अमन आकाश।
20 बरस दक्षिण अफ्रीका प्रवास के बाद जब गाँधीजी भारत लौटे तो उनके राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले ने यहां की राजनीति में सक्रिय होने से पहले उन्हें "भारत यात्रा" का सुझाव दिया.
तत्कालीन समय में आज़ादी के लिए प्रयास कर रही कांग्रेस पार्टी की पहुंच अभिजात्य वर्ग तक सिमट कर रह गयी थी.
कांग्रेस की गोष्ठियों में कोट-पैंट पहने वक्ता आते, अंग्रेज़ी में भाषण होता और सभा की समाप्ति हो जाती.
यह प्रयास भारत की आम अवाम तक पहुंचने के लिए नाकाफी था.
कम साक्षर, असाक्षर, ग्रामीण तबके के बहुतायत लोग आज़ादी के संग्राम से जुड़ नहीं पा रहे थे.
इस अवाम की नब्ज़ को समझने वाला वैद्य नहीं मिल पा रहा था.
1915 में महात्मा गांधी का भारत आगमन होता है.
गाँधीजी आंख और कान खोल, मुंह बंद रख पूरे देश की यात्रा करते हैं. कहाँ बंगाल, कहाँ बिहार, कहाँ गुजरात, कहाँ असम, गांधीजी कभी रेलयात्रा तो कहीं पदयात्रा कर विविधता से भरे इस देश को समझते हैं.
अंग्रेज़ी और गुजराती भाषा में दक्ष एक वकील अपने आंदोलन की शुरुआत बिहार की धरती से करता है, जहां की न तो संस्कृति का उसे पता है और ना ही भाषा-लिपि का.
उस आंदोलन ने चंपारण की धरती को विश्वपटल पर सबसे परिचित कराया और अंग्रेज़ी सत्ता की गहरी धंसी नींव को झकझोर कर रख दिया.
राजकोट रियासत के दीवान का पुत्र, विलायत से वकालत पढ़ा, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति पर दो दशक लड़ने वाले मोहनदास करमचंद गांधी भारत आकर महज एक लुंगी धारण कर लेता है.
विंस्टन चर्चिल उन्हें "अधनंगा फकीर" बुलाता है. पर गाँधीजी की इस वेशभूषा ने उन्हें तत्कालीन भारतीय समाज से जोड़ने का काम किया.
गांवों में बसने वाले असली भारत को उनका नेता मिल चुका था, जिसकी एक आवाज़ पर क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या पुरूष, क्या महिलाएं सब इकट्ठे सड़क पर उतर आते थे.
आज भारत में कांग्रेस की स्थिति फिर वैसी ही है. वही सूट-बूट, वही अंग्रेज़ी, वही एलीटनेस, वही टिमटिमाता बुझता चिराग.
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को उनके किसी "राजनीतिक गुरु" ने भारत जोड़ो यात्रा की सलाह दी है, वह निकल पड़े हैं.
राहुल गांधी के टीशर्ट की कीमत पर सोशल मीडिया चार-पांच दिनों तक गदर काटता रहा. अरे भई, देश के सबसे प्रतिष्ठित राजनीतिक घराने के युवराज अगर लुई वितां, गूची-अरमानी नहीं पहनेंगे तो और कौन पहनेगा!
यहां 30 हजार की नौकरी करने वाला हर चौथा शख्स आईफोन का नया मॉडल आते ही लाइन में लग जाता है.
बात ब्रांडेड या कीमती कपड़े पहनने कि नहीं है, बात यह है कि आप देश की आम जनता से कितना जुड़ पा रहे हैं.!
सत्ता पक्ष ने रेडियो से लेकर ट्विटर, ओपन जीप रैली से लेकर ऑनलाइन सम्बोधन हर उपलब्ध संचार माध्यम से लोगों तक खुद को पहुंचाया है।
ऐसे समय में अगर युवराज को भारतीय जनमानस तक पहुंचना है तो जमीनी स्तर पर काम करना होगा।
गांव-गांव, घर-घर पहुंचना होगा. मिट्टी, धूल, धूप सब फांकने होंगे।
युवराज के कम्फर्ट जोन से निकलकर दरिद्रनारायण की अवस्था को समझना होगा. काम आसान नहीं है पर इसके अलावा दूसरा विकल्प भी नहीं है.
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