ममता यादव।
भाजपा नेता की महिला पत्रकारों पर टिप्पणी के बाद वरिष्ठ पत्रकार Ajay Bokil ने बेहद ही तथ्यात्मक और बेहतरीन आलेख सुबह सवेरे में लिखा है। यूं जो भाजपा नेता ने कहा महिला पत्रकारों के बारे में कई पुरूष पत्रकार भी ऐसी टिप्पणियां करने में असहज महसूस नहीं करते।
उन्हें ये चिंता ज्यादा सताती है कि कौन सी महिला पत्रकार किसके ज्यादा करीब है। उससे किसके दोस्ताना संबंध हैं। चरित्र के पैमाने भी तय किये जाते हैं बकायदा गालियों के साथ।
तुम कितना टाईट जींस पहनती हो? मोटी हो गई हो! अरे कल वो उसके साथ घूम रही थी। ये तब होता है जब फील्ड में कोई महिला पत्रकार सहज भाव से किसी पुरूष पत्रकार के साथ काम करने निकली हो। ये बातें मुझ तक आती भी हैं।
तब मेरा सवाल होता है कि मैं अकेली भी घूमती हूं सर तब आप नोटिस नहीं करते। ये किसी भी महिला पत्रकार के संदर्भ में हो सकता है। करीब एक साल पहले किसी ने मुझसे एक वरिष्ठ पत्रकार का नाम लेते हुये कहा था कि उन्होंने कहा कि उससे ज्यादा बात मत करना वरना चिपक जायेगी।
जब इसको लेकर मैंने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर ये पूछा कि आप लोग होते कौन हैं महिलाओं को चरित्र प्रमाण पत्र देने वाले तो जिन्होंने यह बात मुझे बताई उनकी आपत्ति थी कि मुझे नहीं लिखना चाहिए था इससे मेरी इमेज खराब बन रही है।
कमाल है न सज्जनों! आप कुछ भी कहते रहें तो आप लोगों की इमेज सता सावित्रा वाली ही रहेगी और हम सवाल पूछें तो हमारी इमेज की चिंता आपको होती है। हम जींस कैसे पहनें इसकी फिक्र आपको क्यों होती है?
कई बार उपर से लेकर नीचे तक घूरने वाली नजरें हमेशा के लिये दिल में गढ़ जाती हैं। आदरणीय अजय बोकिल के आलेख ने आज फिर हिम्मत दी और उकसाया कि फिर लिखूं।
राहत इस बात की है कि अब महिला पत्रकारों की अस्मिता पर उंगली उठना मुद्दा बन रही है अखबारों में वेबसाईटों में। इस पोस्ट पर महिला पत्रकारों की पूरी तवज्जो चाहूंगी।
एक सवाल मेरा हमेशा से रहा है और रहेगा 10 महिलाओं के साथ सोकर आप पाक पवित्र रहते हैं तो एक महिला वेश्या रंडी क्यों हो जाती है? जबकि आपके पास न कोई पुख्ता प्रमाण होता है न सबूत? बस सुनी सुनाई बातों के आधार पर?
अरे वो वहां तक कैसे पहुंची सबको पता है। इतनी जानकारी इकट्ठा करने, फिर उसे याद करने, फिर सहेजकर रखने और फिर उसे फैलाने का वक्त आपके पास आता कहां से है?
नेता तो नेता हैं पत्रकार भी अपने गिरेबान में झांकें।
मैं इस बात को स्वीकार करती हूं कि बिना शर्त मुझे सम्मान मिला है, मिलता है पुरूषों की बनाई हुई दुनियां में मेरे काम के कारण। मेरे काम को मैं जज नहीं कर रही पर मुझे जो प्रतिक्रियायें मिलती हैं। क्योंकि मुझे कोई गलतहमी नहीं है अपने काम को लेकर। मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है और मैं परफेक्ट हूं ये वाक्य मेरी डिक्शनरी में नहीं है।
मुझे कुछ चीजें खटकती हैं, चुभती हैं, लिखती रहती हूं। सलाहें भी मिलती हैं मत लिखा करो। पर क्या करें सर खुद के जिंदा होने का सबूत देना भी जरूरी है।
और आखिर में
मेरा विरोध करना आसान है, विरोधी बनना संभव नहीं
मैं जब-जब बिखरी हूं,दुगुनी रफ्तार से निखरी हूं।
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