ममता यादव।
विषय सीधा मगर अपने आप में बहुत टेढ़ा-सा है मगर वेब पत्रकारिता में सक्रिय होने के कारण कुछ संस्थानों ने लगातार इस पर खबर करने के लिए संपर्क किया। तो एक नई दिशा मिली। आज महिला दिवस के बहाने ही सही वेब पत्रकारिता में सक्रिय महिला पत्रकारों पर यह जानकारी मल्हार मीडिया में एक बार फिर से साझा करने का मौका आया। बहुत सारे नाम स्थायी हैं। कुछ नए भी जुड़े हैं। चूंकि वेब पत्रकारिता को प्रिंट की तरह सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता इसलिए प्रयास रहता है कि कम से कम हिंदी राज्यों की तो महिला पत्रकारों को संयोजित कर एक साथ लाया जाए।
आप इसे अतिशंयोक्ति मान सकते हैं मगर कोई चार साल पहले भी इस तरह की खबर करने का जिम्मा मुझे मिला था तब भी यही अनुभव रहा था जो अब है, खासकर मध्यप्रदेश में।
जब अपने संपर्क के लोगों से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा “मल्हार मीडिया” एक नाम फिलहाल सामने नजर आता है। यह मेरे लिए गर्व की बात थी कि पत्रकारिता के 14 साल (उस समय) अब मेरी पत्रकारिता 20 साल की होने को है और पिछले 6 साल में “मल्हार मीडिया” का नाम लोगों के जेहन में है और बतौर सक्रिय महिला पत्रकार ममता यादव का।
इस स्थिति ने मुझे चौंकाया भी और पत्रकार होने के साथ साथ एक महिला होने के नाते दुखी भी किया। बिना महिलाओं के डिजीटल मीडिया या वेब पत्रकारिता की कल्पना असंभव है। इसके पीछे एक कारण मुझे यह भी समझ आया कि महिलाएँ खुद के बारे में दिलचस्पी कम ही रखती हैं। करीब 10 महिलाओं से लंबे समय तक निरंतर संपर्क के बाद इन चंद महिलांओं ने अपना ब्यौरा भेजा।
पत्रकारिता में बड़ी संख्या में महिलाओं की उपस्थिति होने के बावजूद लिंग आधारित भेदभाव आज भी देखने को मिलता है।
स्मृति जोशी।
सबसे पहले हमने देश के पहले समाचार पत्र की वेबसाईट वेबदुनिया की तरफ देखा। जिसमें सन् 2009 से फीचर संपादक के पद पर कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार स्मृति जोशी मिलीं। 12 वर्षों से वेब दुनिया में कार्यरत स्मृति वेब की दुनिया को पत्रकारिता की एकदम अनूठी और चुनौतीपूर्ण दुनिया मानती हैं। वे कहती हैं कि नाम आप चाहे कुछ कह लीजिए लेकिन यह दुनिया एक साथ हर तरह के मीडिया का सुख समेटे है। वे कहती हैं यह दुनिया रचनात्मक सोच माँगती है, गहरी दिलचस्पी चाहती है और सबसे महत्वपूर्ण भावनाओं के सुंदर संयोजन के साथ विचारों की प्रखरता चाहती है। अभिव्यक्ति और निरंतर सृजन के इस संसार में यानी वेब दुनिया में 8 वर्ष बिताने वाली स्मृति कहती हैं कि देश-विदेश के कई घटनाक्रमों को जानने और उन पर अपनी बात कहने की स्वतंत्रता मिली है। वेबदुनिया में फीचर का दायित्व वहन करते हुए मैंने जाना कि यह हर उस व्यक्ति के लिए अवसरों का कैनवास है जो पूर्णतः धीर गंभीर रहकर कुछ कर गुजरने के सपने देखता है।
स्मृति के अनुसार, यहाँ पुरुष और महिलाओं जैसा कोई भेद ना मैंने देखा है, ना ही सोच के स्तर पर काम के दौरान इस तरह की कोई बात दिमाग में रहती है। यह सच है कि हर कोई यहाँ काम नहीं कर सकता। यहाँ उसी का गुजारा संभव है जो आराम तलब जिंदगी से दूर, निरंतर खबरों के प्रवाह या आवेग को झेलने की क्षमता रखता है। उसके साथ खेलने की दक्षता रखता है। जिसकी रुचि इस बात में अधिक हो कि नया क्या करें? अपना श्रेष्ठतम कैसे दें? स्मृति का मानना है कि मेहनती लड़कियों के लिए यह क्षेत्र स्वर्णिम संभावनाओं से भरा है।
रानी शर्मा।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से रानी शर्मा “खरी न्यूज” की संस्थापक संपादक हैं। 20 वर्ष पत्रकारिता के क्षेत्र में गुजार चुकीं रानी शर्मा ने 1995 से “देशबंधु” से पत्रकारिता की शुरुआत की। नवदुनिया, दैनिक भास्कर, पत्रिका जैसे बड़े संमाचार पत्रों में काम करने के बाद इन्होंने 2011 में वेब पत्रकारिता की राह चुनी और खरी न्यूज समाचार वेबसाइट की शुरुआत की। पिछले दस सालों से खरी न्यूज एक्सक्लूसिव खबरों के लिए जानी जाने वाली वेबसाइट है। भोपाल की पत्रकारिता में रानी शर्मा और उनकी समाचार वेबसाइट का नाम प्रतिष्ठित बन चुका है।
संयुकता बनर्जी
भोपाल में ही “दैनिक भास्कर” के डिजिटल भास्कर में वीडियो टीम में बतौर प्रोड्यूसर काम कर रही हैं संयुक्ता बनर्जी। संयुक्ता पिछले लंबे समय डिजिटल भास्कर में अपनी जिम्मेदारियों को निभा रही हैं। पत्रकारिता में एक दशक से ज्यादा का समय गुजार चुकीं संयुक्ता ने ईटीवी मध्यप्रदेश, प्रसार भारती, मुंबई की एक फैशन पत्रिका और बंसल न्यूज भोपाल में काम किया है।
मानसी समाधिया
दैनिक भास्कर के ही डिजीटल सेक्शन में मल्टीमीडिया प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं, मानसी समाधिया। मानसी ने पत्रकारिता और मास कम्यूनिकेशन में स्नातक किया, फिर 2 साल नौकरी की और 2019 में देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थान आईआईएमसी से हिंदी जर्नलिज्म में पीजी डिप्लोमा हासिल की।
माय एफ एम, न्यूज 18 जैसे संस्थानों के साथ इंटर्नशिप की। पहली नौकरी सहारा समय मध्यप्रदेश—छत्तीसगढ़ के साथ मिली। दिल्ली में आउटपुट डेस्क पर रही 8 महीने बाद सहारा के भोपाल ब्यूरो में बतौर रिपोर्टर ट्रांस्फर कर दिया गया। फिर रीजनल चैनल न्यूज वर्ल्ड और डीएनएन न्यूज के साथ काम किया। आईआईएम सी से डिग्री कर वापस आने के बाद कोविड लॉकडाउन के समय अपने यूट्यूब चैनल लाउडस्पीकर की शुरुआत की। फिर स्वदेश न्यूज में बतौर एंकर/ रिपोर्टर काम किया। पॉलिटिकल बीट देखी। अगस्त 2020 में दैनिक भास्कर बतौर मल्टीमीडिया प्रोड्यूसर ज्वाइन किया।
मानसी का कहना है कि डिजिटल में काम करना टीवी के न्यूजरूम से अलग है। टीवी अमूमन घर में एक होता है,पर फोन सबके पास अपना अपना होता है। इस लिहाज से डिजिटल काफी व्यकितग मीडियम है। इसके अलावा डिजिटल की वर्किंग आपको मल्टीटास्किंग सिखाती है। टीवी में एंकर, स्क्रिप्ट राइटर, प्रोड्यूसर, एडिटर सब अलग अलग होते हैं, डिजिटल में भी ये सब पोस्ट होती तो हैं पर लगभग हर कोई मल्टीटास्किंग करना जानता है। इस लिहाज से डिजिटल आपको एक बेहतर फ्यूचर के लिए तैयार भी करता है।
रूपाली बर्वे
पिछले 17 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूपाली बर्वे सहायक संपादक के रुप में मराठी वेबदुनिया पोर्टल व वेबदुनिया चैनल के लिए काम करती हैं। रूपाली ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रिपोर्टिंग व प्रोडक्शन के काम भ संभाले। रूपाली विगत 15 वर्षों से वेबदुनिया से जुड़कर डिजिटल माध्यम से हिंदी व मराठी भाषा के लिए बराबर सक्रिय बनी हुई हैं। करीब एक साल कई दूरसंचार कंपनियों के लिए भाषांतर का काम किया। इस बीच अनेक ऑन एयर कार्यक्रम के लिए लेखन, संपादन, संचालन, निर्देशन व अभिनय का अनुभव. लाइव कवरेज और व्यक्ति विशेष साक्षात्कार भी किए।
वेबदुनिया में रूपाली की जिम्मदारी ब्रेकिंग न्यूज, लेटेस्ट न्यूज, चुनाव परिणाम, बजट व अन्य फीचर कार्यक्रमों के लिए लाइव एंकरिंग करना है।
रूपाली आगे कहती हैं कि साइंस- मैथ्स ग्रेजुएट होकर मीडिया की ओर रुख करना बताता है कि ये आपकी चाहत आपको अपनी ओर खींचती है, दर्शाता है। ग्रेजुएट होने के बाद मास्टर डिग्री लेना तो तय था ही पर इस बार विषय बिल्कुल ही अलग ही चुना क्योंकि वो मुझे आकर्षित कर रहा था। माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर करने के बाद राह पकड़ी एक लोकल चैनल ओटीजी ग्रुप की। यहां काम करना बेहतरीन अनुभव रहा। बहुत ही कम समय में रिपोर्टिंग, प्रोडक्शन, एंकरिंग, लाइव प्रोग्राम और फील्ड में काम करने का अनुभव जुड़ता गया। जब वेबदुनिया ग्रुप में डिजिटल मीडिया ज्वाईन किया तो सब कुछ नया था। क्योंकि अब सब लोकल से ग्लोबल हो गया था। फील्ड की बजाय डेस्क पर बैठकर काम करना जल्द ही आदत बन गई। पर ये कभी बोरिंग न हुआ क्योंकि साथ ही विशेष कार्यक्रमों, साक्षात्कार और फील्ड पर जाने का मौका मिलता रहा। डिजिटल मीडिया में काम करने का सबसे बड़ा सुकून यह भी है कि आपकी बात मीलों दूर जाती है। जब आपके पाठक और दर्शक उस पर प्रतिक्रिया देते हैं तो आप बेहतरीन परिणाम देने के लिए और भी अधिक जवाबदार हो जाते हो। साथ ही फुर्ती आपको मीडिया में होने का अहसास दिलाती है क्योंकि बिना जोश, उत्साह और तेज़ी के कम से कम वक्त में लेटेस्ट-ब्रेकिंग परंतु प्रमाणिक खबरें परोसना किसी चुनौती से कम नहीं। ये तो हुई खबरों की दुनिया की बात लेकिन जब त्योहार आते हैं, पाठकों- दर्शकों को अपनी धर्म- संस्कृति, कथा-पुराण, इतिहास और रीति-रिवाजों से जोड़ना भी तसल्ली से भर देता है। डिजिटल मीडिया में काम करते वक्त एक और बात समझ आती है कि ट्रेंड अपनी जगह है परंतु विश्वसनीय और प्रामाणिक सामग्री होने के साथ ही विशिष्टता आपको अलग ही पहचान दिलाती है।
सुरभि भटेवरा
वेब दुनिया में ही कार्यरत हैं। सुरभि भटेवरा है 2017 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय यूथेंस न्यूज़, न्यूज़ ट्रैक, दबंग दुनिया(tv) और अभी वेबदुनिया में कार्य कर रही हूं। पढ़ाई में एवरेज थी लेकिन 12वीं के बाद यह तय था कि बीकॉम या बीबीए नहीं करना है। क्रिएटिव फिल्ड में ही जाना है।
इसलिए पत्रकारिता क्षेत्र चुना। लेकिन इसके साथ एक और सपना था मॉम-डैड ने नाम तो रख दिया सुरभि लेकिन उसके आगे हमेशा से कुछ पद जरूर जोड़ना चाहती थीं। और वह हुआ भी। जिससे मुझे हर रोज नई उर्जा मिलती है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए 5 साल बीत चुके हैं, पता ही नहीं चला वक्त इतनी तेजी से गुजर गया। और यह 5 साल बहुत बेमिसाल रहे। हर दिन बहुत कुछ सीखा। और उससे ही पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। यह फिल्ड मेरे लिए पूर्ण रूप से नई थी। इसलिए चैलेंजेस भी बहुत सारे रहे। फिल्ड में कार्य करने की शुरूआत वेब पत्रकारिता से ही हुई थी। इसके बाद पत्रकारिता के अलग-अलग आयमों पर भी काम किया।
लेकिन आज के वक्त में महिलाएं किसी भी क्षेत्र में काम करें। मेहनत से अपनी जगह बना सकती है। इतना भी तय है दुनिया में असंभव तो कुछ नहीं होता है। आज वेब पत्रकारिता के माध्यम से भी महिलाएं वेब पत्रकारिता के क्षेत्र में पूर्ण भागीदारी निभा रही हैं। अभी तक जितना अनुभव किया है उसमें यह रहा कि आज के वक्त में आपको कितना नॉलेज है, उस आधार पर आप किसी को भी पछाड़ सकते हैं।
सुरभि कहती हैं, यह सच है कि पत्रकारिता बहुत सरल नहीं है। यह जितनी ग्लैमरस नजर आती है पूर्ण रूप से विपरित है। लेकिन रूचि है तो आप अपने रास्ते खुद बन सकते हैं। 'I enjoy Chasing dreams and turning them into reality' ये पंक्तियां हिंदी में भी लिखी
जा सकती थी लेकिन भाषा की अपनी फीलिंग्स होती है।
सीमा चौबे
बिना पत्रकारिता की डिग्री लिए पिछले 24 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्यरत सीमा चौबे ने शौकिया तौर पर लेखन करना शुरू किया। शुरुआत हुई नियमित रूप से पत्र सम्पादक नाम लिखने से।
टीचिंग में अपना करियर बनाने के उद्देश्य से एम ए की डिग्री हासिल करने के बाद बी एड और एम फिल किया। लेकिन छोटे छोटे विषयों पर लिखते लिखते कब पत्रकारिता से जुड़ गई पता ही नहीं चला।
पढ़ाई के दौरान महिलाओं से जुड़े मुद्दे, फैशन खानपान आदि विषयो पर लिखे लेख नवभारत, नई दुनिया, जागरण आदि समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहे।
वर्ष 1998 से देशबंधु समाचारपत्र पत्र में प्रांतीय डेस्क पर कार्य करना शुरू किया। इसी के साथ ही बीच बीच में सिटी पेज के लिए रिपोर्टिंग कार्य भी किया।
यहां अगस्त 2005 तक कार्य करने के बाद नवभारत में साप्ताहिक मैग्जीन सुरुचि के लिए सहायक सम्पादक का दायित्व निभाया। साथ ही सिटी मिरर ke लिए रिपोर्टिंग का kary भी किया।
वर्ष 2007 से अगस्त 2019 तक आयुष्मान हेल्थ मैग्जीन मे सहायक संपादक के रूप में कार्य करने के बाद सितम्बर 2019 से अभी तक देशबंधु के वेब पोर्टल के लिए सहायक सम्पादक के रूप में जिम्मेदारी सम्हाल रही हैं।
अलका कौशिक
ब्लॉगिंग की दुनिया में एक नाम है अलका कौशिक का। सन 1995 से पत्रकारिता में कदम रखने वाली अलका कौशिक ने दूरदर्शन और आकाशवाणी के न्यूज रूम से अपना कॅरियर शुरू किया। प्रशिक्षण प्राप्त अनुवादक होने के नाते इस बीच, करीब डेढ़ दर्जन किताबों के अनुवाद भी किए और देश की उम्दा पब्लिक रिलेशंस एजेंसियों के साथ बतौर अनुवादक लेखक जुड़ी रहीं। पारिवारिक दायित्वों के चलते कुछ समय सक्रिय पत्रकारिता को अलविदा कहा। एक पीएसयू में राजभाषा अधिकारी के तौर पर कुछ साल काम किया। अलका कहती हैं, “इस नौकरी ने मेरी सामाजिक हैसियत तो बरकरार रखी लेकिन मेरी क्रिएटिविटी के खिलाफ इसकी साजिश कम नहीं रही।” अलबत्ता, नौकरी के उन पंद्रह बरसों में उन्होंने देशभर की सैर कर डाली। फिर कुछ साल पहले मौका देखकर नौकरी को विराम दिया और अब पिछले 4 वर्षों से फुल टाइम सफर और सफरी साहित्य सृजन से जुड़ी हैं।
अलका ने बीते साल तिब्बत में कैलास मानसरोवर तक की यात्रा ठीक उस अंदाज में कर डाली जिस तरह से हमारे पुरखे किया करते थे, यानी उत्तराखंड की घाटियों-दरों से होते हुए पैदल पैदल। बाइस दिनों की अपनी इसी यात्रा पर इन दिनों वे एक विस्तृत वृत्तांत/गाइड बुक लिख रही हैं।
इस तरह अलका ने पन्नों से आगे बढ़कर डिजिटल दुनिया का भी हाथ थाम लिया और घुमक्कड़ी को नया आयाम मिला। सफर से जुड़ी रिसर्च अब इंटरनेट पर होने लगी और मैं सड़कों-पटरियों पर दौड़ने लगी थी। कभी गुजरात टूरिज्म का विज्ञापन सोशल मीडिया पर दिखाई दिया तो झटपट रण उत्सव में शिरकत की “साजिश” को रातों रात अंजाम दे दिया। ऐसा करना आसान था, क्योंकि इंटरनेट था। न टिकटों की खरीद के लिए कहीं लाइन में लगने का झमेला और न ही किसी और जानकारी के लिए लंबा इंतजार करना होता था। इधर आँखों ने सपने देखे और उधर हमने उनकी तामील कर डाली।
अलका बताती हैं कि सफर के समानांतर एक और बेचैनी भी बढ़ चली थी। अपने पास जमा हो रहे अनुभवों के पुलिंदे को बाँटने की बेचैनी! दरअसल, एक वजह यह भी कि मेरे सफर की मंजिलें आमतौर पर वो होती हैं जो बहुत आम नहीं होती। क्योंकि मैं लंदन या स्पेन में नहीं बल्कि पिथौरागढ़ और बस्तर के देहातों में घूमती हूँ। जब जेब की थोड़ी हैसियत बेहतर दिखती है तो भी जेनेवा की झील की बजाए तिब्बत में मानसरोवर के किनारे खुद को पाती हूँ। यानी मेरा सफर आम टूरिस्ट से कुछ अलहदा मंजिलों तक पहुँचाने वाला होता है। कम देखी, कम भोगी, कम सुनी मंजिलों के बारे में आने वाले कल के घुमक्कड़ों तक अपने देखे भोगे सफर को पहुँचाने के इरादे से 2012 में मैंने हिन्दी में एक ट्रैवल ब्लॉग (https://indiainternationaltravels. wordpress.com) शुरू किया। इस दौरान अखबारों, मैगजीनों में तो लिख ही रही थी लेकिन वहाँ मेरे और अखबार के दरम्यान संपादक नाम की बड़ी-सी दीवार होती थी जो बहुत आसानी से बहुत कुछ पाठकों तक नहीं पहुँचने देती। फिर पारंपरिक मीडिया की अपनी अंतर्निहित दिककतें, पन्नों का, जगह का अभाव है। वहाँ पहले से लिखने वाले धांसू लेखकों/पहुँच वाले दिग्गजों की लंबी फेहरिस्त है और मुझ जैसे घुमक्कड़ के पास इतना धीरज कभी नहीं रहा कि एक-एक लेख के छपने के लिए छह महीने इंतजार करती या संपादकों के दफ्तरों के चक्कर काटती। लिहाजा, ब्लॉगिंग एक बेहतरीन विकल्प बनकर सामने आया।
आज अलका के ट्रैवल ब्लॉग के फॉलोअर्स का आँकड़ा बढ़कर चार हजार को लाँघ चुका है, सोशल मीडिया पर भी मैं सक्रिय हूँ जिसने मुझे न सिर्फ उम्दा पाठक दिलाए हैं बल्कि देशभर के टूरिज्म बोर्डों समेत ट्रैवल जगत की सक्रिय हस्तियों से भी मिलवाया है। इस तरह, बिना अपनी भौगोलिक भौतिक सीमा को पार किए ही मैं अपने ब्लॉग के पंखों पर सवार होकर दुनिया भर में पहुँच जाती हूँ।
जर्नलिज्म का जो ककहरा कभी आईआईएमसी, दिल्ली की दीवारों के भीतर सीखा था वह इनका मार्गदर्शक है और इंटरनेट पर फैली वेबसाईटें, ट्रैवल वीडियो, एप्स, टि्वटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम मेरे सहयोगी हैं, वर्चुअल कुलीग्स! ब्लॉग के अलावा टि्वटर के जरिए इनका संवाद ट्रैवल बिरादरी से लगातार होता है। अलका को लगता है कि डिजिटल पत्रकारिता का यह दौर बेहद रोमांचकारी है, लेकिन अनुशासन भी यहाँ जरूरी है। जो सोशल मीडिया हमें अपने समाज और शहर की बंदिशों से दूर ले जाता है उसी की गलियों में उलझकर कई बार हम अपनी मंजिल से भटक भी सकते हैं। वेब पत्रकारिता इस मायने में मुझे नाजुक लगती है। ब्लॉगिंग जैसे “सैल्फ कंट्रोल्ड” माध्यम पर आजादी का आनंद तो है लेकिन उस पर पाठकों के लिए नियमित रूप से रोचक लेखन परोसने की चुनौती को कम नहीं आँका जा सकता। यही वजह है कि ब्लॉग शुरू कर देना जितना आसान है, उसे सस्टेन करना उतना ही मुश्किल है। अलका देशभर के उम्दा ट्रैवल पत्रकारों और ब्लॉगर्स के एक बड़े सोशल मीडिया समूह की संस्थापक संयोजक भी हैं जो यात्राओं और यात्रा लेखकों के संसार को गतिशील बनाए रखने के लिए काम करता है।
अनिता गौतम
अनिता गौतम पटना, बिहार से तेवर ऑनलाइन (www.tewaronline.com) डॉट कॉम की संयुक्त संपादक हैं। पटना, दिल्ली और मुंबई से अलग अलग टीम के लोग-इंससे जुड़े हुए हैं। इस वेब पोर्टल में खबरें नहीं बल्कि खबरों की कट समीक्षा प्रकाशित की जाती है। हर छोटी बड़ी खबर चाहे वह राजनीति से जुड़ी हो या फिर सिनेमा या खेल से। कोशिश होती है कि आम अवाम को उन खबरों की तह तक ले जाया जाए।
राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक मुद्दों के साथ-साथ अलग अलग विषय की तलाश करना उनका शौक है। राजनीति में खास दिलचस्पी रखने वाली अनिता मानती हैं - “राजनीति तो भारत जैसे देश में हर गली, नुक्कड़ और चौराहों पर बसती हैं, फिर इससे भागा नहीं जा सकता। पर सामाजिक सरोकार से जुड़ी खबरें ही देश और समाज को ऊपर उठा सकती हैं। गरीबी, भुखमरी और पिछड़ेपन को सिर्फ सिनेमा के रुपहले पर्दे की विरासत न बनाकर इन पर जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है।” उनका मानना है - “पत्रकारिता वह स्तंभ है जो समाज के उत्थान में सबसे ताकतवर भूमिका अदा कर सकती है।” अपने वेबपोर्टल पर लिखना इनकी प्राथमिकता है पर आधिकाधिक लोग पढ़ें इसके लिए दूसरे संसाधनों पर भी जोर रहता है। इन्हें लगता है कि इतनी बड़ी आबादी में अगर कोई एक शख्स भी बात समझ जाए तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। वे चाहती हैं कि लिखने पढ़ने की आदत नई पीढ़ी में भी आनी चाहिए। सामाजिक धरोहर और पठन-पाठन की विरासत को आगे बढ़ाने में यह सहायक सिद्ध हो सकता है। पढ़ने लिखने के लिए सोशल साइट्स का इस्तेमाल जरूरी है क्योंकि युवा पीढ़ी इसके सबसे ज्यादा नजदीक है। कठिन शब्दों और मोटी-मोटी किताबों में शामिल अलंकृत भाषा ने आज की पीढ़ी को हिन्दी से दूर कर दिया है।
ममता यादव
मध्यप्रदेश के सागर विश्वविद्यालय से 2001 में पत्रकारिता का एक वर्षीय कोर्स कर भोपाल आने वाली ममता यादव सन 2002 से पत्रकारिता में सक्रिय हुईं, सन 2008 में वेब मीडिया में कदम रखा खबरनेशन वेबसाईट के साथ। 14 दिसम्बर 2014 को “मल्हार मीडिया” की स्थापना कर डाली। वे लिखती हैं - “इंटर्नशिप के लिए जब “नवभारत” गई तो पूछा गया कि आप अकेली रहती हैं, उसके बाद पहली नौकरी के लिए “स्वदेश” पहुँची तो सुनने को मिला कि “अगर आपका कोई जान पहचान वाला भोपाल में हो तो हम आपको नौकरी दे सकते हैं।” मुझे शिद्दत से अहसास कराया गया कि अकेली लड़की घर से बाहर नहीं रह सकती। सागर में इस बात का अहसास नहीं हुआ, पिछड़ा होते हुए भी वह शहर इस मामले में समृद्ध था कि लड़कियाँ दूसरे शहरों में पढ़ाई और नौकरी करने जाती थीं। एक बात जो सबसे ज्यादा तकलीफदेह थी वो ये कि लोगों की सोच थी कि घर में आर्थिक परेशानी होगी, इसलिए काम करने आई है। ममता ने पीपुल्स समाचार, साप्ताहिक “डेमोक्रेटिक वर्ल्ड”, “नईदुनिया” (रायपुर), नवभारत (भोपाल), “आयुष्मान पत्रिका”, फाईन टाईम्स में काम किया और वेब जर्नलिज्म की शुरुआत “खबर नेशन” से की। ममता का कहना है कि मल्हार मीडिया को अपनी सफलता मानती हूँ जिसके प्रतिदिन 10 हजार विजिटर्स हैं। मल्हार मीडिया के साथ अनुभव हुआ और समझ आया कि वास्तव में पत्रकारिता है क्या? आजादी का महत्व क्या है? नौकरियों में रहते 14 साल तक बहुत सारी महत्वपूर्ण चीजों से अनजान ही था। आत्मविश्वास बढ़ता है सो अलग। मल्हार मीडिया शुरू करने के बाद मुझे कई नौकरियों के आफर भी आए मगर दिल ने गवारा नहीं किया। क्योंकि 15 से 16 घंटे की नौकरी मैंने 14 साल तक की थी। मल्हार मीडिया का कंटेंट आफ बीट और एक्सक्लूसिव है। दो विशेष कॉलम “वीथिका” और “मीडिया” हैं। वीथिका में साहित्य और कला को इसलिए रखा, क्योंकि आज के दौर में मीडिया के पन्नों से यह गायब है। मीडिया सेगमेंट में मीडिया जगत और अन्य गतिविधि को रखा जाता है। आज मल्हार मीडिया से लगभग 50 लोग विभिन्न जिलों से जुड़ चुके हैं। एक लेखिका रूस की भी जुड़ी हैं। वेब पत्रकारिता में मैंने जो अनुभव किया वो ये कि ये पूरी तरह समर्पण और क्वालिटी कंटेंट माँगता है। पाठक को खींचने वाली एक खबर वेबसाइट पर हजारों विजिटर्स ला सकती है।
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