ओम प्रकाश।
दुनिया के सभी देशों में कोई न कोई खेल जरूर होता है। गेम्स मनोरंजन का साधन होने के साथ-साथ आमदनी का भी स्रोत हैं।
कई देशों को विश्व पटल पर पहचान खेलों के जरिए मिली है।
गुजरते वक्त के साथ स्पोर्ट्स को और ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए इनमें नए नियम लागू करके कई बदलाव किए गए।
खिलाड़ी बदले, कपड़े बदले, नियम बदले, प्रारूप बदले लेकिन मैदान पर एक परंपरा जो आज तक न बदली।
क्या है परंपरा जो आज तक न बदली?
वर्षों से खेल के मैदान पर चली आ रही स्ट्रेकिंग कि परंपरा आज भी कायम है।
स्ट्रेकिंग किसी एक खेल तक सीमित नहीं है।
क्रिकेट, फुटबॉल, टेनिस और रग्बी सहित कई खेलों के दौरान मैदान पर स्ट्रेकर्स का आ जाना आम बात है।
क्या होती है स्ट्रेकिंग?
सार्वजनिक स्थान पर किसी व्यक्ति को नग्न या अर्धनग्न होकर चलने को स्ट्रेकिंग कहते हैं।
इसे अंजाम देने वाले को स्ट्रेकर कहा जाता है। स्ट्रेकर पुरुष और महिला दोनों हो सकते हैं।
आखिर क्यों करते हैं स्ट्रेकिंग?
कई स्ट्रेकर्स ने स्ट्रेकिंग करने के बाद अपने इंटरव्यू में खुलासा किया कि उनका उद्देश्य मैदान पर नग्नता और अश्लीलता फैलाना नहीं होता है।
वह सिर्फ लोगों का मनोरंजन और प्रसिद्धि पाने के लिए स्ट्रेकिंग करते हैं। कभी-कभी ये स्ट्रेकर्स मैदान पर न्यूड होकर दौड़ने की बाजी भी लगाते हैं।
एक बार एक व्यक्ति ने मैदान पर नग्न दौड़ने की शर्त सिर्फ लेग पीस (मुर्गे की टांग) पर ही लगा ली थी।
कहां शुरू हुई स्ट्रेकिंग?
5 जुलाई 1799 को शाम 7 बजे लंदन के मैसन हाउस में एक न्यूड (नग्न) व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया।
पूछताछ के दौरान उसने अधिकारियों के समक्ष इस बात को स्वीकार करते हुए कहा कि उसने कॉर्नहिल से चेप्ससाइड तक न्यूड होकर दौड़ने के लिए 10 (Guineas) गिनीज (930 पाउंड) की शर्त लगाई थी।
वहीं 1970 के दशक में स्ट्रेकिंग के चलन में आने से पहले इसका कोई खास मतलब नहीं था।
फ्लैश बैक
1025 ईसा के बाद स्ट्रेकिंग से जुड़ी एक ऐतिहासिक घटना हुई थी, जब लेडी गोदइवा अपने घोड़े पर नग्न सवार हुई थीं।
इस घटना से संबंधित जानकारी के मुताबिक, गोदाइवा के पति ने उनसे कहा कि कर (Tax) कम करने का एक मात्र तरीका है यदि वह (पत्नी) निर्वस्त्र होकर घोड़े पर बैठकर पूरे कस्बे में जाएं।
लेडी गोदाइवा ने पति की बात पर अमल किया और वह नग्न होकर घोड़े पर चढ़कर पूरे टाउन में घूम आईं। इसके बाद तुरंत टैक्स कम कर दिया गया था।
कहां हुई स्ट्रेकिंग की औपचारिक शुरुआत?
स्ट्रेकिंग की औपचारिक शुरुआत अमेरिका से हुई, साल 1804 में वाशिंगटन कॉलेज जिसे अब वाशिंगटन एंड ली यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है।
वहां के एक छात्र जॉर्ज विलियम क्रंप अपने जन्मदिन के अवसर पर लेक्सिंग्टन वर्जीनिया में नग्न होकर दौड़े थे। उन्हें न्यूड होकर चलने के कारण गिरफ्तार किया गया था।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें शेष सेमेस्टर की पढ़ाई करने पर रोक लगा दी और क्रंप को विश्वविदयालय से बर्खास्त कर दिया गया।
ये वही जॉर्ज विलियम क्रंप थे जो बाद में यूएस कांग्रेस में शामिल हुए और चिली के एंबेसडर बने।
1960 के मध्य में स्ट्रेकिंग को हवा मिली। टाइम मैग्जीन के मुताबिक 1973 में लॉस एंजलिस में नग्न होकर चलने की गतिविधियां हुईं जिसने कॉलेज के स्टूडेंट सहित दूसरे समूह के लोगों को आकर्षित किया।
1973 में मैरीलैंड विश्वविद्यालय के छात्रों ने एक ग्रुप एक्टीविटी का आयोजन किया. जिसका मकसद गलत नहीं था।
इस इवेंट में कई विश्वविद्यालयों के छात्र शामिल हुए और सबने नग्न होकर दौड़ लगाई।
इस इवेंट का लाइव प्रसारण टेलीविजन पर किया गया।
वाशिंगटन डीसी न्यूज स्टेशन के एक रिपोर्टर ने इसके लिए स्ट्रेकिंग शब्द का इस्तेमाल किया।
जब 533 नग्न छात्रों का विशाल समूह दौड़ लगाते हुए उस रिपोर्टर के पास से गुजरा तो रिपोर्टर माइक पर जोर से चिल्लाया।
वे स्ट्रेकिंग करते हुए ठीक हमारे पास से गुजर रहे हैं क्या अविश्वसनीय क्षण है? इसके बाद स्ट्रेकिंग की घटनाएं आम हो गईं।
खेल के मैदान पर स्ट्रेकिंग की कुछ खास घटनाएं
इंग्लैंड के खेल मैदान पर स्ट्रेकिंग की प्रमुख घटना हुई। ऑस्ट्रेलिया के 25 वर्षीय स्ट्रेकर माइकल ओ ब्रायन ने इस घटना को अंजाम दिया।
20 अप्रैल 1974 को इंग्लैंड और फ्रांस की टीमों के बीच दक्षिणी पश्चिमी लंदन के ट्विकेनम (Twickenham) स्टेडियम में रग्बी मैच खेला जा रहा था।
ओ ब्रायन यह सोचकर मैदान पर छलांग लगा गए कि जिस दिन मैं पैदा हुआ था उस दिन नंगा ही था।
इस दौरान उन्हें एक पुलिस कांस्टेबल ने पकड़ने की कोशिश की लेकिन उन्होंने पुलिसकर्मी से कहा कि मैंने मैदान के दूसरे छोर को छूने की शर्त लगाई है।
ओ ब्रायन ने गुजारिश करते हुए आगे कहा कि उन्हें मैदान के दूसरे छोर को छूने की अनुमति दी जाए।
मैदान पर इस घटना को देखकर आधे दर्शक खुशी से झूम उठे जबकि कुछ उन पर चिल्लाए। बाद में उसी कांस्टेबल ने न्यूड स्ट्रेकर माइकल ओ ब्रायन को दबोच लिया।
कांस्टेबल ब्रूस पैरी स्ट्रेकर ओ ब्रायन के गुप्तांग को अपने हेल्मेट से ढक कर मैदान के बाहर लाए।
पुलिसकर्मी ब्रूस पैरी ने अपने जिस हेलमेट से स्ट्रेकर माइकल ओ ब्रायन का प्राइवेट पार्ट ढका था, वह हेल्मेट आज भी ट्विकेनम स्टेडियम के संग्रहालय में रखा हुआ है।
कुछ समय बाद ओ ब्रायन ऑस्ट्रेलिया लौट आए उन्होंने मशहूर मेलबोर्न रग्बी क्लब के लिए 207 रग्बी मैच भी खेले।
स्ट्रेकर मार्क रॉबर्ट्स स्ट्रेकिंग के चैंपियन माने जाते हैं। वह खेल के मैदान के अलावा मिस वर्ल्ड जैसी प्रतियोगिता में भी स्ट्रेकिंग कर चुके हैं। स्ट्रेकिंग के लिए मशहूर मार्क रॉबर्ट्स को इंग्लैंड के किसी भी फुटबॉल मैदान पर जाने की इजाजत नहीं है।
पुरुष कर सकते हैं स्ट्रेकिंग तो महिलाएं क्यों नहीं ?
अब तक जितनी भी स्ट्रेकिंग की घटनाएं मैदान पर हो रही थीं उनमें पुरुष स्ट्रेकर्स ही थे। लेडी किंबरले वेबस्टर का मानना था कि मैदान पर जितने स्ट्रेकिंग की घटनाएं हुईं उनमें एक भी महिला शामिल नहीं थी।
उनके मुताबिक, स्ट्रेकर्स हमेशा पुरुष ही रहे हैं मैं इस परंपरा को बदलना चाहती हूं। जिसके बाद किंबरले वेबस्टर ने खेल मैदान पर स्ट्रेकिंग की। वह स्ट्रेकिंग के इतिहास में पहली महिला स्ट्रेकर बनीं।
इनका सपना रह गया अधूरा
टॉम एन्नेडेल (Tom Annandale) मैनचेस्टर की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में मैनेजर थे। वह उन दिनों अपने दोस्तों के साथ छुट्टियां बिताने स्पेन गए थे।
उन्होंने टेनिस कोर्ट पर नग्न होकर दौड़ने की योजना बनाई। वह इस बात से वाकिफ नहीं थे कि टेनिस कोर्ट के चारों तरफ कांच की दीवार होती है।
उन्होंने अपने कपड़े उतारे और टेनिस कोर्ट की तरफ दौड़ने लगे, जैसे ही वह दौड़े तो कांच की दीवार से टकराकर बुरी तरह घायल हो गए।
इस प्रकार उनकी स्ट्रेकिंग करने की हसरत पूरी न हो सकी।
इस घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, मुझे पता नहीं था कि टेनिस कोर्ट कांच की दीवार से बंद है।
मैं कांच की दीवार से टकरा गया मैंने अपना माथा फोड़ लिया, मेरे कंधों और घुटनों में असहनीय पीड़ा हो रही थी।
इससे बड़ी शर्मिंदगी मुझे कभी नहीं झेलनी पड़ी, टेनिस खिलाड़ी मुझ पर हंस रहे थे।
सभी लड़के हंस रहे थे, जबकि मैं एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर था मेरी निगरानी में मैनचेस्टर की एक साइट पर 65 लोग काम कर रहे थे।
अब काम की बात
खेल के मैदानों पर स्ट्रेकिंग करना एक चुनौतीपूर्ण काम है। सुरक्षाकर्मियों से अपने आप को बचाना पड़ता है।
उनसे बच गए तो कोई बात नहीं अगर हाथ लग गए तो जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
पूर्व में ऐसा कई बार हो चुका है जब कई स्ट्रेकर्स पर जुर्माना ठोंका गया।
फाइन लगाने की एक वजह ये भी है कि जब स्ट्रेकर्स मैदान पर प्रवेश करते हैं तो खेल बाधित होने के साथ-साथ समय भी जाया होता है।
दूसरी जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वो ये है कि इन स्ट्रेकर्स का मैदान पर स्ट्रेकिंग करना अश्लीलता को बढ़ावा देना नहीं है।
कई स्ट्रेकर्स का मानना है कि उन्होंने स्ट्रेकिंग इसलिए की जिससे मैदान पर मौजूद दर्शकों का मनोरंजन हो।
कुछ महिला/पुरुष स्ट्रेकर्स मैदान पर इसलिए दाखिल हुए कि वह अपने पसंदीदा खिलाड़ी से मिल सकें और उसे करीब से देखें।
इस सिलसिले में किसी-किसी स्ट्रेकर ने मैदान पर मौजूद खिलाड़ी का चुंबन तक ले लिया। खेल के मैदान पर वर्षों से चला आ रहा स्ट्रेकिंग का सिलसिला आज भी जारी है।
खेल मैदान पर स्ट्रेकिंग की कुछ खास घटनाओं पर एक नजर।
फुटबॉल में स्ट्रेकिंग
फुटबाल में स्ट्रेकिंग की घटना 23 मार्च 1974 को हुई जब मैनचेस्टर सिटी और अर्सेनल के बीच हाईब्ररी (Highbury) में एक लीग मैच खेला जा रहा था।
जॉन टेलर नाम का एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति मैच के दौरान मैदान पर न्यूड होकर चारों तरफ दौड़ा।
तीन सुरक्षा कर्मियों ने उसे पकड़ा और अगले ही दिन उसे उत्तरी लंदन के एक कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने जॉन टेलर पर 10 पाउंड का जुर्माना लगाया।
एक ऐसा ही वाकया फुटबॉल के मैदान पर साल 2005 में भी हुआ।
जब जर्मनी के फुटबॉल क्लब एफसी हंसा रोस्टॉक और हरथा बर्लिन के बीच खेले गए फुलबॉल मैच के दौरान स्ट्रेकिंग की घटना हुई।
जब 3 स्ट्रेकर्स मैदान पर आ धमके। फुटबॉल मैचों के दौरान ऐसी दर्जनों घटनाएं हुईं हैं।
क्रिकेट में स्ट्रेकिंग
क्रिकेट के मैदान पर स्ट्रेकिंग की खूब घटनाएं हुई हैं। मैच के दौरान मैदान पर पुरुष स्ट्रेकर का आ जाना साधारण बात है।
ऐसा नहीं है कि क्रिकेट के मैदान पर हमेशा पुरुष स्ट्रेकर ही आए, महिला स्ट्रेकर्स ने भी मौका पाकर क्रिकेट मैदान दौड़ लगाई है।
क्रिकेट मैदान पर स्ट्रेकिंग की पहली घटना न्यूजीलैंड में हुई। 22 मार्च 1974 को ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच ऑकलैंड में सीरीज का तीसरा टेस्ट मैच खेला जा रहा था।
दिन का खेल समाप्त होने में अभी आधा घंटे का समय शेष था, उस समय एक व्यक्ति ने मिड विकेट से लेकर स्क्वायर लेग तक दौड़ लगाई थी।
इसके बाद क्रिकेट में स्ट्रेकिंग की अनगिनत घटनाएं हुईं।
चाहे लॉर्डस का मैदान हो, एशेज सीरीज़ हो, चाहे स्थानीय मैच हो, लीग मैच हो, चाहे अंतर्राष्ट्रीय मैच हो चाहे विश्व कप का ही मुकाबला क्यों न हो स्ट्रेकर्स की पहुंच से अछूते नहीं रहे।
1975 में लॉर्ड्स के मैदान पर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट मैच खेल जा रहा था। तभी माइकल एंजेलो नाम के एक स्ट्रेकर्स ने बीच मैदान पर आकर स्टंप के ऊपर छलांग लगाई।
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान ग्रेग चैपल के साथ दो बार ऐसा हुआ जब वह मैदान पर बल्लेबाजी कर रहे थे तभी स्ट्रेकर्स आ गए।
पहली घटना 1977 में न्यूजीलैंड के ऑकलैंड में और दूसरी 1979 में मेलबोर्न में जब वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे मैच खेला जा रहा था।
बता दें ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ग्रेग चैपल ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की थी कि मैदान पर आने वाले हर स्ट्रेकर से वह सख्ती से निपटेंगे।
पहले वाली घटना में ग्रेग चैपल ने स्ट्रेकर को दौड़ाकर पकड़ा फिर उसके हिप्स पर बैट मारा। वहीं दूसरी वाली घटना में ग्रेग चैपल को अपने बैट से स्ट्रेकर के प्राइवेट पार्ट को ढकना पड़ा था।
बाद में इस स्ट्रेकर्स की पहचान लियोनॉर्ड ब्रूस मैकाले के रूप में हुई। न्यूजीलैंड के एक कोर्ट ने मैकाले पर वहां के 25 डॉलर का जुर्माना लगाया था।
1996 में लॉर्ड्स के मैदान पर इंग्लैंड और पाकिस्तान के बीच खेले जा रहे पहले टेस्ट मैच के दौरान स्ट्रेकिंग की घटना हुई। मैदान पर स्ट्रेकिंग को अंजाम देने वाली स्ट्रेकर महिला थी। इससे पहले महिला को सुरक्षाकर्मियों द्वारा पकड़ा जाता उसने पूरे मैदान का चक्कर लगा दिया।
क्रिकेट के मैदान पर किसी महिला द्वारा की गई स्ट्रेकिंग की यह पहली घटना थी।
साल 2005 में पाकिस्तान की टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई, सिडनी में टेस्ट मैच खेल जा रहा था मैच के तीसरे दिन कप्तान रिकी पोंटिंग बैटिंग कर रहे थे।
उसी समय एक पुरुष स्ट्रेकर पिच पर आकर कलाबाजी करने लगा।
बेचारे पोंटिंग शर्मिंदा होकर ये सब देखते रहे जब तक उस स्ट्रेकर को वहां से हटा नहीं दिया गया।
2005 में एशेज के दौरान लंदन के ओवल मैदान पर एक महिला ने स्ट्रेकिंग की।
वहीं 2009 में न्यूज़ीलैंड बनाम पाकिस्तान वेलिंग्टन टेस्ट के दौरान एक महिला स्ट्रेकर बल्लेबाजी कर रहे रॉस टेलर के पास पिच पर आ गई।
क्या भारत के किसी मैच में हुई स्ट्रेकिंग?
जी हां। 2008 में सीबी सीरीज के दौरान भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच ब्रिस्बेन में वनडे मैच खेला जा रहा था।
ऑस्ट्रेलियाई टीम के बल्लेबाज एंड्रयू साइमंड्स बैटिंग कर रहे थे, तभी एक स्ट्रेकर उनकी तरफ दौड़ा।
साइमंड्स का करते समय दोनों में टकरा गए लेकिन इस घटना में किसी को चोट नहीं आई, वहीं मैदान पर भारतीय खिलाड़ियों ने जोर से ठहाके लगाए।
2017 में ऑस्ट्रेलिया में बिग बैश लीग के दौरान भी स्ट्रेकिंग की घटना हुई थी।
जब दो पुरुष स्ट्रेकर्स मैदान पर विपरीत दिशाओं में दौड़ रहे थे।
सुरक्षा बलों को इन पर काबू पाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी।
क्या कभी क्रिकेट विश्व कप मैच में हुई है स्ट्रेकिंग?
हां, हां क्यों नहीं, साल 2015 में क्रिकेट विश्व कप के दौरान इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच क्राइस्टचर्च में एक मैच खेला जा रहा था।
स्कॉटलैंड का विकेट गिरा और इंग्लैंड के खिलाड़ी विकेट आउट करने का जश्न मना रहे थे।
तभी एक अधेड़ उम्र के स्ट्रेकर ने मैदान पर एंट्री की। वहां पर तैनात सुरक्षाकर्मी इससे पहले उसे गिरफ्तार करते उसने मैदान का चक्कर लगा लिया।
क्राइस्टचर्च का मैदान स्ट्रेकर्स के लिए मुफीद रहा है, यहां पर इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं।
बता दें क्रिकेट के मैदान इस तरह तमाम घटनाएं हुईं सबके बारे में जानकारी दे पाना संभव नहीं। आप बात करते है टेनिस की।
टेनिस में स्ट्रेकिंग
विम्बलडन 1996
वर्ष 1996 में टेनिस का सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट विम्बलंडन का फाइनल मालिवाय वाशिंगटन और रिचर्ड क्राजिक (MaliVai Washington and Richard Krajick) के बीच होने जा रहा था।
टॉस होने से पहले एक महिला ने स्ट्रेकिंग की, इस महिला स्ट्रेकर का नाम मिलेस्सा जॉनसन था।
23 वर्षीय ये छात्रा विम्बलंडन में स्ट्रेकिंग करने वाली पहली महिला थी।
विम्बलंडन 2000
स्ट्रेकिंग में माहिर मार्क रॉबर्ट्स ने विम्बलंडन में उस समय स्ट्रेकिंग की जब अन्ना कौर्निकोवा डबल्स मुकाबला खेल रही थीं।
यह पहला मौका था जब मार्क रॉबर्ट्स ने किसी ग्रैंड स्लैम में पहली बार स्ट्रेकिंग की। मार्क रॉबर्ट्स के बारे में आप ऊपर पढ़ चुके हैं।
जिन्हें इंग्लैंड के प्रत्येक फुटबॉल मैदान पर जाने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
विम्बलंडन 2002
वर्ष 2002 में विम्बलंडन का फाइनल लेटिन हेविट और डेविड नलबंडियन के बीच खेला जा रहा था।
मार्क रॉबर्ट्स फाइनल में स्ट्रेकिंग करने में कामयाब हुए। रॉबर्ट्स के मुताबिक इस बार सबसे लंबी स्ट्रेकिंग की।
उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में खुलासा किया कि वह लोगों का मनोरंजन करने के लिए स्ट्रेकिंग करते हैं।
फ्रेंच ओपन 2003
अगले ही साल 2003 में फ्रेंच ओपन फाइनल जुआन कार्लोस फेरेरो और मार्टिन वर्केक के बीच खेला जा रहा था।
उसी दौरान स्ट्रेकिंग करने में धाकड़ स्ट्रेकर मार्क रॉबर्ट्स टेनिस कोर्ट में कूद पड़े। मार्क रॉबर्ट्स विश्व के एक ऐसे स्ट्रेकर हैं जो सभी बड़े खेलों में स्ट्रेकिंग कर चुके हैं।
विम्बलंडन 2006
साल 2006 में विम्बलंडन के क्वार्टर फाइनल मुकाबले में एक पुरुष स्ट्रेकर ने बाधा पहुंचाई। ये मैच एलिना दिमितेवा और मारिया शारापोवा के बीच खेला जा रहा था।
इस स्ट्रेकर की पहचान डच रेडियो डीजे सैनडर लाटिंगा के रूप में हुई।
कुछ महिला स्ट्रेकर्स के नाम
इरिका रोव, शैला निकोलस, मैलिस्सा जॉनसन, ट्रैसी सर्जेंट, जैकी सामंड, मिशैल कैसिडी, सुजान पेग, मिशैल न्यूटन, नॉमी मैक्डोनाल्ड और लिंसे डान मैकेंजी इन सभी का नाम प्रमुख महिला स्ट्रेकर्स में शुमार किया जाता है।
इन खेलों के अलावा भी कई दूसरे खेल में भी स्ट्रेकिंग होती रही है सभी खेलों में स्ट्रेकिंग की घटनाओं का विवरण देना पाना संभव नहीं है।
यहां पर स्ट्रेकिंग की कुछ प्रमुख घटनाओं के बारे में बताया गया है। हालांकि ऐसी भी कई घटनाएं हैं जब कुछ स्ट्रेकर्स ने खिलाड़ियों पर अटैक कर दिया। रोजर फेडरर पर स्ट्रेकर द्वारा किया गया हमला सबको स्मरण होगा।
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