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बहुत कुछ समेटने के चक्कर में बिखर गई लाल सिंह चड्ढा

पेज-थ्री            Aug 12, 2022


 

डॉ प्रकाश हिंदुस्‍तानी।

बहुत प्रचार किया गया था आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा का।  इस फिल्म के नेगेटिव प्रचार या बहिष्कार की अपील का फायदा  मिला, लेकिन सिनेमाघर में टिकट खरीदकर पहले दिन, पहला शो देखने के बाद मुझे लगा कि यह फिल्म आमिर मियां का मुरब्बा है। रक्षाबंधन के मौके पर रिलीज होने वाली फिल्म में रक्षा बंधन की कोई बात नहीं है।

 इस फिल्म में मानवतावादी होने का संदेश दिया गया है जिसकी फिलवक्त किसी को कोई जरूरत नहीं है। इस फिल्म में आमिर की 'ऊँ ऊँ करने की  स्टाइल बोर करने वाली और फर्जी लगाती है।

दर्शक को पता है कि ये बंदा तो ग्लिसरीन लगाकर अभिनय  कर रहा है, इसमें दर्शक क्यों फ़ालतू में भावुक हो? भैया, तुम्हें तो भावुक बनने के करोड़ों रुपये मिल रहे हैं, हम दर्शक तो पैसे खर्च करके आये हैं, हमें वैल्यू फॉर मनी मिलना चाहिए।

जब पीछे की सीट पर बैठा दर्शक खीजकर कहता है- ''बस कर, बहुत पका दिया'', तब सांत्वना मिलती है कि यह केवल मेरा मनोभाव नहीं है।
 1994 में हॉलीवुड में बनी 'फॉरेस्ट गंप' फिल्म फिल्म को 2022 में लाल सिंह चड्ढा के नाम से हिंदी में बनाने का कोई औचित्य समझ में नहीं आया।  फिल्म क्या कहना चाहती है?

 यह बात भी सीधे-सीधे लोगों के मन में उतरी नहीं। इसमें  तो 'फॉरेस्ट गम्प' के काई सीन जैसे के तैसे उतार  दिए गए हैं।  कुछ अक़्ल का उपयोग किया जाता तो बेहतर था।
करीब 50 साल के घटनाक्रम को इस फिल्म में समेटने की कोशिश की है जिसमें आपातकाल, आपातकाल के समापन की सूचना, ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या, राजीव गांधी की हत्या, कारगिल युद्ध, दिल्ली के सिख विरोधी दंगे,बाबरी ढांचा गिराने के बाद का हाल, आडवाणी की रथ यात्रा, मुंबई के बम ब्लास्ट, अन्ना हजारे का आंदोलन आदि को शामिल कोशिश की गई। इतने घटनाक्रम के बाद फिल्म डगमगाने लगती है।  

एक पोस्टर में आमिर खान नदी के तट से गुजरते हैं जहां लिखा होता है -अबकी बार मोदी सरकार ! एक जगह स्वच्छ भारत का पोस्टर भी है।  इस फिल्म में मोदी सरकार के आने के बाद के किसी बड़े  घटनाक्रम को शामिल नहीं किया गया है।
शुरू होने के पहले लंबा चौड़ा अस्वीकरण है कि इस फिल्म का सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है केवल कुछ पुरानी क्लिपिंग का इस्तेमाल इसलिए किया गया कि फिल्म की विश्वसनीयता बरकरार रहे  और उस समय का परिदृश्य खींचा जा सके।
फिल्म का हीरो एक सिख  है। और इस फिल्म में जिस तरह से 1984 के दंगों का भी वीभत्स विवरण दिखाया गया है वह रोंगटे खड़े कर देता है।

कारगिल युद्ध को जिस तरह दिखाया गया है, वह सतही है। भारतीय सेना ने सीधे खड़े पहाड़ पर घात लगाए दुश्मन से जगह खली कराई थी, और उसके लिए बड़ा बलिदान दिया था।  

देश के हर सैनिक को पता होता है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं? युद्ध में पीठ दिखने की कोशिश करनेवालों को वही दफ़्न कर दिया जाता है, दुश्मन के घायल सैनिक को बचा ने का तो सवाल ही नहीं। \
 आमिर खान और उनकी टीम को शायद इस बात की जानकारी नहीं है कि कोरोना काल  में घरों में बंद लोगों ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बहुत-सी देसी-विदेशी फिल्में देखी हैं और दो  साल बाद उनकी फिल्मों की समझ बहुत बढ़ गई है।

अब दर्शक घटिया फिल्में सहन नहीं कर सकते।लाल सिंह चड्ढा  इंटरवल के बाद इतनी सुस्त  हो जाती है कि दर्शक ऊबने लगता है।
लाल सिंह चड्ढा बहुत कुछ समेटने के चक्कर में बिखर गई।  पकाऊ, अझेलनीय और अप्रासंगिक फिल्म।  मैंने वक़्त और पैसा बर्बाद किया, आप चाहें तो न करें।

 

 



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