ओम प्रकाश।
देश में रेडियो कॉमेंट्री का भविष्य उज्जवल नहीं है। करीब चार साल से ऑल इंडिया रेडियो के लिए कॉमेन्टेटर्स की स्क्रीनिंग नहीं हुई है।
2020 में एआईआर के लिए कॉमेन्टेटर्स की स्क्रीनिंग होनी थी लेकिन कोविड-19 आड़े आ गया। अब कोरोना जा चुका है और स्क्रीनिंग का इंतजार है।
इतना तय है कि एआईआर के लिए कॉमेन्टेटर्स की स्क्रीनिंग होगी लेकिन स्पष्ट नहीं है कब होगी?
मेरे कई जानने वाले लोग कॉमेन्टेटर बनने की हसरत लेकर कुछ वर्षों से लोकल रेडियो स्टेशन के चक्कर लगा रहे हैं।
ये लोग अपनी रिकॉर्डिंग की सीडी भी स्थानीय रेडियो स्टेशन पर जमा कर चुके हैं, लेकिन वहां के अधिकारियों से अब तक निराशा हाथ लगी है।
पिछले कुछ वर्षों से ऑल रेडिया-रेडियो से प्रसारित होने वाली क्रिकेट कॉमेंट्री की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है।
अब एआईआर से प्रसारित होने वाली हिंदी क्रिकेट कॉमेंट्री में पहली जैसी बात नहीं रही। इसकी वजह समय-समय पर एआईआर के नेशनल/इंटरनेशनल पैनल में शामिल कॉमेन्टेटर्स की सूची को रिफ्रेश नहीं किया गया है।
वैसे एआईआर के नेशनल/इंटरनेशनल पैनल में दर्जन भर से ज्यादा कॉमेन्टेटर्स शामिल हैं लेकिन इनमें से गिने-चुने कॉमेन्टेटर्स की कॉमेंट्री श्रोता पसंद करते हैं।
बीते कुछ सालों से देखने में आया है कि एआईआर के सीनियर हिंदी कॉमेन्टेटर्स को दरकिनार कर दिया गया।
अब इन कॉमेन्टेटर्स को उतने मौके नहीं दिए जाते हैं, इसके अलावा एकाध कॉमेन्टेटर ऐसे भी हैं जो पूर्व में देश-विदेश से एआईआर के लिए क्रिकेट कॉमेंट्री कर चुके हैं लेकिन उन्हें कई साल तक मौका नहीं दिया गया।
इस दौरान जिन कॉमेन्टेटर्स को अवसर मिला उन्होंने रेडियो कॉमेंट्री के लिए कब्र खोदने का काम किया।
मैं इस पक्ष में नहीं हूं कि सभी मैचों के लिए सीनियर कॉमेन्टेटर्स को ही कॉमेंट्री के लिए आमंत्रित किया जाए।
मैं इस पक्ष में भी नहीं हूं कि ऑल इंडिया रेडियो के विभिन्न स्थानीय केंद्रों पर काम करने वाले लोगों को ही कॉमेंट्री के लिए तवज्जो दी जाए।
सभी उद्घोषक या एनाउंसर कॉमेन्टेटर नहीं हो सकते, किसी प्रोग्राम की उद्घोषणा करना और कॉमेंट्री करना इन दोनों विधाओं में जमीं-आसमान का फर्क है, इस कला में विरले ही पारंगत होते हैं।
रेडियो कॉमेन्टेटर की तीन कैटेगरी लोकल, जोनल और नेशनल/इंटरनेशनल होती हैं।
नेशनल पैनल में शामिल कॉमेन्टेटर ही ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मैचों की कॉमेंट्री करते हैं।
बदले हुए नियमों के मुताबिक कभी-कभार जोनल पैनल में शामिल कॉमेन्टेटर को अंतरराष्ट्रीय मैचों में कॉमेंट्री करने का अवसर दे दिया जाता है।
जिन कॉमेन्टेटर्स ने नियमानुसार सीढियां चढ़ते हुए नेशनल पैनल तक का सफर तय किया है उनकी क्रिकेट कॉमेंट्री में आज भी दम है।
ऐसे कॉमेन्टेटर जब माइक्रोफोन के सामने आते हैं तो समां बांध देते हैं।
लेकिन पिछले कई वर्षों से नेशनल पैनल में शामिल ऐसे कई कॉमेन्टेटर की कॉमेंट्री सुनकर लगता है कि उन्हें जोनल लेवल तो छोड़िए लोकल स्तर पर भी कॉमेंट्री करने का अनुभव नहीं है।
ऐसे कॉमेन्टेटर रेडियो कॉमेंट्री की हत्या कर रहे हैं।
परिवर्तन ही जीवन का नियम है, बदलाव नहीं होगा तो चीजें जस की तस बनी रहेंगी. इसलिए समय रहते बदलाव जरूरी है।
ऑस्ट्रेलिया के मशहूर कॉमेन्टेटर जिम मैक्सवेल जब कोई बात कहते हैं तो उसे तवज्जो दी जाती है।
वह कई दशकों से ऑस्ट्रेलिया में रेडियो के लिए कॉमेंट्री कर रहे हैं, कुछ साल पहले ऑस्ट्रेलिया में चैनल 9 से क्रिकेट प्रसारण अधिकार छीन लिए गए थे।
मैक्सवेल ने प्रसारण अधिकार छीनने की एक वजह चैनल की कॉमेंट्री मानी थी, उनका कहना था कि चैनल 9 ने कई वर्षों से अपनी कॉमेंट्री टीम को रिफ्रेश नहीं किया।
वहां पुराने कॉमेन्टेटर्स को सुनकर लोग पक गए थे।
प्रसार भारती के सम्मानित अधिकारियों से मेरा निवेदन है कि जब कभी एआईआर के लिए कॉमेन्टेटर्स की स्क्रीनिंग हो तो उसमें पारदर्शिता को तरजीह दी जाए।
मौजूदा समय में नेशनल पैनल में शामिल कॉमेन्टेटर्स की जांच की जाए कि उन्हें लोकल और जोनल स्तर पर कॉमेंट्री करने का अनुभव है या नहीं।
अगर उन्होंने इन दोनों लेवल पर कॉमेंट्री की है तो कितने मैचों में कहीं ऐसा तो नहीं कि उनसे ज्यादा लोकल और जोनल स्तर पर कॉमेंट्री करने वाला अनुभवी व्यक्ति नेशनल पैनल में आने की बाट जोह रहा है।
ऐसे कॉमेन्टेटर्स को नेशनल पैनल से बाहर किया जाए, इसके अलावा जिनके पास लोकल और जोनल लेवल पर क्रिकेट कॉमेंट्री करने का काफी अनुभव है, जिस कॉमेन्टेटर ने जोनल पैनल में रहते हुए मौका दिए जाने पर अंतरराष्ट्रीय मैच की कॉमेंट्री में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है ऐसे व्यक्ति को नेशनल पैनल में स्थाई जगह दी जाए।
प्रसार भारती के अधिकारियों से मेरा एक और अनुरोध है, जब कभी भविष्य में नए कॉमेन्टेटर्स की भर्ती या स्क्रीनिंग की जाए तो राष्ट्रीय स्तर पर जोर-शोर से आवेदन मांगे जाएं।
इससे उन युवाओं को मौका मिलेगा जो कॉमेन्टेटर बनने की तमन्ना रखते हैं, जिनमें असीम संभावनाएं भी हैं।
इसके अलावा आकाशवाणी के स्थानीय केंद्र के कर्मचारी भी ईमानदारी दिखाएं।
संबंधित केंद्र पर जब कोई युवा कॉमेन्टेटर अपनी सीडी दे तो उस सीडी को दिल्ली तक पहुंचाने में मदद करें, उन्हें बरगलाएं नहीं।
हां यह सच है कि पहले प्रसारण अधिकारों का झंझट नहीं था।
रणजी ट्रॉफी, देवधर ट्रॉफी सहित ईरानी ट्रॉफी के मैचों की कॉमेंट्री आकाशवाणी से प्रसारित की जाती थी। अब प्रसारण अधिकार आड़े आ जाते हैं।
जब कोई कॉमेन्टेटर उपरोक्त क्रिकेट की तीनों प्रतियोगिताओं में कॉमेंट्री करते हुए नेशनल पैनल तक पहुंचता तब उसे अच्छा खासा अनुभव हो जाता था। वह इंटरनेशनल मैचों में भी जोरदार कॉमेंट्री करता।
लेकिन प्रसारण अधिकारों के आड़े आने से लोकल स्तर के मैचो की कॉमेंट्री का प्रसारण आकाशवाणी से नहीं किया जाता है।
यही वजह है अब पहले जैसे काबिल कॉमेन्टेटर नहीं आ रहे हैं।
मेरा मानना है जब एआईआर के कॉमेंट्री पैनल में नए और अनुभवी कॉमेन्टेटर होंगे तो सुनने में और आनंद आएगा।
नए कॉमेन्टेटर्स को अपने वरिष्ठ जनों से सीखने का मौका मिलेगा, इससे रेडियो कॉमेंट्री अधिक समृद्ध होगी।
मौजूदा समय में अगर देखा जाए तो रेडियो कॉमेंट्री कब्र में पैर लटकाए बैठी है।
ऐसे में दोएम दर्जे के कॉमेन्टेटर उसकी अर्थी निकालने पर तुले हैं। उम्मीद है कि प्रसार भारती के अधिकारी इस विषय पर गहनता से विचार करेंगे।
लेखक क्रिकेट के अच्छे जानकार हैं।
स्थिति यह है कि खुद का मोबाईल नंबर कांटेक्ट अस की जगह होम कैटेगरी के ऊपर ही ओनर लिखकर डाला हुआ है मतलब सामान्य नियम भी नहीं जानते
उनको लग रहा था मैं अपने डेवलपर से कुछ मदद करवा दूंगी मैंने पहले ही बोल दिया कि सरकार को वो लिखकर क्यों देगा?
लेखक क्रिकेट मामलों के जानकार हैं।
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