डॉ प्रकाश हिंदुस्तानी।
इस हेडिंग का मतलब समझ में आया क्या? इसका अर्थ है -- एमआर यानी मणिरत्नम की टीऍफ़ (यानी तमिल फिल्म) पीएस वन (यानी ‘पोन्नियिन सेल्वन' पार्ट वन) का एफआर मतलब फिल्म रिव्यू !
फिल्म का नाम बड़ा कठिन है ! क्यों रखा? अपनी ज्ञानचंदी दिखाने के लिए? मुग़ल-ए-आज़म फिल्म का नाम 'मुगल शहंशाह की मोहब्बत में गिरफ़्तार हुस्न की मलिका" रखा जाता तो?
या शोले का नाम 'कानून के रखवाले ठाकुर का खतरनाक दस्युओं से इंतक़ाम' होता तो?
कितने लोग जाते फिल्म देखने?
इंदौर में एक होटल खुला था, जिसका नाम था 'एमसी स्क्वायर टू', तभी मैंने कहा था कि ये होटल का नाम है या किसी कोचिंग इंस्टीट्यूट का? दुकान बंद हो जाएगी। हो गई।
इतना बड़ा टाटा ग्रुप कोई गेला तो है नहीं, जिसने भारत के सबसे भव्य होटल का नाम दो अक्षरों में 'ताज' रखा।
वह भी कोई कठिन सा नाम रख सकता था। पीएस मतलब क्या? प्राइवेट सेक्रेटरी? पोलिस सार्जेंट? पोस्ट स्क्रिप्ट? पैसेंजर स्टीमर?
अब जान लें यहाँ ‘पोन्नियिन सेल्वन' का मतलब? पोन्नियिन मतलब पोन्नी नदी का पुत्र?
पोन्नी नदी दक्षिण भारत में नंदी हिल्स से निकलती है और चिकबल्लापुर, बेंगलुरु, होसुर और कावेरीपट्टनम आदि के पास से गुजरते हुए बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है।
जयंती रंगनाथन ने बताया है कि दसवीं-ग्यारहवी शताब्दी में समूचे दक्षिण में चोला साम्राज्य का बोलबाला था। पोन्नियन सेल्वन उसी वंश के नायक अरुलमोजी वर्मन की कहानी है।
अरुलमोजी वर्मन को उनके पराक्रम की वजह से राजराज चोला का खिताब दिया गया था।
1950 के दशक में तमिल की प्रसिद्ध पत्रिका कल्कि में पोन्नियन सेल्वन की कथा धारावाहिक रूप से छपनी शुरू हुई। इस महाउपन्यास के लेखक थे कल्कि कृष्णमूर्ति।
यह उपन्यास साढ़े तीन साल तक लगातार धारावाहिक रूप से छपा और पसंद किया गया। यह करीब ढाई हजार पन्नों का उपन्यास था, (सबसे बड़ा तमिल उपन्यास)।
किताब के रूप में छपने गया तो तीन किस्तों में छापना पड़ा!
कल्कि कृष्णमूर्ति के इस महाउपन्यास के राइट्स महान अभिनेता और नेता एम. जी. रामचंद्रन ने खरीदे थे, पर वे फिल्म नहीं बना पाए।
बहुत से कारण रहे। कई दशक बाद कमल हासन की निगाह भी इस पर गई, पर वे भी इसे नहीं बना पाए।
फिर मणि रत्नम इसके पीछे दौड़े और कहते हैं कि करीब पांच अरब खर्च करके वे इसके पहले भाग को बनाने में सफल हो गए।
फिल्म का नाम उन्होंने उपन्यास के नाम पर ही रखा।
मैं और मेरे जैसे कई दर्शक इस फिल्म से अपने आपको जोड़ नहीं पाए।
कारण यह कि हमने भारत के इतिहास के नाम पर सिर्फ दिल्ली और मुगलों का इतिहास ही पढ़ा है।
हमें दक्षिण भारत के महान चोल राजा करिकल पेरुवलाथन और उनके बाद के राजाओं किल्लीवलावन, नेदुन्किल्ली, पेरुन्किल्ली आदि के बारे में ज्ञान नहीं है।
न ही विजयालय चोल द्वारा पांडियास और पल्लव को हराकर पुनः: चोल राजवंश की स्थापना के बारे में पता है।
हमें तो दस-बारह साल पुराना इतिहास भी पता नहीं तो दस-बारह सदियों पुराना इतिहास क्या पता?
पोन्नियिन सेल्वन-वन इपिक हिस्टोरिक ड्रामा फिल्म है जैसे गेम ऑफ़ थ्रोन्स, हेलेन ऑफ़ ट्राय आदि।
मुझे वे फ़िल्में समझ में नहीं आई और न ही पोन्नीयिन सेल्वन !
पूरी फिल्म में मैं कहीं भी अपने आप को कनेक्ट नहीं कर पाया।
लगा कि यह किसी और ही दुनिया की कहानी है जिसमें पात्रों और स्थानों के नाम बड़े ही अनसुने से लग रहे थे।
हाँ, ऐश्वर्या राय बच्चन अच्छी लगीं लेकिन तेलुगु स्टार तृषा कृष्णन उनसे भी सुन्दर लगीं। प्रकाश राज ने एक बूढ़े और बीमार चोला वंश के राजा का रोल किया है।
फिल्म को जिस भव्य तरीके से फिल्माया गया है, वह अद्भुत है ! हरेक सीन विहंगम भव्य है!
लोकप्रिय युवा लेखक दिव्य प्रकाश दुबे ने हिन्दी के डायलॉग ऐसे लिखे हैं, जो बिना क्लिष्ट हुए सरस हैं। मुझे तो यह फिल्म कभी बाहुबली जैसी, तो कभी ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान जैसी लगी।
तलवारबाजी, किले, मंदिर, जंगल, समंदर आदि देखकर मज़ा आया।
गाने बोरियत भरे लगे। कुछ तो जबरन ठूंस दिए गए थे। एआर रहमान महान संगीतकार होंगे, लेकिन उनकी धुनों में भारी दोहराव है।
वे सुरों की जगह ध्वनियों के जादूगर हैं, पर यह क्या वही सन सन सननन , टन टन टननन , घन घन घननन और ये क्या गाना हुआ ?
कानों में बोल धीरे से बोल
क्या है वो बोल कौन है वो बोल
या पतंग है वो बोल
सच्चा प्रेमी है वो बोल
वो वीर है ना बोल
या कायर है वो बोल
किसी को इडली खाना पसंद है तो किसी को समोसा; कोई फिश खाना पसंद करता है कोई अंडा; कोई चिकन खाता है तो कोई केंकड़े ! सबकी अपनी पसंद होती है
! फिल्म के बारे में भी ऐसा ही है।
मेरी नापसंद शायद आपको पसंद आए!
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