इसका फिल्मांकन भी काफी खूबसूरती से किया गया। वे थोड़े 'नर्वस' थे, लेकिन इसके लिए उन्होंने कठिन परिश्रम किया।
किसी को भी यह आभास नहीं था कि यह गाना इतना हिट होगा। पर्दे पर इसका पूर्ण प्रभाव देखकर सबसे पहली प्रशंसा और बधाई कल्याणजी की तरफ से ही आई। तब मैंने प्राण साहब से कहा, 'इस गाने को आप पर फिल्मानें पर लोगों ने विरोध किया था।
इसे पर्दे पर देखकर यह मानना पड़ा कि ज्यादातर सितारे गाने को मात्र होंठों से ही गाते हैं, मगर आपने दिल से गाया है। आपने इस गाने में इस कदर भावनाएं भर दीं कि आपकी गर्दन की नसें तक उभर कर दिखने लगी थीं।
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