प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना सबसे प्रमुख चुनावी वादा करने में पूरे ढाई साल लगे,उन्होंने कल देश को संबोधित करते हुए देश में जाली और काले नोटों के संकट से निबटने के लिए पांच सौ और एक हजार के नोटों पर रोक लगाने का एक बड़ा ऐलान कर दिया। प्रधानमंत्री जी को ये रास्ता किसी अर्थशास्त्री ने नहीं बल्कि जड़ी-बूटी बेचने वाले एक बाबा ने सुझाया है।
इस बात में कोई संदेह नहीं की देश एक लंबे अरसे से काले धन और जाली नोटों की समानांतर अर्थव्यवस्था के संकट से जूझ रहा था। पिछली सरकारों ने इस दिशा में अनेक कदम उठाये लेकिन उनके प्रभावी नतीजे नहीं निकले। देश के हर प्रधानमंत्री का प्रयास रहा कि काला धन सामने आये किन्तु कोई कामयाब नहीं हुआ,फिर चाहे वे इंदिरा गांधी हों,एचडी देवगौड़ा हों या अटल बिहारी बाजपेयी हों। कालाधन को सफेद करने की योजनाओं को कालाधन रखने वालों ने ही नाकाम कर दिया।
देश में कितना कालाधन है इसका कोई प्रामाणिक आंकड़ा किसी सरकार के पास नहीं है। सब अनुमान हैं। ये अनुमान ज्यादा भी हो सकते हैं और कम भी। लेकिन एक बात साफ़ है कि इस काले धन ने इस देश की अर्थव्यवस्था को लूला -लंगड़ा बनाया सो बनाया बल्कि देश की सियासत को भी आकंठ भ्रष्ट कर दिया। इतना भृष्ट किया कि आम आदमी सियासत में दखल देने के लायक ही नहीं रहा। यही काला धन देश और दुनिया में आतंकवाद का पोषक भी बना। इसी ने अपराध की एक नयी दुनिया गढ़ी।
प्रसन्नता का विषय है कि अब तक हर मोर्चे पर नाकाम रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की ही तरह एक “बोल्ड”और सबको चौंकाने वाला कदम उठाया है। इस कदम के परिणाम तब सामने आएंगे जब उनके हम कदम औद्योगिक घराने और सत्ता का संचालन करने वाले तमाम अदृश्य हाथ भी उनका साथ दें वो भी पूरी ईमानदारी से। देश की बहुसंख्यक ईमानदार जनता तो ऐसे हर कदम में सरकार के साथ होती ही है क्योंकि उसके पास काला धन होता ही कहाँ हैं ?
सरकार के नए कदम से आम आदमी के खाते में 15 से 15 लाख रूपये भले न आएं लेकिन सरकार का खजाना तो लबालब हो ही सकता है देश की खोखली हो चुकी अर्थ व्यवस्था मुमकिन है कि इस कदम से थोड़ी-बहुत सम्हले मेरा मानना है कि सरकार के इस कदम के दूरगामी परिणाम होना चाहिए। यदि ये सरकार भी पहले की सरकारों की तरह कालाधन और जाली मुद्रा के मामले में कामयाब न हुई तो इसकी कीमत पूरे देश को खासकर गरीब आदमी को चुकाना पड़ेगी।
हमें उम्मीद है की सरकार ने ये कठोर कदम उठाने से पहले इसके लिए तमाम जरूरी तैयारियां भी कर लीन होंगीं ताकि देश में भगदड़ की स्थित पैदा न हो इस फैसले से देश का बाजार लडख़ड़ायेगा या सम्हलेगा ये जानने के लिए हमें कम से कम पांच माह इन्तजार करना होगा। नए बजट में ही इसके परिणाम प्रकट हो पाएंगे। लेकिन इस घोषणा में पेंच ये है कि इससे दहशत छोटे और मझोले काम-धंधे करने वाले लोगों में है,बड़े कारोबारियों को इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। वे शायद परेशान भी नहीं होंगे,क्योंकि सरकार के इस दावे में कोई वजन नहीं है की ये फैसला अत्यंत गोपनीय था। इस फैसले के बारे में बड़े नोट रखने वाले पहले से वाकिफ थे।
दरअसल कालाधन विदेशों से भारत लाया जाना था,उसके लिए तो बेचारी सरकार ने कुछ नहीं किया। राम जेठमलानी और सुब्रह्मनियम स्वामी अदालत में दस्तक देते-देते थक गए हैं,बेहतर होता की सरकार बड़े नोटों का प्रचलन बंद करने के साथ ही विदेशों से काले धन को भारत लाने के लिए भी इतने ही कठोर कदम उठाती,लेकिन ये इतना आसान काम नहीं है,सरकार की कुर्सी खतरे में पद सकती है इससे।
पिछले ढाई साल और बीते दो ढाई महीने से बे-सिरपैर के मुद्दों पर जंग लड़ रहे सियासी और बुद्धिजीवियों के दल अब आने वाले कुछ दिनों तक बड़े नोटों के चलन पर लगाई गयी पाबंदी पर अपना ज्ञान बघारेंगे। हम भी उनमें से एक हैं। भक्त भी हैं और अभक्त भी।
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