मल्हार मीडिया ब्यूरो।
पूर्व राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने आज 2 अक्टूबर बुधवार को पटना के वेटनरी कॉलेज मैदान में एक बड़ी रैली में अपनी राजनीतिक पार्टी-जन सुराज को आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया.
उन्होंने नई पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पूर्व भारतीय विदेश सेवा अधिकारी मनोज भारती के नाम की घोषणा करके अपना पहला आश्चर्य प्रकट किया. बिहार के मधुबनी जिले के निवासी भारती एक आईआईटीयन होने के साथ-साथ दलित समाज से है. किशोर ने कहा, “वे (भारती) यहां इसलिए नहीं हैं क्योंकि वे दलित हैं. उन्हें इसलिए चुना गया है क्योंकि वे प्रशांत किशोर से भी बेहतर हैं और संयोग से दलित हैं.”
किशोर ने एजेंडा बताते हुए कहा कि पार्टी शराबबंदी नीति को हटाने और प्रतिबंध के कारण बिहार को होने वाले नुकसान (अनुमानित प्रति वर्ष 20,000 करोड़ रुपये) का उपयोग बेहतर शिक्षा और युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिए करने की योजना बना रही है.
उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी किसानों को मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) का लाभ देकर किसानों की मदद करेगी और महिलाओं को 4 प्रतिशत ब्याज पर स्वरोज़गार के लिए ऋण की सुविधा प्रदान करेगी. उन्होंने सभी वरिष्ठ नागरिकों को 2000 रुपये की पेंशन देने का भी वादा किया.
गांधी जयंती पर जन सुराज के लॉन्च के साथ, मुख्य सवाल यह है कि बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में प्रशांत किशोर के प्रवेश से कौन अधिक प्रभावित होगा — भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) या फिर जनता दल (यूनाइटेड) गठबंधन या राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के नेतृत्व वाला महागठबंधन. विशेषज्ञों का कहना है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ, किशोर का जन सुराज दोनों गठबंधनों की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकता है.
पटना विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर एन.के. चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, “बिहार की सामाजिक संरचना को समझना होगा और यह भी कि किस तरह जाति समूह एक या दूसरे गठबंधन से जुड़े हुए हैं. किशोर ने दो साल पहले कॉर्पोरेट मैनेजर के तौर पर अपनी पदयात्रा शुरू की थी, लेकिन फिर, उन्होंने राजनीतिक चालें चलनी शुरू कर दीं.”
उन्होंने कहा, “इस प्रक्रिया में उन्होंने महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है, जो नीतीश कुमार के लिए एक प्रमुख समर्थन आधार है, मुस्लिम — आरजेडी के लिए मुख्य मतदाता आधार और उच्च जातियां — जो फिर से भाजपा के मुख्य मतदाता आधारों में से एक हैं. उन्होंने कमज़ोर वर्गों ख़ासतौर पर दलितों को प्रभावित करने वाले मुद्दे उठाए हैं. मुझे कोई संदेह नहीं है कि वे 2025 के विधानसभा चुनावों में अपनी छाप छोड़ेंगे.”
ए.एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ के पूर्व निदेशक डी.एम. दिवाकर ने बताया कि किशोर की पार्टी “निश्चित रूप से प्रभाव डालेगी, लेकिन यह उम्मीदवार-विशिष्ट होगा”.
दिवाकर ने कहा, “अगर वे उच्च जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारते हैं, तो वे एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को नुकसान पहुंचाएंगे. अगर उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय या अन्य कमज़ोर वर्गों से है, तो इससे महागठबंधन को ज़्यादा नुकसान होगा. 2020 में प्लुरल्स पार्टी अस्तित्व में आई और सभी सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक भी उम्मीदवार अपनी ज़मानत तक नहीं बचा पाया, लेकिन प्रशांत किशोर अलग हैं. वे पिछले दो सालों से पदयात्रा कर रहे हैं और उन्होंने पार्टी का बुनियादी ढांचा वहीं से तैयार किया है. उनके पास फंड की कमी नहीं दिखती और उन्हें पता है कि चुनाव कैसे लड़ना है.”
दिवाकर के अनुसार, अगर किशोर अगले साल के चुनावों से आगे भी टिके रहते हैं, तो बिहार में उनका प्रभाव और गहरा हो सकता है. 2025 में वे बिहार की राजनीति में अपना नाम दर्ज कराएंगे.
इस बीच, बड़े राजनीतिक दल किशोर को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं. उनके लिए जन सुराज बहुत महत्वहीन है.
बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजम पटेल ने कहा, “प्लुरल्स पार्टी और आम आदमी पार्टी जैसी अन्य पार्टियां भी हैं, जिन्होंने बदलाव लाने की कोशिश की और असफल रहीं.”
बीजेपी के पूर्व विधायक संजय सिंह टाइगर ने टिप्पणी की कि बिहार में जन सुराज का असर नोटा वाले वोटों जैसा ही होगा.
आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि मुस्लिम और यादव किशोर के लिए मेरी पार्टी छोड़ेंगे. यह संभावित उम्मीदवारों के लिए एक और मंच हो सकता है जो ग्रैंड अलायंस या एनडीए से टिकट हासिल करने में विफल रहते हैं.”
जेडी(यू) के प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि 2025 की लड़ाई दो मुख्य गठबंधनों के बीच होगी. “किशोर के जन सुराज का असर मामूली होगा.”
अपनी पदयात्रा के दौरान, किशोर ने राजनीतिक पार्टी के लिए एक ठोस ढांचा बनाने, कार्यकर्ताओं की भर्ती करने और ब्लॉक स्तर तक कार्यालय स्थापित करने का काम किया.
उम्मीदवारों का चयन उनके द्वारा नहीं किया जाएगा, जबकि अन्य पार्टियों में उम्मीदवारों का चयन शीर्ष नेतृत्व द्वारा किया जाता है. इसके बजाय, कार्यकर्ता इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
इसके अलावा, राजनीतिक दलों द्वारा जारी किए जाने वाले आम चुनावी घोषणापत्र के बजाय, जन सुराज ने चुनाव से पहले बिहार की 7,000 से अधिक पंचायतों में से प्रत्येक के लिए एक विकास मानचित्र जारी करने की योजना बनाई है.
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