सागर से अनुज गौतम।
जिस एम पी के बुन्देखण्ड के लिये तारीफों के पुल बाधने के लिये विश्वविद्यालयों में सेमीनार आयोजित किये जाते है,आने वाले समय मे एक नुक्कड़ के लिये तरसेगा...।
उत्तरप्रदेश के चुनावी नतीजे कुछ भी रहे हो लेकिन यूपी में जातिगत राजनीति किस तरह से हावी है यह किसी से छुपा नहीं है बुंदेलखंड भले ही एक हो,लेकिन यह दो राज्यो में बसता है यूपी और एम पी। एक क्षेत्र का दो राज्यो में होना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन इसमें जो खास है वो यह है कि एक क्षेत्र में दो अलग—अलग हवा, वातावरण और जलवायु देखने को मिले वो हवा है जातिगत राजनीति।
ये कोई आम बात नहीं है कि यूपी में जातिगत राजनीति और एम पी में वही भोलीभाली जनता और साधारण वातावरण ,यह हमें अचंभित भी करता है और चौंकाता भी लेकिन अब यूपी की हवा एम पी के बुन्देखण्ड तक पहुच गई है और इसका व्यापक असर भी तेजी से हो रहा है।
एम पी के बुन्देखण्ड में देखा जा रहा है कि ब्राम्हण,जैन,ठाकुर,पटैल,सोनी, चढ़ार,यादव,रजक, अहिरवार वाल्मीकि आदि समाजो के बुद्धिजीवी लोगो ने अपनी अपनी समाज के लोगो को जोड़ना शुरू कर दिया है। लेकिन यह यहीं तक सीमित नही अगर ब्राम्हणों की बात करे तो अलग—अलग कैटेगिरी(सरजूपारी,कान्यकुब्ज, शांडिल्य आदि) ,ठाकुर( राजपूत,लोधी,दांगी) ,पटैल(कुर्मी,कुशवाह) आदि ऐसी समाज है जो समाज भी अब बँटने लगी है।
इन समाजों के अलग—अलग अध्यक्ष और पदाधिकारी नियुक्त हैं ऐसा ही अन्य समाजों में भी आसानी से देखा जा रहा है हालाकि वो बात अलग है कि प्रत्येक समाज के निर्धन और दो वक्त की रोटी कमाने के लिये मशरूफ लोगों ने पूरी तरह से इस हवन कुंड में अपनी आहुति नहीं दी है। लेकिन जिस तरह से जातिगत राजनीति को लेकर हवा का रुख तेजी से बदल रहा है उसे रोक पाना अब नामुमकिन है और आने वाले समय में यह बचे हुय लोग भी इसका हिस्सा बनने से नही चूकेंगे।
कह पाना मुश्किल है कि यह एमपी के बुन्देखण्ड का दुर्भाग्य होगा या सौभाग्य कि जब समाज मुठ्ठी से उंगलियों का रूप लेंगें तो कैसे एकता का परिचय देंगे। पेड़ तो होगा लेकिन साखें टूट कर गिर जायेंगी,फिर पेड़ कब तक खड़ा रहेगा? उन्हें जोड़ पाना असंभव होगा। यह हमारा दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद हमें एक होना चाहिये था लेकिन हम उन बेकार सूखे पत्तों की तरह हो जायँगे जो एकत्रित तो होंगे लेकिन फेंकने या जलने के लिये। एम पी का बुन्देखण्ड भी जल्द ही इसकी गिरफ्त में होगा ...।
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