मल्हार मीडिया डेस्क।
उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आने वाले हैं। उससे पहले आए एग्जिट पोल में जनता का मूड भांपने की कोशिश की गई है। दो दिन से चल रही गहमागहमी कल नतीजों के साथ ही खत्म हो जाएगी।
नतीजे न सिर्फ यह तय करेंगे कि राज्यों में किसकी सरकार बनेगी बल्कि एग्जिट पोल करने वाली टीमों और सर्वे के लिए भी लिटमस टेस्ट होगा। उन्होंने तय सिद्धांतों और प्रैक्टिस के तहत सीटों और वोट प्रतिशत का आकलन किया है।
हालांकि स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है। हमारे सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स में दो एक्सपर्ट ने चुनाव नतीजों से पहले आए एग्जिट पोल्स और मतदान प्रतिशत को लेकर अपने विचार रखे हैं।
भारत निर्वाचन आयोग के पूर्व महानिदेशक अक्षय राउत कहते हैं कि पांच राज्यों के चुनाव नतीजे तो कल आएंगे लेकिन एक रिजल्ट पहले ही आ चुका है।
2014 और 2019 लोकसभा चुनावों और हाल के दर्जनों विधानसभा चुनावों को देखते हुए कुछ लोग एग्जिट पोल देखकर आशान्वित हैं तो कुछ लोग नतीजों के इंतजार में हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी पार्टी जीते, पर पिछले एक महीने में सात चरणों में हुए चुनावों में मतदाताओं की रुचि देखकर निराशा ही हुई है।
पी जैसे राज्य में मतदान कम होना दिखाता है कि लोगों में एक भ्रम की स्थिति है। दरअसल, यह बिना ईवीएम का इस्तेमाल किए NOTA का विकल्प चुनने जैसा है।
नतीजे कल आएंगे लेकिन ये लोग पहले ही जनता के फैसले से अलग हो गए थे। यह कभी पता नहीं चल पाएगा कि जिन लोगों ने वोट ही नहीं किया वे सत्ता पक्ष के खिलाफ थे या विरोध में।
मतदाता सूची को आधार सिस्टम से लिंक करने पर बोगस और डुप्लीकेट एंट्री खत्म हो जाएगी। इससे प्रवासी पेशेवर, स्टूडेंट्स, श्रमिक और अपने राज्य से बाहर रहने वाले वोटर वहीं से अपना वोट डाल सकेंगे।
वोटर आसानी से अपना एड्रेस और नई लोकेशन का पंजीकरण करा सकेंगे। उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में इससे मतदान प्रतिशत बढ़ेगा क्योंकि यहां के काफी वोटर प्रवासी हैं।
आने वाले समय में सुदूर इलाकों में वोटिंग, एनआरआई नागरिकों के भी वोट डालने के लिए तकनीकी मदद कर सकती है।
भारत के 95.14 करोड़ वोटर में से 25 फीसदी युवा हैं और इसमें 1.37 करोड़ नए पंजीकृत वोटर हैं।
पांच राज्यों में नागरिकों का रिजल्ट तो कल आ जाएगा लेकिन यह पूरा नहीं टुकड़े में होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे होने वाले चुनावों में सभी मतदाता लोकतंत्र के उत्सव में बढ़-चढ़कर शामिल होंगे।
ये चुनाव महामारी के खौफ में कराए गए, मौसम भी कुछ इलाकों में ठीक नहीं था। ओमीक्रोन की लहर कम होते ही चुनाव प्रचार को लेकर धीरे-धीरे छूट बढ़ती गई। कम मतदान के लिए कोई एक पक्ष जिम्मेदार नहीं है।
हाल में मतदाताओं को जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रम भी होते रहे हैं। अब समय आ गया है कि ज्यादा से ज्यादा वोटरों को प्रोत्साहित करने के लिए गंभीरता से ध्यान दिया जाए।
राजनीतिक दलों के हिसाब से देखें, तो पारंपरिक पहचान से अलग हटकर अपना एजेंडा तय करना चाहिए। वार-पलटवार और लोक लुभावन वादों से आगे निकलना होगा जिससे जनता चुनाव को सीजनल शो की तरह न ले। शहरी मध्यम वर्ग की ओर से ज्यादा भागीदारी की जरूरत है।
स्कूल और कॉलेजों को वोटिंग सेंटर बनाने से आगे बढ़कर शिक्षा प्रणाली को योजनाबद्ध तरीके से चुनाव प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए। सिविल सोसाइटी को लोकतंत्र के इस उत्सव में अपनी भागीदारी को प्राथमिकता देनी होगी।
कानून में हाल में किए गए संशोधन से उम्मीद की जा रही है कि आगे मतदाताओं की भागीदारी बढ़ेगी। नागरिक अब 18 साल की योग्यता के लिए तीन तारीखों पर- 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर पर अपना पंजीकरण करा सकते हैं। पहले हर साल कट-ऑफ डेट 1 जनवरी थी।
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