वर्षा मिर्जा।
वाकई हैरानी और दुःख है सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के बयान पर कि फिलहाल वे भारतीय सेना में महिलाओं को लड़ाई में आगे रखने के स्थिति में नहीं है।
वे कहते हैं महिलाएं कहेंगी वे हमें देख रहें हैं और फिर हमें उनके लिए आवरण का इंतज़ाम करना पड़ेगा।
माफी चाहेंगे जनरल लेकिन आप उन झाँकने वालों का इंतज़ाम कीजिये, महिलाओं के एतराज़ का नहीं।
हो सकता है कुछ व्यावहारिक परेशानियों हो लड़ाई में लेकिन आप वे शख़्स नहीं होने चाहिए जो ये सब बातें बताएं,आपको यह बताना चाहिए की महिलाएं कैसे इन चुनौतियों से मुकाबला करें।
आपको नए और साहसी तरीकों पर बात करनी चाहिए। आप कैसे पुराने और बने -बनाए ढर्रों पर चलने की बात कर सकते हैं। कौन साठ साल पहले यह यकीन कर सकता था कि बॉक्सर मैरी कोम ना केवल मर्दों की दुनिया में प्रचलित खेल को अपनाएंगी बल्कि वर्ल्ड चैंपियन भी होंगी।
तीन बच्चों की माँ ने साबित किया है कि वह परिवार और प्रोफेशन दोनों मोर्चे बखूबी संभाल सकती हैं। बछिन्द्री पाल का एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचना भी वैसा ही साहस है। कल्पना चावला का अंतरिक्ष में रहना भी उन लोगों को मुँह तोड़ जवाब है जो स्त्री को केवल बंधी-बंधाई भूमिका में देखना चाहते हैं।
स्त्री हर खांचे को तोड़ रही है और यह भी सही है की पहली बार उन्हें मौका संजीदा और उन पर यकीन करने वाले ओहदेदार पुरुषों ने ही दिया होगा। जनरल आपसे भी यही उम्मीद थी कि आप नए प्रतिमान गढ़ेंगे। आपके नेतृत्व में स्त्री भारतीय सेना के फलक पर नई इबारत लिखेगी। लेकिन अफ़सोस।
यूं तो वह 1857 से आज तक अपनी वीरता और साहस के परचम लहरा रही हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर हमारे बणा जीतेन्द्र सिंह जी शेखावत की बिटिया मेजर स्वाति शेखावत "खाचरियावास" तक। मेजर स्वाति इस समय माइनस 25 डिग्री की सबसे ठंडी व बर्फीली सीमा पर देश की रक्षा में तैनात है। जनरल आप कैसे ऐसा कह सकते हैं ??
IPS: ips meeran chadha borwankar ने भी एक ज़रूरी खत जनरल के नाम लिखा है dont let her down,, general
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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